छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले का मामला. एक रिपोर्ट के अनुसार, दरभा गांव में रहने वाले तीन परिवारों से कथित तौर पर 2 जुलाई को कथित माओवादियों ने मुलाकात की और उनसे सीआरपीएफ भर्ती हुए युवकों को बल छोड़ने के लिए मनाने या उनके परिवारों को परिणाम भुगतने के लिए कहा गया था. उसके बाद उन्होंने गांव छोड़ दिया.
नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले के दो युवकों का केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में नियुक्ति होने से नाराज सशस्त्र माओवादियों द्वारा कथित तौर पर तीन आदिवासी परिवारों को गांव से बाहर निकालने का मामला सामने आया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को मुताबिक, दरभा गांव में रहने वाले तीन परिवारों से कथित तौर पर बीते 2 जुलाई की देर रात कथित माओवादियों ने मुलाकात की और उनसे सीआरपीएफ प्रशिक्षुओं को सुरक्षा बल छोड़ने के लिए मनाने या उनके परिवारों को परिणाम भुगतने के लिए कहा गया है. लगभग 30-35 ‘माओवादी’ गांव में तीन घंटे से अधिक समय तक रुके रहे.
रिपोर्ट के अनुसार, परिवारों से कहा गया था कि अगर वे गांव छोड़कर नहीं गए तो उन्हें ‘जन अदालत’ का सामना करना पड़ेगा. इसका मतलब स्पष्ट रूप से मृत्युदंड है. पिछले हफ्ते सुकमा की एक अदालत में दो लोगों, एक उप-सरपंच और एक शिक्षक की हत्या कर दी गई थी.
रिपोर्ट के अनुसार, इसके बाद परिवारों ने सीआरपीएफ से अपने लड़कों को वापस बुलाने के बजाय गांव छोड़ने का फैसला किया. कुल आठ एकड़ जमीन और अपने घरों को छोड़कर कुल 11 लोगों ने गांव छोड़ दिया और वे दंतेवाड़ा के लिए रवाना हो गए.
बस्तर आईजी सुंदरराज ने अखबार को बताया कि इन परिवारों के पास वहां पैतृक संपत्ति है. उन्होंने कहा कि कुछ स्रोतों के माध्यम से पुलिस को जानकारी मिली है कि हाल ही में सीआरपीएफ में भर्ती हुए युवकों का परिवार अपना निवास स्थान छोड़कर दंतेवाड़ा में स्थानांतरित हो गया है.
अखबार की रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग छह महीने पहले बस्तर में सीआरपीएफ भर्ती अभियान चला था और जिला मुख्यालय से लगभग 65 किमी दूर बीजापुर के माओवादियों के गढ़ माने जाने वाले एक ‘अति संवेदनशील’ गांव दरभा से तीन आदिवासी युवाओं ने मेरिट सूची में जगह बनाई थी.
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