कांग्रेस ने चुनावी बॉन्ड से सभी दलों की तुलना में भाजपा को तीन गुना अधिक धन मिलने पर सवाल उठाया

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री मोदी पारदर्शिता की बात करते हैं, लेकिन चुनावी बॉन्ड राजनीतिक फंडिंग की सबसे अपारदर्शी प्रणाली है. इसके ज़रिये भाजपा ने विधायक ख़रीदने और सरकारें गिराने का काम किया.

पवन खेड़ा. (फोटो साभार: ट्विटर/Mumbai Congress)

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री मोदी पारदर्शिता की बात करते हैं, लेकिन चुनावी बॉन्ड राजनीतिक फंडिंग की सबसे अपारदर्शी प्रणाली है. इसके ज़रिये भाजपा ने विधायक ख़रीदने और सरकारें गिराने का काम किया.

पवन खेड़ा. (फोटो साभार: ट्विटर/Mumbai Congress)

नई दिल्ली: राजनीतिक दलों के वित्तपोषण में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करते हुए कांग्रेस ने बीते शुक्रवार 15 जुलाई को दावा किया कि भाजपा को 52 प्रतिशत दान चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) के रूप में आया और छह वित्तीय वर्षों में कुल राशि 5,200 करोड़ रुपये तक पहुंच गई.

द हिंदू के अनुसार, एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने दावा किया कि भाजपा को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से अन्य सभी राजनीतिक दलों की तुलना में तीन गुना अधिक धन मिला है.

एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की नवीनतम रिपोर्ट का हवाला देते हुए खेड़ा ने कहा कि 2016-17 और 2021-22 के बीच भाजपा को 5,271.97 करोड़ रुपये मिले, जबकि अन्य सभी दलों को कुल मिलाकर 1,783.93 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं.

खेड़ा ने कहा, ‘बिना किसी सवाल के, बिना किसी जवाब के और देश को पता चले बिना कि बदले में क्या दिया गया’, सत्तारूढ़ दल के खजाने में 5,200 करोड़ रुपये आ गए. उन्होंने सवाल किया, ‘आपको यह पैसा किससे मिला’ और बदले में आपने क्या दिया?’

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पारदर्शिता की बात करते हैं, लेकिन चुनावी बॉन्ड राजनीतिक फंडिंग की सबसे अपारदर्शी प्रणाली है.

खेड़ा ने कहा कि चुनावी बॉन्ड तब पेश किए गए थे, जब स्वर्गीय अरुण जेटली वित्त मंत्री थे और भारत के चुनाव आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की आपत्तियों के बावजूद इन्हें लाया गया था.

उन्होंने आरोप लगाया कि चुनावी बॉन्ड ने सांठगांठ वाले पूंजीवाद (Crony Capitalism) को ‘वैध’ कर दिया है, क्योंकि इसने कंपनियों पर लगे पहले के प्रतिबंध को हटा दिया है कि वे अपने तीन साल के शुद्ध लाभ का 7.5 प्रतिशत से अधिक दान नहीं कर सकती हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, खेड़ा ने दावा किया, ‘पहले कोई कंपनी तीन साल के शुद्ध लाभ का 7.5 फीसदी से ज्यादा दान नहीं कर सकती थी, लेकिन भाजपा सरकार ने इस सीमा को खत्म कर दिया. इसके कारण अब कंपनियों/संगठनों को यह बताने की जरूरत नहीं है कि उन्होंने कितना दान दिया और किसे दिया.’

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, ‘जैसा कि राहुल गांधी कहते हैं, यह एक ‘निष्पक्ष और प्यारी योजना’ है, जहां पैसा एक पार्टी के खाते में जाता है और सफेद हो जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘इसका प्रभावी अर्थ यह है कि मोदी सरकार की विवादास्पद और भ्रष्ट चुनावी बॉन्ड योजना पैसा सफेद करने वाली एक योजना है, जो काले धन को सफेद में बदल देती है.’

उन्होंने कहा कि कांग्रेस हमेशा से चुनावी फंडिंग की पारदर्शी व्यवस्था चाहती है.

खेड़ा ने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी चुनावी फंडिंग की इस अपारदर्शी प्रणाली के बिल्कुल खिलाफ है. हम मोदी सरकार और भाजपा के कॉर्पोरेट धन लालच को उजागर करते रहेंगे.’

खेड़ा ने यह भी आरोप लगाया कि जब से ये बॉन्ड अस्तित्व में आए हैं, ‘विधायकों को लुभाना और लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को नष्ट करना’ आसान हो गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि इस योजना का उपयोग करके बेहिसाब धन को सिस्टम में डाला जा रहा है.

एक ट्वीट में कहा गया, ‘इलेक्टोरल बॉन्ड्स के कारण इलेक्टोरल फंडिंग गैर-पारदर्शी हो गई. चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट, आरबीआई की आपत्तियों के बावजूद इसे मनी बिल की तरह पारित कर दिया गया. इस एक मनी बिल के जरिये भाजपा ने विधायक खरीदने और सरकारें गिराने का काम किया.’

मालूम हो कि हाल ही में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार 7 राष्ट्रीय पार्टियों और 24 क्षेत्रीय दलों को चुनावी बॉन्ड से कुल 9,188.35 करोड़ रुपये का दान मिला, जिसमें से भाजपा का हिस्सा 5,271.9751 करोड़ रुपये था, जबकि अन्य सभी राष्ट्रीय दलों ने मिलकर 1,783.9331 करोड़ रुपये एकत्र किए.

रिपोर्ट के अनुसार, छह साल की अवधि के दौरान विश्लेषण किए गए 31 राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त कुल दान 16,437.635 करोड़ रुपये है, जिसमें से 55.90 प्रतिशत चुनावी बॉन्ड से, 28.07 प्रतिशत कॉरपोरेट क्षेत्र से और 16.03 प्रतिशत अन्य स्रोतों से प्राप्त हुआ था.

राष्ट्रीय पार्टियों के लिए वित्त वर्ष 2017-18 और वित्त वर्ष 2021-22 के बीच चुनावी बॉन्ड से मिलने वाले चंदे में 743 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जबकि कॉरपोरेट चंदे के लिए यह बढ़ोतरी केवल 48 प्रतिशत है.

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