देश में जब भी हिंदुत्ववादी ताक़तवर हुए हैं, महिलाओं के हक़ों की लड़ाई कमज़ोर हुई है

हिंदुत्व के अनुकूलित सुधारक बाल गंगाधर तिलक वर्ण व जाति व्यवस्था को राष्ट्र निर्माण का आधार बताकर उसका बचाव तो किया ही करते थे, वैवाहिक व दांपत्य संबंधों में बालिग या नाबालिग पत्नियों के पूरी तरह अपने पतियों के अधीन रहने के हिमायती भी थे. वे महिलाओं की आधुनिक शिक्षा के विरोधी भी थे.

/
(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

हिंदुत्व के अनुकूलित सुधारक बाल गंगाधर तिलक वर्ण व जाति व्यवस्था को राष्ट्र निर्माण का आधार बताकर उसका बचाव तो किया ही करते थे, वैवाहिक व दांपत्य संबंधों में बालिग या नाबालिग पत्नियों के पूरी तरह अपने पतियों के अधीन रहने के हिमायती भी थे. वे महिलाओं की आधुनिक शिक्षा के विरोधी भी थे.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

अभी कोई दशक भर पहले, 2012 में, बच्चों के यौन अपराधों, यौन उत्पीड़न व पोर्नोग्राफी वगैरह से संरक्षण के लिए प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राॅम सेक्सुअल ऑफेंसेज़ एक्ट (पाॅक्सो) लागू कर 18 साल की उम्र पूरी करने से पहले सभी प्रकार के यौन कृत्यों को- वे सहमति से की क्यों न किए गए हों- अपराध करार दिया गया था. लेकिन अब कहा जा रहा है कि चूंकि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है और उसके तहत आने वाले मामले लगातार बढ़ रहे हैं, इसलिए शारीरिक संबंध के लिए सहमति की लड़कियों की उम्र घटाकर सोलह साल कर देनी चाहिए- भले ही इससे पाॅक्सो के प्रावधानों और नाबालिगों से जुड़े अन्य कानूनों पर बेहद गंभीर असर हो.

इस बाबत मध्य प्रदेश और कर्नाटक के हाईकोर्ट के विचार सामने आने के बाद विधि आयोग ने केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्रालय से अपने विचार देने को कहा है, जबकि दूसरी ओर यह भी खबर है कि सरकार शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाने पर विचार कर रही है.

क्या अर्थ है इसका? क्या यही नहीं कि कई स्तरों पर अभी समस्या को ठीक से समझा ही नहीं गया है? समझा गया होता तो ऐसे सुझाव और प्रस्ताव सामने क्यों कर आते जो एक समस्या का समाधान करें तो दूसरी पैदा करने लगें.

मिसाल के तौर पर: लड़कियों की शारीरिक संबंध के लिए सहमति की उम्र घटाकर सोलह साल और शादी की उम्र बढ़ाकर 18 साल से ज्यादा कर देना क्या वैसा ही नहीं होगा, जैसे अभी 18 साल के लड़के मतदान करके देश के भविष्य का फैसला तो कर सकते हैं, लेकिन अपने विवाह बंधन में बंधने का फैसला नहीं कर सकते क्योंकि उनके मताधिकार की उम्र 18 साल है और शादी के अधिकार की उम्र 21 साल है. लड़कियों के मामले में तो यह समस्या उनके अवांछित गर्भधारण तक जाकर उनके मन-मस्तिष्क को नए उझावों में फंसा सकती है.

तिस पर यह अपनी तरह का कोई इकलौता अंतर्विरोध नहीं है. अरसा पहले केंद्र सरकार ने एक गैर-सरकारी संगठन की याचिका के सिलसिले में सर्वोच्च न्यायालय में यह रुख अपनाकर ऐसी ही विडंबना पैदा की थी कि अगर कोई पति अपनी 15 साल से ज्यादा की पत्नी से जबरन शारीरिक संबंध बनाता है, तो उसका यह कृत्य कानूनन बलात्कार नहीं होगा, क्योंकि बलात्कार कानून में धारा 375 (2) के तहत इसकी छूट है, ताकि ‘विवाह संस्था’ की रक्षा की जा सके.

याची गैर-सरकारी संगठन का कहना था कि पाॅक्सो कानून के तहत 18 साल से कम की किसी भी लड़की को बच्ची के रूप में देखा जाता है, लेकिन उसकी शादी हुई नहीं कि वह भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (2) के तहत बच्ची नहीं रह जाती. संगठन ने इसे पूरी तरह अनुचित करार देते हुए अपनी याचिका में मांग की थी कि जैसे वयस्क होने की उम्र 18 साल तय की गई है, शारीरिक संबंध बनाने के लिए महिला की सहमति की उम्र भी 18 साल करके लागू कराई जाए.

तब सरकार को यह मांग पूरी करने से बचने के लिए बाल विवाहों की आड़ लेने से भी परहेज नहीं था, जिन्हें रोकना खुद उसी की जिम्मेदारी है. इसलिए उसने कह दिया था कि बाल विवाह एक सच्चाई है, जिसके चलते देश में 2.30 करोड़ नाबालिग दुल्हनें हैं और धारा 375 के अपवाद के प्रावधान को हटा दिया जाएगा तो उन सबके पति आपराधिक मुकदमे की जद में आ जाएंगे. सरकार ने यह भी कहा कि ऐसा न करके विवाह संस्था को बचाया जाना चाहिए, नहीं तो ऐसे विवाहों से होने वाले बच्चों को इसका कष्ट भोगना पड़ेगा.

उसके रवैये से साफ था कि विवाह संस्था और बाल-विवाह से पैदा होने वाले बच्चों की फिक्र (जो इस अर्थ में गैरजरूरी है कि सर्वोच्च न्यायालय लिव-इन में रह रहे माता-पिता से पैदा हुए बच्चों के अधिकारों में कटौती के भी खिलाफ है.) करते हुए उसे उन बच्चियों की कतई फिक्र नहीं थी, जो उसके बाल विवाह रोक पाने में नाकाम रहने के चलते अपने पतियों के बलात्कार सहने को अभिशप्त हैं.

लेकिन थोड़ा पीछे अतीत में पलटकर देखें तो ‘हिंदुत्व’ की पैरोकार सरकार के इस दृष्टिकोण में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं था क्योंकि देश में जब भी हिंदुत्ववादी ताकतवर हुए हैं, महिलाओं के हकों की लड़ाई ऐसी ही राहों से गुजरने को अभिशप्त हुई है.

अंग्रेजों की गुलामी के दौर के 1890 के एक वाकये से इसे बेहतर ढंग से समझा जा सकता है, जब ‘लोकमान्य’ बाल गंगाधर तिलक हिंदुत्व के लिहाज से अनुकूलित सामाजिक सुधारों के बड़े नायक बनकर उभर रहे थे. इसी साल उड़ीसा की फूलमणि नाम की दस साल की बाल विवाहिता की उसके पति हरिमोहन मैती द्वारा शारीरिक संबंध बनाने के प्रयास से मौत हो गई थी. 30 वर्षीय हरिमोहन मैती ने फूलमणि के मायके में ही यह प्रयास किया था और फूलमणि की मौत की खबर फैलते ही देश भर में लोग उद्धेलित हो उठे थे.

लेकिन ‘लोकमान्य’ तिलक के निकट जैसे फूलमणि के जीवन का कोई मोल ही नहीं था, न ही उसकी मृत्यु का कोई शोक. उनकी सारी हमदर्दी हरिमोहन के साथ थी और वे अपने अंग्रेजी अखबार ‘महरट्टा’ में संपादकीय लिखकर लोगों से अपील कर रहे थे कि मैती पहले ही पत्नी को खो चुके हैं, अब उनकी और लानत-मलामत न की जाए.

उनका ‘दुर्भाग्य’ कि अंग्रेज सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी थी और फूलमणि की मौत से उपजे जनक्षोभ को शांत करने के लिए अगले ही बरस कवि, लेखक व समाज-सुधारक बेहरामजी मेरवान जी मालाबारी (1853-1912) के प्रस्ताव पर शादी के लिए सहमति की उम्र बढ़ाने का कानून पास कराकर लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र दस से बढ़ाकर 12 साल कर दी थी. गौरतलब है कि उन दिनों हिंदुत्ववादियों को मालाबारी फूटी आंखों भी नहीं सुहाते थे क्योंकि उन्होंने स्त्री अधिकारों की रक्षा को अपने जीवन का ध्येय बना रखा था.

‘लोकमान्य’ को तो बाल विवाह पीड़ित महिलाओं का अपने उत्पीड़क पतियों से कानून की मदद से तलाक लेना भी गवारा नहीं था. उन्हीं दिनों रकमाबाई नामक एक शिक्षित विवाहिता अपने पति से कानूनन तलाक लेने वाली पहली महिला बनी तो इतिहासविद परिमला बी. राव के अनुसार तिलक ने उसे पूरी हिंदू नस्ल का सवाल बनाकर हंगामा मचा दिया था.

परिमला राव (जिन्होंने फाउंडेशंस ऑफ तिलक्स नेशनलिज्म: डिस्क्रिमिनेशन, एजूकेशन एंड हिंदुत्व नाम की किताब भी लिखी है) ने अपने एक लेख में लिखा है कि रकमाबाई एक पढ़ी-लिखी युवती थीं और उन्होंने अपने निरकुंश पति दादाजी भीकाजी के साथ रहने से इनकार कर दिया था क्योंकि हमेशा अपने साथ मारपीट की आशंका से डरी रहती थीं.

तब तिलक ने अपने अखबार ‘महरट्टा’ के आठ पन्नों में पूरे छह पेज भरकर दादाजी का समर्थन किया था. 12 जून, 1887 के ‘महरट्टा’ में उन्होंने लिखा था: अगर रकमाबाई अपने पति के साथ जाने से इनकार करती हैं तो उन्हें जेल भेजा जाना चाहिए. वे इस पर भी जोर देते रहे थे कि रकमाबाई व सरस्वतीबाई (पंडिता रमाबाई) जैसी महिलाओं को वैसी ही सजा मिलनी चाहिए जैसी चोरों, व्यभिचारियों और हत्यारों को मिलती है.

तब उनके जैसे हिंदुत्ववादी वर्ण व जाति व्यवस्था को राष्ट्र निर्माण का आधार बताकर उसका बचाव तो किया ही करते थे, वैवाहिक व दांपत्य संबंधों में बालिग या नाबालिग पत्नियों के पूरी तरह अपने पतियों के अधीन रहने के हिमायती भी थे. इतना ही नहीं, वे बच्चियों व महिलाओं की आधुनिक शिक्षा के विरोधी भी थे. 1884 में महादेव गोविंद रानाडे और कुछ अन्य सुधारवादियों ने मिलकर पुणे में लड़कियों के लिए पहला हाईस्कूल (हुजूर पागा) खोला, तो बाल गंगाधर तिलक ने उसका भी प्रबल विरोध किया था.

बकौल परिमला वी राव: रानाडे के स्कूल ने ऐसा पाठ्यक्रम लागू किया, जिससे बच्चियां आगे जाकर उच्च शिक्षा ले सकें. तो तिलक ने रानाडे को पतियों को छोड़ने वाली रकमाबाई जैसी लड़कियों की तादाद बढ़ जाने को लेकर चेतावनी दी थी. डीके कर्वे ने 1915 में महिला यूनिवर्सिटी की स्थापना की तो तिलक का कहना था कि हमें एक औसत हिंदू लड़की को बहू के तौर पर देखना चाहिए जिसका अपने पति के घर के लोगों के प्रति खास कर्तव्य हों.. उन्होंने कर्वे से कहा कि वे यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम को खाना बनाने, घर के अर्थशास्त्र और बच्चों की देखभाल जैसे विषयों तक सीमित कर दें..  अपने अखबार ‘द महरट्टा’ और नगरपालिका में अपने समर्थकों के जरिये तिलक ने लड़कियों के लिए मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा का विरोध भी किया था.

सोचिए जरा कि कहां तो देश की नदियों में बहुत पानी बह जाने और स्थितियां बहुत बदल जाने के बाद उम्मीद की जाती थी कि सरकार इस मामले में थोड़े दूरगामी व प्रगतिशील सोच के साथ आगे आएगी और कहां उसकी प्रतिगामिता उसे अभी भी 1890 में ही खड़ी किए दिखती है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq