अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 की अधिकतर धाराओं को ख़त्म कर जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कम से कम 23 याचिकाएं दाख़िल की गई है. बीते 10 जुलाई को एक नया हलफ़नामा दाख़िल कर सरकार ने अपने फैसले का बचाव किया है.
नई दिल्ली: मंगलवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 370 को कमजोर कर जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति को खत्म करने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर 2 अगस्त से सुनवाई शुरू करने का फैसला किया है.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह 2 अगस्त से संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई शुरू करेगा और सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर दैनिक आधार पर मामले की सुनवाई करेगा.
संविधान पीठ ने यह भी कहा कि सभी पक्षों को 27 जुलाई तक सभी दस्तावेज, संकलन और लिखित प्रस्तुतियां दाखिल करनी होंगी. पीठ में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं.
न्यायालय ने कहा कि अधिवक्ता प्रसन्ना और कनु अग्रवाल सामान्य सुविधा संकलन तैयार करने के लिए नोडल वकील होंगे. इस बीच दो याचिकाकर्ताओं शाह फैसल और शहला रशीद ने अपनी याचिकाएं वापस लेने की अनुमति मांगी और अदालत ने इसे स्वीकार कर लिया.
मार्च 2020 में मामले की आखिरी सुनवाई के समय कुछ याचिकाकर्ताओं द्वारा संदर्भ की मांग के बावजूद सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इन याचिकाओं को सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को नहीं भेजने का फैसला किया था.
5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने संसद में एक प्रस्ताव लाकर अनुच्छेद 370 की अधिकतर धाराओं को खत्म कर दिया था और जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कम से कम 23 याचिकाएं दाखिल की गई हैं.
इससे पहले जून 2018 में तत्कालीन राज्य की विधानसभा भंग कर और यहां राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया था.
दैनिक सुनवाई पर महबूबा मुफ्ती ने जताई आशंका
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ‘चार साल तक चुप रहने’ के बाद जम्मू कश्मीर के संबंध में अनुच्छेद 370 में किए गए बदलावों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दैनिक आधार पर सुनवाई करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आशंका व्यक्त की.
मंगलवार (11 जुलाई) को एक ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘भारत सरकार के हलफनामे पर भरोसा न करने का माननीय सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय इस बात की पुष्टि करता है कि अनुच्छेद 370 के अवैध निरस्तीकरण को उचित ठहराने के लिए उसके पास कोई तार्किक व्याख्या नहीं है.’
उन्होंने कहा कि इस बात को लेकर वैध आशंकाएं हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीर दौरे के बाद अनुच्छेद 370 को इतनी तत्परता से क्यों उठाया है.
Hon’ble SCs decision to not rely on GOIs affidavit vindicates that it doesnt have a logical explanation to justify illegal abrogation of Article 370. Having said that there are legitimate apprehensions about why SC has taken up the Article 370 with such alacrity after their visit… https://t.co/RIEYgEvcoh
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) July 11, 2023
मुफ्ती ने आगे कहा, ‘चार साल तक खामोश रहने के बाद मामले की रोजाना सुनवाई का फैसला संदेह पैदा करता है. आशा है कि इस देश का संविधान जिसकी न्यायपालिका शपथ लेती है, उन लोगों की सामूहिक अंतरात्मा को संतुष्ट करने के लिए सत्ता की वेदी पर बलिदान नहीं किया जाएगा, जो इस मामले के बारे में बहुत कम जानते हैं.’
इस बीच नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा कि 5 अगस्त 2019 को जब अनुच्छेद 370 हटाया गया तो कानून की धज्जियां उड़ गई थीं.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, संवाददाताओं से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘मामले को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने में चार साल लग गए. इससे पता चलता है कि हमारा केस कितना मजबूत है. यदि यह मजबूत नहीं होता तो वे कुछ ही हफ्तों में मामले की सुनवाई शुरू कर देते. उन्हें इतना समय लग गया, क्योंकि 5 अगस्त 2019 को कानून और आईन (अधिनियम – Aaeen Act) की धज्जियां उड़ा दी गई थीं.’
उमर ने आगे कहा, ‘आप इसे राजनीतिक रूप से जिस तरह चाहें पैकेज कर सकते हैं. आप इसे जी20 और पर्यटन से जोड़ सकते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि संवैधानिक और कानूनी रूप से जम्मू कश्मीर के साथ, जो हुआ वह गलत था. हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट हमें जवाब दे सकता है.’
हलफनामा दायर कर केंद्र ने फैसले का बचाव किया
बता दें कि इससे पहले केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाने को चुनौती देने वाली 23 याचिकाओं की सुनवाई से ठीक एक दिन पहले सोमवार (10 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफनामा दायर किया था.
अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति को खत्म करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए केंद्र सरकार ने कहा है कि यह ‘इस क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास, प्रगति, सुरक्षा और स्थिरता लाया है, जो अनुच्छेद 370 लागू रहने के समय में अक्सर गायब रहता था.’
मामले पर आखिरी सुनवाई मार्च महीने 2020 में हुई थी. इन याचिकाओं में 5-6 अगस्त, 2019 के राष्ट्रपति आदेश और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को चुनौती दी गई है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र के हलफनामे में कहा गया है कि स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और अन्य सार्वजनिक संस्थान अनुच्छेद 370 के कमजोर होने के बाद पिछले तीन वर्षों से बिना किसी गड़बड़ी या हड़ताल के काम कर रहे हैं.
इसके अनुसार, केंद्र ने कहा है, ‘दैनिक हड़ताल, हड़ताल, पथराव और बंद की पहले की प्रथा अब अतीत की बात हो गई है.’ हलफनामे में कहा गया है कि क्षेत्र में तीन दशकों की उथल-पुथल के बाद जीवन सामान्य हो गया है.
आगे कहा गया है, ‘आजादी के बाद पहली बार क्षेत्र के निवासियों को वही अधिकार मिल रहे हैं, जो देश के अन्य हिस्सों के निवासियों को मिल रहे हैं. इसके परिणामस्वरूप क्षेत्र के लोग मुख्यधारा में आ गए हैं और इस तरह अलगाववादी और राष्ट्र-विरोधी ताकतों के भयावह डिजाइन को अनिवार्य रूप से विफल कर दिया गया है.’
यह कहते हुए कि जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में प्रयास किए गए हैं, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा है कि इतिहास में पहली बार जम्मू कश्मीर में एक निर्वाचित त्रि-स्तरीय पंचायती राज प्रणाली स्थापित की गई है. हलफनामे में बताया गया कि नवंबर-दिसंबर 2020 में जिला विकास परिषदों के सदस्यों के लिए चुनाव हुए हैं.
हलफनामे में यह रेखांकित करने का प्रयास किया गया है कि पिछले तीन वर्षों में क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति में काफी सुधार हुआ है. केंद्र ने कहा है कि 2018 और 2022 के बीच ‘कानून और व्यवस्था की घटनाओं’ में 97.2 प्रतिशत की कमी आई और ‘आतंकवादी घटनाओं’ में 45.2 फीसदी की कमी आई है.
केंद्र ने मई में श्रीनगर में आयोजित जी-20 पर्यटन कार्य समूह का हवाला देते हुए यह भी बताया है कि क्षेत्र में पर्यटन में काफी सुधार हुआ है.
हालांकि मोदी सरकार ने कहा है कि उसने जम्मू कश्मीर को शेष भारत के साथ ‘पूर्ण रूप से एकीकृत’ करने के लिए काम किया है.
इसके अनुसार, जम्मू कश्मीर देश का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां लोगों पर निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा नहीं, बल्कि एक ऐसे प्रशासन द्वारा शासन किया जाता है, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करता है.
हालांकि, क्षेत्र के राजनीतिक दल और नागरिक समाज समूह अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की तीखी आलोचना करते रहे हैं. कश्मीर के लोग भी केंद्र सरकार की बिल्कुल विपरीत तस्वीर पेश करते हैं. उनके लिए पिछले तीन वर्षों में इस केंद्रशासित राज्य पर चुप्पी, भय, दमन, बढ़ती कीमतें और बेरोजगारी ने कब्जा कर लिया है.
याचिकाकर्ताओं का भी मानना है कि भारत सरकार द्वारा अगस्त 2019 में किए गए बदलाव ‘एकतरफा’ थे और इसमें ‘जम्मू-कश्मीर के लोगों की सहमति’ नहीं थी.