भारतीय मूल के प्रोफेसर का ओसीआई दर्जा रद्द करने के सरकार के आदेश को हाईकोर्ट ने ख़ारिज किया

स्वीडन और लातविया में भारतीय दूतावास ने 8 फरवरी 2022 को एक आदेश जारी कर भारतीय मूल के प्रोफेसर अशोक स्वैन का ओवरसीज़ सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) दर्जा रद्द कर दिया था. कहा गया था कि ‘भड़काऊ भाषणों और भारत विरोधी गतिविधियों’ के चलते उनका ओसीआई दर्जा रद्द कर दिया गया है.

प्रोफेसर अशोक स्वैन. (फोटो साभार: ट्विटर)

स्वीडन और लातविया में भारतीय दूतावास ने 8 फरवरी 2022 को एक आदेश जारी कर भारतीय मूल के प्रोफेसर अशोक स्वैन का ओवरसीज़ सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) दर्जा रद्द कर दिया था. कहा गया था कि ‘भड़काऊ भाषणों और भारत विरोधी गतिविधियों’ के चलते उनका ओसीआई दर्जा रद्द कर दिया गया है.

प्रोफेसर अशोक स्वैन. (फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने स्वीडन स्थित भारतीय मूल के प्रोफेसर अशोक स्वैन का ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्ड रद्द करने के केंद्र सरकार के आदेश को सोमवार को रद्द कर दिया.

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, ‘यह शायद ही कोई आदेश है; यह कोई कारण नहीं बताता. यह शायद ही इस मामले पर दिमाग के प्रयोग का कोई संकेत देता है.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, स्वीडन और लातविया में भारतीय दूतावास ने 8 फरवरी, 2022 को एक आदेश जारी कर स्वैन का ओसीआई दर्जा रद्द कर दिया था. आदेश में कहा गया है कि यह ‘नागरिकता अधिनियम की धारा 7 (डी) (ई) के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए इस आधार पर किया जा रहा है कि याचिकाकर्ता ऐसी गतिविधियों में लिप्त है, जो भारत की संप्रभुता और अखंडता, सुरक्षा और किसी भी विदेशी देश के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंधों के हित के लिए हानिकारक है’.

जस्टिस प्रसाद ने आदेश को गलत बताते हुए कहा कि स्वैन की ओसीआई स्थिति को रद्द करने के लिए ‘कोई कारण नहीं’ बताया गया है. ‘इस धारा को एक मंत्र के रूप में दोहराने के अलावा फैसले में कोई कारण नहीं दिया गया है कि याचिकाकर्ता का ओसीआई कार्डधारक के रूप में पंजीकरण क्यों रद्द किया गया है.’

अदालत ने मामले में प्रतिवादियों – केंद्रीय गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और स्वीडन और लातविया में भारतीय दूतावास को तीन सप्ताह के भीतर ‘विस्तृत आदेश’ जारी करने का निर्देश दिया.

हाईकोर्ट ने कहा, ‘आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया गया है, उत्तरदाताओं को आज से तीन सप्ताह के भीतर अभ्यास पूरा करने का निर्देश दिया गया है. यह स्पष्ट किया जाता है कि इस अदालत ने मामले की योग्यता पर कोई राय व्यक्त नहीं की है.’

सरकार की इस दलील से असंतुष्ट कि ‘एजेंसियों को जानकारी मिल गई थी और रिपोर्टों की जांच के बाद यह आदेश पारित किया गया’, अदालत ने ‘विस्तृत आदेश’ के लिए दबाव डाला.

अशोक स्वैन की याचिका के अनुसार, उन्हें 6 अक्टूबर, 2020 को भारतीय दूतावास से एक कारण बताओ नोटिस मिला, जिसमें कहा गया था कि उनके ‘भड़काऊ भाषणों और भारत विरोधी गतिविधियों’ के लिए उनका ओसीआई दर्जा रद्द कर दिया गया है.

उन्होंने यह भी दावा किया था कि संबंधित अधिकारियों ने ‘ऐसे बेबुनियाद आरोपों या कठोर उपायों को प्रमाणित करने’ के लिए किसी विशिष्ट उदाहरण या सामग्री का उल्लेख नहीं किया था.

स्वैन की याचिका में कहा गया है कि नवंबर 2020 में दायर कारण बताओ नोटिस के जवाब में उन्होंने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए संबंधित अधिकारियों से कारण या सामग्री मांगी थी.

उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि 8 फरवरी, 2022 को भारतीय दूतावास ने उनकी बात सुने बिना ‘मनमाने ढंग से’ उनका ओसीआई कार्ड रद्द करने का आदेश पारित कर दिया. उन्होंने आदेश को ‘प्रथमदृष्टया अवैध, मनमाना और कानून के अनुरूप नहीं’ बताया था.

उन्होंने इसे ‘अनुचित आदेश भी कहा, जिसे न्यायिक दिमाग के इस्तेमाल किए बिना इस हद तक पारित किया गया है कि यह शक्ति का एक नियमित/यांत्रिक अभ्यास माना जाता है’.

स्वैन की याचिका में यह भी दावा किया गया कि वह कभी भी किसी भी भड़काऊ भाषण या भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल नहीं हुए और एक विद्वान के रूप में समाज में उनकी भूमिका ‘अपने काम के माध्यम से सरकार की नीतियों पर चर्चा और आलोचना करना’ थी.

याचिका के अनुसार, ‘एक शिक्षाविद होने के नाते, वह (स्वैन) वर्तमान सरकार की कुछ नीतियों का विश्लेषण और आलोचना करते हैं, केवल मौजूदा सत्तारूढ़ सरकार की नीतियों की आलोचना नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 7 (डी) (ई) के तहत भारत विरोधी गतिविधियों के समान नहीं होगी.’

याचिका के अनुसार, स्वैन एक शिक्षाविद और 2007 से अंतरराष्ट्रीय जल सहयोग पर यूनेस्को चेयर हैं. वह वर्तमान में स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय के शांति और संघर्ष अनुसंधान विभाग में प्रोफेसर और विभाग प्रमुख के रूप में भी कार्यरत हैं. उन्हें 14 जनवरी, 2020 को ओसीआई कार्ड दिया गया था.

उन्होंने अपना ओसीआई दर्जा रद्द करने के सरकार के आदेश के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की और कहा था कि कई बीमारियों से पीड़ित अपनी 77 वर्षीय मां से मिलने के लिए भारत आना उनके लिए बेहद जरूरी है.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें