असम राइफल्स ने कहा- गोली से घायल म्यांमार के नागरिक मणिपुर हिंसा में शामिल नहीं

मणिपुर पुलिस ने वैध दस्तावेज़ों के बिना अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने के आरोप में म्यांमार के 10 नागरिकों को हिरासत में लिया है. इनके हिंसा में शामिल होने के आरोपों पर स्पष्टीकरण देते हुए असम राइफल्स ने कहा है कि म्यांमार के नागरिक किसी भी तरह से राज्य में चल रहे जातीय संघर्ष से जुड़े नहीं हैं.

(फोटो साभार: फेसबुक)

मणिपुर पुलिस ने वैध दस्तावेज़ों के बिना अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने के आरोप में म्यांमार के 10 नागरिकों को हिरासत में लिया है. इनके हिंसा में शामिल होने के आरोपों पर स्पष्टीकरण देते हुए असम राइफल्स ने कहा है कि म्यांमार के नागरिक किसी भी तरह से राज्य में चल रहे जातीय संघर्ष से जुड़े नहीं हैं.

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नई दिल्ली: मणिपुर पुलिस ने वैध दस्तावेजों के बिना अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने के आरोप में म्यांमार के 10 नागरिकों को हिरासत में लिया है. गोली लगने से घायल होने के कारण उनका चुराचांदपुर जिला अस्पताल में इलाज चल रहा है.

द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस खबर ने मणिपुर के सुरक्षा प्रतिष्ठानों में चिंता पैदा कर दी है, जो पहले से ही पिछले दो महीनों से बड़े पैमाने पर जारी हिंसा का सामना कर रहा है. हालांकि, अधिकारियों ने पुष्टि की कि म्यांमार के नागरिक किसी भी तरह से राज्य में चल रहे जातीय संघर्ष से जुड़े नहीं हैं.

अधिकारियों ने आगे कहा कि राज्य में हिंसा भड़कने से पहले से ही (20 अप्रैल से) उनका अस्पताल में इलाज चल रहा है. असम राइफल्स ने बीते बुधवार (12 जुलाई) को एक बयान में कहा कि मणिपुर में चल रही हिंसा में उनकी संलिप्तता की अटकलें फर्जी हैं.

असम राइफल्स द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, ‘भारत में इलाज करा रहे म्यांमार के नागरिकों के हताहत होने के बारे में एक ‘कथित लीक दस्तावेज’ से संबंधित कई पोस्ट साझा की जा रही हैं. इसमें उल्लेख किया गया है कि 15, 16 और 21 जून को कुल 16 लोगों (जिनमें 8 भारतीय नागरिक शामिल हैं, जो मूलत: ड्राइवर या यात्री थे, एक म्यांमारी अनुवादक और सात म्यांमारी घायल नागरिक, जो कथित तौर पर अपने ही देश में हिंसा से घायल हुए थे) को चंदेल जिले के यंगौबुंग में असम राइफल्स द्वारा रोका गया था.’

वास्तव में उन्हें सीमा पर असम राइफल्स द्वारा रोक लिया गया और भारत में प्रवेश करने की अनुमति दी गई, क्योंकि वे एक चिकित्सा आपातकाल का सामना कर रहे थे. सरकार की नीति के तहत भारत म्यांमार के लोगों को चिकित्सा आपातकाल के मामले में भारत में इलाज का लाभ उठाने की अनुमति देता रहा है, यह देखते हुए कि म्यांमार में जुंटा सैन्य शासन के कारण परेशानी है.

आधिकारिक अनुमान के अनुसार, फरवरी 2021 में पड़ोसी देश म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद से यहां के 40,000 से अधिक लोग मिजोरम और मणिपुर में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं.

दरअसल, भारत और म्यांमार के बीच सीमा के दोनों ओर 16 किलोमीटर के दायरे में मुक्त आवाजाही व्यवस्था (एफएमआर) लागू है. हालांकि, राज्य में जारी हिंसा के कारण मणिपुर सरकार ने इसे अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है.

नॉर्थईस्ट नाउ की रिपोर्ट के मुताबिक, चुराचांदपुर पुलिस ने कहा कि हिरासत में लिए गए म्यांमार के लोगों का इलाज पूरा होने के बाद उन्हें वापस भेज दिया जाएगा. ये लोग पूर्वोत्तर म्यांमार के तमू शहर के हैं.

जैसा कि द वायर ने पहले रिपोर्ट किया था, मणिपुर के मेईतेई समुदाय के कई राजनीतिक नेताओं ने म्यांमार के सैन्य समूहों पर उनके समुदाय के लोगों के खिलाफ राज्य में हिंसा का समर्थन करने का आरोप लगाया है.

मणिपुर के कुकी बहुसंख्यक क्षेत्र म्यांमार के चिन राज्य के साथ एक पोरस सीमा साझा (एक से दूसरे देश में आसानी से आना जाना) करते हैं. कुकी और मिजो लोग म्यांमार के चिन के साथ एक वंश साझा करते हैं और अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार उस निकटवर्ती भूभाग में निवास करते हैं.

बीते 15 जून को म्यांमार की निर्वासित सरकार ‘नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट’ (एनयूजी) ने म्यांमार के नागरिकों, जो उस देश में सैन्य कार्रवाई के कारण भारत में ‘अस्थायी रूप से आश्रय’ ले रहे हैं, को स्थानीय राजनीतिक मामलों और जाति आधारित संघर्ष जैसे मुद्दों से दूर रहने के लिए कहा था.

विस्थापित नागरिकों के लिए निवार्सित सरकार की सलाह महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ऐसे समय में आई है, जब मणिपुर का बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय राज्य के कुकी समुदाय के साथ चल रहे संघर्ष में म्यांमार के नागरिकों की भागीदारी का दावा कर रहा है.

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