एडीआर के अनुसार, 2016-17 और 2021-22 के बीच भाजपा को अन्य सभी राष्ट्रीय दलों की तुलना में तीन गुना अधिक चंदा मिला, जिसमें से 52%से अधिक चुनावी बॉन्ड से आया.
नई दिल्ली: थिंक टैंक एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016-17 और 2021-22 के बीच राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त सभी दान में से आधे से अधिक चुनावी बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त हुए थे और भाजपा को अन्य सभी राष्ट्रीय दलों की तुलना में अधिक धन प्राप्त हुआ.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने 2016-17 और 2021-22 के बीच राजनीतिक दलों को मिले चंदे का विश्लेषण किया है.
रिपोर्ट के अनुसार, सात राष्ट्रीय पार्टियों और 24 क्षेत्रीय दलों को चुनावी बॉन्ड से कुल 9,188.35 करोड़ रुपये का दान मिला, जिसमें से भाजपा का हिस्सा 5,271.9751 करोड़ रुपये था, जबकि अन्य सभी राष्ट्रीय दलों ने मिलकर 1,783.9331 करोड़ रुपये एकत्र किए.
अखबार के अनुसार, यह समय अवधि महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दौरान चुनावी फंडिंग के उद्देश्य से चुनावी बॉन्ड योजना 2018 पेश की गई थी और साथ ही वित्त अधिनियम 2017 ने राजनीतिक दान के लिए कंपनी के औसत तीन साल के शुद्ध लाभ की 7.5 प्रतिशत की पिछली सीमा को हटा दिया था.
रिपोर्ट में गुमनाम चुनावी बॉन्ड से दान, कॉरपोरेट घरानों से प्रत्यक्ष दान और सांसदों/विधायकों जैसे स्रोतों से अन्य दान, बैठकों से योगदान और मोर्चों से योगदान और पार्टी इकाइयों द्वारा संग्रह का विश्लेषण किया गया है.
रिपोर्ट के अनुसार, छह साल की अवधि के दौरान विश्लेषण किए गए 31 राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त कुल दान 16,437.635 करोड़ रुपये है, जिसमें से 55.90 प्रतिशत चुनावी बॉन्ड से, 28.07 प्रतिशत कॉरपोरेट क्षेत्र से और 16.03 प्रतिशत अन्य स्रोतों से प्राप्त हुआ था.
राष्ट्रीय पार्टियों के लिए वित्त वर्ष 2017-18 और वित्त वर्ष 2021-22 के बीच चुनावी बॉन्ड से मिलने वाले चंदे में 743 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जबकि कॉरपोरेट चंदे के लिए यह बढ़ोतरी केवल 48 प्रतिशत है.
भाजपा को सात साल में अन्य पार्टियों से तीन गुना ज्यादा चंदा मिला
भाजपा को अन्य सभी राष्ट्रीय दलों की तुलना में तीन गुना अधिक चंदा मिला, जिसमें से 52 प्रतिशत से अधिक चुनावी बॉन्ड के माध्यम से मिला. भाजपा को लगभग 32 प्रतिशत चंदा कॉरपोरेट घरानों से आया.
भाजपा के कुल डोनेशन का 52 प्रतिशत से अधिक चुनावी बॉन्ड से आया, जिसकी कीमत 5,271.9751 करोड़ रुपये है, जबकि अन्य सभी राष्ट्रीय दलों ने 1,783.9331 करोड़ रुपये एकत्र किए.
रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा को चंदे का 4,614.53 करोड़ रुपये (लगभग 28 प्रतिशत) कॉरपोरेट क्षेत्र से प्राप्त हुआ और 2,634.74 करोड़ रुपया (16.03 प्रतिशत) अन्य स्रोतों से.
एडीआर ने कहा कि 80 प्रतिशत से अधिक चंदा (लगभग 13,190.68 करोड़ रुपये) राष्ट्रीय पार्टियों को और 3,246.95 करोड़ रुपये (19.75 प्रतिशत) क्षेत्रीय दलों को मिला.
रिपोर्ट के अनुसार, चुनावी बॉन्ड के जरिये अधिक चंदा प्राप्त करने वाली दूसरी पार्टी कांग्रेस रही. इसने 952.2955 करोड़ रुपये (अपने कुल दान का 61.54 प्रतिशत) के बॉन्ड से मिलने की घोषणा की, इसके बाद तृणमूल कांग्रेस ने 767.8876 करोड़ रुपये (93.27 प्रतिशत) की घोषणा की.
रिपोर्ट के अनुसार, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) को अन्य स्रोतों से 100 प्रतिशत चंदा मिला, जिसका अर्थ है 20,000 रुपये से कम का चंदा, जिसके लिए राजनीतिक दलों को दानकर्ता का विवरण घोषित करने की आवश्यकता नहीं है.
जहां तक क्षेत्रीय दलों का सवाल है, बीजू जनता दल के कुल डोनेशन का 89.81 प्रतिशत से अधिक चुनावी बॉन्ड से आया, जिसकी कीमत 622 करोड़ रुपये है, जबकि द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने 431.50 करोड़ रुपये (कुल का 90.70 प्रतिशत) के बॉन्ड से मिले. इसके बाद तेलंगाना राष्ट्र समिति ने 383.6529 करोड़ रुपये (80.45 प्रतिशत) की घोषणा की और वाईएसआरसीपी ने 330.44 करोड़ रुपये (72.43 प्रतिशत) की घोषणा की.
चुनावी बॉन्ड से सबसे अधिक 3,438.8237 करोड़ रुपये का दान 2019-20 में प्राप्त हुआ, जो आम चुनाव का वर्ष था, इसके बाद 2021-22 में 2,664.2725 करोड़ रुपये प्राप्त हुआ जब 11 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे.
सात राष्ट्रीय पार्टियों द्वारा घोषित प्रत्यक्ष कॉरपोरेट चंदा छह साल की अवधि के दौरान 31 क्षेत्रीय पार्टियों द्वारा घोषित कॉरपोरेट चंदे से पांच गुना से भी अधिक है.
छह साल की अवधि में क्षेत्रीय दलों द्वारा घोषित प्रत्यक्ष कॉरपोरेट चंदे में लगभग 152 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
चुनावी बॉन्ड को लेकर क्यों है विवाद
चुनाव नियमों के मुताबिक, यदि कोई व्यक्ति या संस्थान 2,000 रुपये या इससे अधिक का चंदा किसी पार्टी को देता है तो राजनीतिक दल को दानकर्ता के बारे में पूरी जानकारी देनी पड़ती है.
हालांकि चुनावी बॉन्ड ने इस बाधा को समाप्त कर दिया है. अब कोई भी एक हजार से लेकर एक करोड़ रुपये तक के चुनावी बॉन्ड के जरिये पार्टियों को चंदा दे सकता है और उसकी पहचान बिल्कुल गोपनीय रहेगी.
इस माध्यम से चंदा लेने पर राजनीतिक दलों को सिर्फ ये बताना होता है कि चुनावी बॉन्ड के जरिये उन्हें कितना चंदा प्राप्त हुआ. इसलिए चुनावी बॉन्ड को पारदर्शिता के लिए एक बहुत बड़ा खतरा माना जा रहा है.
इस योजना के आने के बाद से बड़े राजनीतिक दलों को अन्य माध्यमों (जैसे चेक इत्यादि) से मिलने वाले चंदे में गिरावट आई है और चुनावी बॉन्ड के जरिये मिल रहे चंदे में बढ़ोतरी हो रही है.
चुनावी बॉन्ड योजना को लागू करने के लिए मोदी सरकार ने साल 2017 में विभिन्न कानूनों में संशोधन किया था. चुनाव सुधार की दिशा में काम कर रहे गैर सरकारी संगठन एसोशिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स इन्हीं संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
याचिका में कहा गया है कि इन संशोधनों की वजह से विदेशी कंपनियों से असीमित राजनीतिक चंदे के दरवाजे खुल गए हैं और बड़े पैमाने पर चुनावी भ्रष्टाचार को वैधता प्राप्त हो गई है. साथ ही इस तरह के राजनीतिक चंदे में पूरी तरह अपारदर्शिता है.
साल 2019 में चुनावी बॉन्ड के संबंध में कई सारे खुलासे हुए थे, जिसमें ये पता चला था कि आरबीआई, चुनाव आयोग, कानून मंत्रालय, आरबीआई गवर्नर, मुख्य चुनाव आयुक्त और कई राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इस योजना पर आपत्ति जताई थी.
हालांकि वित्त मंत्रालय ने इन सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को पारित किया.
आरबीआई ने कहा था कि चुनावी बॉन्ड और आरबीआई अधिनियम में संशोधन करने से एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी. इससे मनी लॉन्ड्रिंग को प्रोत्साहन मिलेगा और केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा.
वहीं चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि चुनावी बॉन्ड से पार्टियों को मिलने वाला चंद पारदर्शिता के लिए खतरनाक है.
इसके अलावा आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि जब चुनावी बॉन्ड योजना का ड्राफ्ट तैयार किया गया था तो उसमें राजनीति दलों एवं आम जनता के साथ विचार-विमर्श का प्रावधान रखा गया था. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक के बाद इसे हटा दिया गया.
इसके अलावा चुनावी बॉन्ड योजना का ड्राफ्ट बनने से पहले ही भाजपा को इसके बारे में जानकारी थी, बल्कि मोदी के सामने प्रस्तुति देने से चार दिन पहले ही भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव ने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली (अब दिवंगत) को पत्र लिखकर चुनावी बॉन्ड योजना पर उनकी पार्टी के सुझावों के बारे में बताया था.