शीर्ष अदालत ने मई 2022 में इसके द्वारा यूपी के कुछ क़ैदियों की सज़ा माफ़ी याचिकाओं पर दिए निर्देश पर कार्रवाई न करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुछ दोषियों की सजा में छूट के संबंध में उसके निर्देश के अनुपालन में राज्य द्वारा लगभग एक साल की देरी की निंदा करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों के मन में देश की सर्वोच्च अदालत के आदेशों के प्रति ‘थोड़ा भी सम्मान’ नहीं है.
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, राज्य सरकार के यह कहने कि राज्यपाल- जो राज्य की सज़ा माफ़ी की सिफारिशों पर अंतिम निर्णय लेने वाले संवैधानिक प्राधिकारी, को अदालत द्वारा आदेशित समयसीमा के लिए बाध्य करना उचित नहीं होगा, पर जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, ‘कोई भी कानून से ऊपर नहीं है.’
पीठ ने एडिशनल एडवोकेट जनरल अर्धेंदुमौली कुमार प्रसाद से कहा, ‘चाहे कोई भी हो, कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. ऐसे लोग हैं जो लगभग 30 सालों से परेशान हैं. याचिकाकर्ताओं के आवेदनों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेने का हमारा निर्देश मई 2022 में दिया गया था.’
मंगलवार को पीठ ने निर्देश दिया कि यदि अधिकारी याचिकाकर्ताओं की समयपूर्व रिहाई के सभी लंबित आवेदनों पर चार सप्ताह के भीतर फैसला नहीं करते हैं तो राज्य के गृह विभाग के प्रमुख सचिव को 29 अगस्त को अदालत में पेश होना होगा.
अदालत इस तथ्य पर नाराज़ थी कि उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने 16 मई, 2022 को तीन महीने के भीतर अंतिम निर्णय लेने के निर्देश के बावजूद कई कैदियों की समय से पहले रिहाई की याचिकाओं पर अभी तक फैसला नहीं किया है. अपने मई 2022 के आदेश में अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया था कि सभी याचिकाकर्ताओं ने अपनी वास्तविक सजा के 14 साल से अधिक की अवधि बिना किसी छूट के पूरी कर ली थी. वे सभी बरेली की सेंट्रल जेल में बंद थे.
उस समय पीठ ने यह भी कहा था कि राज्य की छूट नीति, सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित कई निर्देशों के साथ मिलकर, राज्य सरकार को किसी कैदी की सजा माफी याचिका को उसके पात्र होने के तीन महीने के भीतर निपटारे के लिए बाध्य करती है.
पिछले साल शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले 42 दोषियों में से कई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी क्षमा याचिका पर फैसला आने तक रिहा या बरी कर दिया था, साथ ही समय से पहले रिहाई के लिए कम से कम सात ऐसे आवेदन प्रदेश के किसी न किसी सरकारी प्राधिकरण के समक्ष लंबित थे.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यूपी सरकार पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘आपके अधिकारी जितना अनादर दिखा रहे हैं, हमें लगता है कि हमें कुछ कठोर कदम उठाने होंगे. आपके अधिकारियों में अदालत के आदेशों के प्रति ज़रा भी सम्मान नहीं है. आपके राज्य में यही हो रहा है.’
प्रसाद ने स्वीकार किया कि प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की जरूरत है और राज्य द्वारा कई सकारात्मक कदम उठाए गए हैं. हालांकि अदालत ने कहा कि सौ बात की एक बात यह है कि राज्य सरकार मई 2022 के निर्देश का पालन करने में विफल रही है.
अदालत ने जोड़ा, ‘अगर हम देखें कि आपने किस तरह से छूट दी है, तो यह इस तरह है कि व्यक्ति के प्रभाव के हिसाब से कानून लागू हो रहा है. जहां आप रिहाई करना चाहते हैं, वहां सब कुछ करते हैं. और जब आप ऐसा नहीं करना चाहते, तो आप सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी परवाह नहीं करते… आपके अधिकारी हमें कुछ कठोर कार्रवाई के लिए प्रेरित कर रहे हैं.’
प्रसाद ने अपनी ओर से कहा कि हर साल सैकड़ों आवेदन विचार के लिए आते हैं और राज्य सरकार ने इस प्रक्रिया को ऑनलाइन करने के लिए एक समिति का गठन किया है.
पीठ ने कहा, ‘हम नहीं जानते कि आपको ऐसा करने में कितना समय लगेगा. हमने पिछली तारीख पर अवमानना नोटिस जारी नहीं किया क्योंकि हमें लगा था कि आप अनुपालन के साथ वापस आएंगे… लेकिन अनुपालन न होने पर आपके प्रमुख सचिव यहां उपस्थित रहने वाले पहले व्यक्ति होंगे. हम आपके मुख्य सचिव को भी बुलाएंगे. आपके अधिकारी कोई भी हों, उन्हें इसका अनुपालन करना होगा और अगली तारीख से पहले उचित हलफनामा दाखिल करना होगा.’
पीठ ने सुनवाई की अगली तारीख 29 अगस्त तय की है.