मीडिया के सामने पुलिस द्वारा संदिग्धों की परेड कराने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराज़गी जताई

किसी मामले में संदिग्ध व्यक्तियों की मीडिया के सामने परेड कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र को इस मुद्दे पर ज़रूर सोचना चाहिए कि कैसे लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है. आख़िरकार जब उन्हें निर्दोष ठहराया जाता है, तब तक काफ़ी समय बीत चुका होता है. यह उस व्यक्ति, उसके परिवार को नष्ट कर देता है, उसके सम्मान को अपूरणीय क्षति पहुंचाता है.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो साभार: सुभाशीष पाणिग्रही/Wikimedia Commons. CC by SA 4.0)

किसी मामले में संदिग्ध व्यक्तियों की मीडिया के सामने परेड कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र को इस मुद्दे पर ज़रूर सोचना चाहिए कि कैसे लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है. आख़िरकार जब उन्हें निर्दोष ठहराया जाता है, तब तक काफ़ी समय बीत चुका होता है. यह उस व्यक्ति, उसके परिवार को नष्ट कर देता है, उसके सम्मान को अपूरणीय क्षति पहुंचाता है.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो साभार: सुभाशीष पाणिग्रही/Wikimedia Commons. CC by SA 4.0)

नई दिल्ली: मीडिया के सामने संदिग्धों की परेड कराने के पुलिस के कदम को लेकर पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से गिरफ्तारी से संबंधित दिशानिर्देशों की आवश्यकता पर एक महीने के भीतर जवाब देने को कहा है.

शीर्ष न्यायालय का ये निर्देश यह देखते हुए आया है कि संदिग्धों की परेड कराने के चलते ‘अपरिवर्तनीय’ क्षति हुई, जब बाद में उन्हें निर्दोष पाया गया.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते मंगलवार (11 जुलाई) को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, ‘केंद्र को इस मुद्दे पर जरूर सोचना चाहिए कि कैसे लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है. आखिरकार जब उन्हें निर्दोष ठहराया जाता है, तब तक काफी समय बीत चुका होता है. यह उस व्यक्ति, उसके परिवार को नष्ट कर देता है और उसके सम्मान को अपूरणीय क्षति पहुंचाता है.’

अदालत ने यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश निवासी प्रवीण कुमार पर्व की याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिन्होंने कहा कि उन्हें 2021 में एक झूठी शिकायत पर उत्तर प्रदेश पुलिस के आतंकवाद-रोधी दस्ते ने गिरफ्तार किया था.

प्रवीण ने कहा कि जब पुलिस को उनकी बेगुनाही का यकीन हो गया तो उन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन हिरासत के दौरान हुई बदनामी के कारण उन्हें आतंकवादी करार दिया गया.

शीर्ष अदालत ने पहली बार केंद्र और राज्यों को अगस्त 2022 में उस याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें पुलिस को चल रहे आपराधिक मामलों में प्रारंभिक चरण में संदिग्धों के नाम और विवरण का खुलासा करने या किसी संदिग्ध के अपराध पर सार्वजनिक बयान देने से रोकने के निर्देश देने की मांग की गई थी.

प्रवीण की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि शीर्ष अदालत को पुलिस द्वारा संदिग्धों और मामलों के बारे में जानकारी जनता को जारी करने के लिए न्यूनतम मानक तय करने चाहिए.

उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने अभी तक याचिका पर जवाब नहीं दिया है, हालांकि छह राज्य सरकारों ने अपना जवाब दाखिल कर दिया है.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने कहा कि केंद्र अपना जवाब दाखिल करेगा.

रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने रेखांकित किया कि यह बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है. अदालत ने मामले की सुनवाई को 26 सितंबर के लिए स्थगित करते हुए कहा, ‘आपकी (केंद्र की) प्रतिक्रिया इस मामले में बहुत महत्वपूर्ण होगी.’

कार्यवाही के दौरान पीठ ने आश्चर्य जताया कि पुलिस अधिकारी अक्सर पेशेवर अपराधियों और गैंगस्टरों को उनकी गिरफ्तारी पर मीडिया के सामने क्यों पेश करते हैं.

अदालत ने कहा, ‘पुलिस को ऐसा करने से क्या मतलब? आपको (केंद्र) जवाब देना चाहिए कि क्या दिशानिर्देश मौजूद हैं और यदि हां, तो क्या वे पर्याप्त हैं और उनका पालन किया जा रहा है.’

याचिका में कहा गया है कि दोषी साबित होने तक निर्दोष मानने का सिद्धांत ऐसे मामलों में लागू होना चाहिए और जहां संदेह के आधार पर गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को रिहा कर दिया जाता है, तो पुलिस का यह कर्तव्य बनता है कि वह विशेष रूप से सनसनीखेज मामलों में माफी मांगकर इस तथ्य को सार्वजनिक करे. जैसे कि जहां आरोप आतंकवाद, दंगा, सांप्रदायिक वैमनस्य आदि के आरोपों से संबंधित हैं.

वकील फुजैल अहमद अयूबी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, ‘किसी व्यक्ति के गिरफ्तार होने का तथ्य ही समाज में ऐसे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है और इसलिए पुलिस/जांच एजेंसी के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि वह खोई हुई प्रतिष्ठा को बहाल करने के लिए हरसंभव प्रयास करे और इस तरह ऐसे व्यक्तियों की गरिमा का अधिकार सुनिश्चित करे.’

रिपोर्ट के अनुसार, याचिका में यह भी याद दिलाया गया कि मार्च 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र को ‘मीडिया ब्रीफिंग’ पर पुलिस के लिए एक दिशानिर्देश को अंतिम रूप देने का निर्देश दिया था. हालांकि, केंद्र सरकार आज तक निर्देश का जवाब देने में विफल रही है. इसमें कहा गया है कि मामला आखिरी बार 29 मार्च, 2017 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq bandarqq pkv games pkv games bandarqq dominoqq dominoqq pkv games bandarqq dominoqq https://sayalab.com.mx/lab/pkv-games/ https://sayalab.com.mx/lab/dominoqq/ https://sayalab.com.mx/lab/bandarqq/ https://blog.penatrilha.com.br/penatri/pkv-games/ https://blog.penatrilha.com.br/penatri/bandarqq/ https://blog.penatrilha.com.br/penatri/dominoqq/ http://dierenartsgeerens-mechelen.be/fileman/Uploads/logs/bocoran-admin-jarwo/ https://www.bumiwisata-indonesia.com/site/bocoran-admin-jarwo/ http://dierenartsgeerens-mechelen.be/fileman/Uploads/logs/depo-25-bonus-25/ http://dierenartsgeerens-mechelen.be/fileman/Uploads/logs/depo-50-bonus-50/ https://www.bumiwisata-indonesia.com/site/slot77/ https://www.bumiwisata-indonesia.com/site/kakek-merah-slot/ https://kis.kemas.gov.my/kemas/kakek-merah-slot/