सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस हिमा कोहली ने जेंडर आधारित दुर्व्यवहार की शिकायतों का समयबद्ध निपटारा करने का मजबूत तंत्र बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा है कि इससे पूरे समाज को संदेश जाएगा कि खेलों में शामिल महिलाएं सम्मान, गरिमा और हर तरह के भेदभाव व उत्पीड़न से सुरक्षा की हक़दार हैं.
नई दिल्ली: भाजपा सांसद और भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कुछ पहलवानों द्वारा दायर यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर चल रहे मामले के बीच, सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस हिमा कोहली ने जेंडर (लिंग) आधारित दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने और ऐसी शिकायतों का समयबद्ध निवारण करने के लिए एक मजबूत तंत्र बनाने की जरूरत पर जोर दिया है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर में ‘खेल के माध्यम से महिला सशक्तिकरण’ पर एक राष्ट्रीय सेमिनार को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें हेल्पलाइन स्थापित करना, शिकायतों की जांच के लिए स्वतंत्र वैधानिक समितियों की स्थापना और अपराधियों को सख्त दंड शामिल होना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘एक सुरक्षित और समावेशी वातावरण बनाने से पूरे समाज को एक मजबूत संदेश जाएगा कि खेलों में शामिल महिलाएं सम्मान, गरिमा और हर तरह के भेदभाव व उत्पीड़न से सुरक्षा की हकदार हैं.’
हाल ही में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013, जिसे पीओएसएच अधिनियम के तौर पर जाना जाता है- से संबंधित एक फैसले में जस्टिस कोहली ने इसी अख़बार की उस रिपोर्ट का जिक्र किया था जिसमें बताया गया था कि 30 राष्ट्रीय खेल संघों में से 16 में पीओएसएच के तहत निर्धारित आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) नहीं है.
ज्ञात हो कि इंडियन एक्सप्रेस ने 4 मई को अपनी रिपोर्ट में बताया था कि 30 संघों की समीक्षा में पाया गया कि कुश्ती महासंघ समेत पांच महासंघों में आईसीसी तक नहीं है; चार में सदस्यों की निर्धारित संख्या नहीं है; अन्य 6 में अनिवार्य बाहरी सदस्य की कमी थी और एक संघ में दो समितियां हैं लेकिन किसी में स्वतंत्र सदस्य नहीं था.
रिपोर्ट का हवाला देते हुए जस्टिस कोहली ने लिखा था, ‘यह वास्तव में एक खेदजनक स्थिति है और सभी राज्य पदाधिकारियों, सार्वजनिक प्राधिकरणों, निजी उपक्रमों, संगठनों और संस्थानों पर खराब प्रभाव डालती है जो पीओएसएच अधिनियम को अक्षरश: लागू करने के लिए बाध्य हैं.’
उन्होंने कहा कि इन नीतियों में विभिन्न पहलुओं की जांच होनी चाहिए, जिसमें समान अवसर सुनिश्चित करना, वित्तीय सहायता देना और किसी भी लिंग आधारित हिंसा, भेदभाव एवं उत्पीड़न की रिपोर्टिंग और निवारण के लिए तंत्र स्थापित करना शामिल है.
यह बताते हुए कि खेल महिलाओं के लिए आर्थिक सशक्तिकरण का साधन हो सकता है, जस्टिस कोहली ने कहा कि उनकी सफलता की कहानियां उन लोगों को टीमवर्क और आत्मनिर्भरता की सीख देंगी जो अपने शौक को लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं.