आज भीड़ किसी को दौड़ा कर मार रही है, जींस पहनने वाली लड़कियों पर हमले हो रहे हैं. विश्वविद्यालयों में हवन हो रहा है, किताबें-कलाकृतियां जलाई जा रही हैं.
यूपी से सबसे ताज़ा ख़बर ये है कि वहां के प्राइमरी स्कूलों की किताबों के कवर का रंग अगले सत्र से भगवा किया जाएगा.
ख़बर के अनुसार प्रदेश के शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि भगवा रंग से ‘सकारात्मक ऊर्जा’ मिलती है. इसलिए वे किताबों का कवर भगवा रंग में रंग रहे हैं.
प्रदेश में मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर बसों और यहां तक कि बिजली के खंभों को भी पहले ही भगवा किया जा चुका है.
भगवा रंग से सकारात्मक ऊर्जा आएगी! इस ऊर्जा का एक नमूना अभी गुजरात में देखने को मिला है जहां हार्दिक पटेल की सीडी निकाली है भगवाधारियों ने.
किसी के बेडरूम में ताक-झांक करने से ज़्यादा सकारात्मक क्या हो सकता है भला? गुजरात के विकास की महागाथा को अंत में बेडरूम की शरण लेनी पड़ी. धन्य भगवा ऊर्जा!
यूपी के मुख्यमंत्री खुलेआम संविधान को गाली देते हैं. वे भूल जाते हैं कि मुख्यमंत्री के संवैधानिक पद पर बैठे हैं चौराहे की पान की दुकान पर नहीं. यह भी भगवा की सकारात्मक ऊर्जा का कमाल है.
एक और नमूना राजस्थान के अलवर का है जहां भगवा की सकारात्मक ऊर्जा से प्रेरित गौभक्तों ने एक व्यक्ति को गोली मार दी है. गाय के नाम पर पूरे देश में हिंसा और हत्याओं का सिलसिला भी भगवा की ऊर्जा से ही आ रहा है.
भगवा की सकारात्मक ऊर्जा से भरे लोग गुंडागर्दी कर रहे हैं, लोगों के कपड़े और शक्ल-सूरत देखकर हमले कर रहे हैं, विरोध करने वालों को धमकियां दे रहे हैं, सोशल मीडिया पर ‘ट्रोल’ कर रहे हैं.
अगर लड़कियां विरोध करती हैं तो यौन हिंसा की धमकियां दे रहे हैं. वॉट्स ऐप पर ऊल-जुलूल संदेश, अफ़वाहें और कचरा प्रसारित कर रहे हैं, तर्क करने वालों पर हमले कर रहे हैं.
लंबी लिस्ट है ये- भगवा की सकारात्मक ऊर्जा के उदाहरण गिनाने बैठें तो ढेरों पन्ने काले हो जाएंगे.
भगवा की ही ऊर्जा है कि देश 21वीं सदी में 15वीं सदी का ट्रेलर देख रहा है. क्या दृश्य है- भीड़ किसी को दौड़ा कर मार रही है, जींस पहनने वाली लड़कियों पर हमले हो रहे हैं, विश्वविद्यालयों में हवन हो रहा है, किताबें-कलाकृतियां जलाई जा रही हैं.
गाय के नाम पर इंसानों को मारा जा रहा है और पुलिस मरने वाले को अपराधी साबित कर रही है, दलितों की पढ़ाई-लिखाई बंद करवाई जा रही है. प्रयोगशालाओं में गोबर लीपा जा रहा है, न्यायालयों में मनु की मूर्तियां लगाई जा रही हैं, मूर्खता का सम्मान किया जा रहा है और समझदारी को दुत्कारा जा रहा है…
गौरतलब है कि शिक्षा के मामले में यूपी देश के सबसे पिछड़े राज्यों में आता है. सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता है. स्कूलों में पर्याप्त टीचर नहीं हैं और न ही अन्य मूलभूत सुविधाएं.
देश में स्कूली शिक्षा से वंचित बच्चों की सबसे बड़ी संख्या यूपी में है. सरकारी स्कूलों में आने वाले ज्यादातर बच्चों को भरपेट खाना नहीं मिलता, उनके घरों व आस-पड़ोस में पढ़ाई-लिखाई का माहौल नहीं है- ये लिस्ट भी लंबी बन सकती है.
देश की शिक्षा व्यवस्था की जो दुर्गति है उसके हरेक पक्ष में यूपी अव्वल ही ठहरेगा. लेकिन इसे ठीक करने की चिंता नहीं है. हर बच्चे को अच्छी शिक्षा मिले इसकी चिंता नहीं है.
चिंता क्या है? किताबों का रंग भगवा करने की. यह मानसिकता भी भगवा के सकारात्मक ऊर्जा से ही संभव है.
प्रदेश की शिक्षा की हालत से चिंतित होकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2015 में फैसला सुनाया था कि सरकारी खज़ाने से पैसा लेने वाले हरेक व्यक्ति को, चाहे वो नेता हो, अफसर हो या कर्मचारी या ठेकेदार, अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजना होगा.
अगर यह लागू हो जाता तो प्रदेश की स्कूली शिक्षा में भारी बदलाव आता. अगर एक जैसे स्कूल में ही अमीर और गरीब, अफसर और चपरासी, अगड़ी और पिछड़ी जाति के बच्चे जाने लगते तो सरकारी स्कूलों की व्यवस्था किसी हाल में दुरुस्त की जाती.
लेकिन ताकतवर तबकों को यह मंज़ूर नहीं. यही कारण है कि इस फैसले को लागू करने में न अखिलेश की कथित समाजवादी सरकार को कोई दिलचस्पी थी और न ही योगी की भगवा सरकार को है.
इन्हें बस एक फिक्र है, हर चीज़ को भगवा रंग में रंगने की-पहले बस्ते रंगे, अब कवर रंगेंगे और फिर किताबों के अंदर भी भगवा उड़ेलेंगे. क्या फर्क़ पड़ता है अगर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पहले की ही तरह लकवाग्रस्त है.
कबीरदास ने बहुत पहले कहा था, ‘मन ना रंगाए, रंगाए जोगी कपड़ा’. कबीर उस समय के जोगियों की खिंचाई कर रहे थे जो आडंबर-दिखावों को ही अध्यात्म मान बैठे थे.
लेकिन कबीर की बात इन नए भगवाधारियों पर पूरी तरह से लागू नहीं होती. ये अध्यात्म, धर्म या ईश्वर की खोज में भटकते लोग नहीं हैं.
भगवा रंग में इनको सत्ता के गलियारों का पता दिखता है, सत्ता की सीढ़ियां दिखती हैं, साक्षात सत्ता दिखती है. ये जानते हैं कि उन्माद में डूबी भीड़ ही आंख मूंदकर इनको सत्ता तक पहुंचाएगी. तो भगवा इनके लिए सिर्फ उन्माद पैदा करने वाला नशा है.
कुपोषित बच्चों की संख्या के मामले में यूपी का स्थान देश में अव्वल है. इन बच्चों को भरपेट खाना और अच्छी शिक्षा नहीं, भगवा रंग में रंगी किताबें दी जाएंगी.
जब ये बच्चे बड़े होंगे तब इनको समुचित वेतन वाले रोज़गार नहीं दिए जाएंगे बल्कि आपराधिक युवा वाहिनियों की सदस्यता थमाई जाएगी.
ये वो पीढ़ी होगी जिसके पास न ढंग की ज़िंदगी होगी और न ज़िंदगी का कोई सपना. ये बच्चे क्या करेंगे और क्या बनेंगे?
ये भगवा की हिंसक भीड़ का हिस्सा बनने के लिए अभिशप्त होंगे. ये दुनिया को सिर्फ एक रंग से देखना चाहेंगे. लेकिन दुनिया एकरंगी कभी हो ही नहीं सकती.
किस्म-किस्म के रंग बिखरते ही रहेंगे जिससे यह भीड़ बौखलाकर और ज़्यादा हिंसक व उन्मादी होती जाएगी. रंग सिर्फ किताबों के कवर पर नहीं चढ़ाया जा रहा है.
असल में रंगा जा रहा है बच्चों के दिमाग को. आने वाली पीढ़ियों को भगवा नशे का आदी बनाया जा रहा है ताकि सत्ता का खेल चलता रहे.
लेकिन इस लहर में एक बड़ी ज़रूरी चीज़ छूट रही है- शौचालय. हमारी सलाह है कि योगी सरकार प्रदेश के सभी शौचालयों का रंग भी भगवा करा दे. प्रधानमंत्री जी को शौचालयों से इतना प्रेम है कि इसके लिए वे ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत पैसा भी खूब देंगे.
और इस तरह एक ही तीर से दो प्रेम सफल हो जाएंगे- भगवा प्रेम और शौचालय प्रेम.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता हैं और भोपाल में रहते हैं)