बिजली गिरने से होने वाली मौतों को प्राकृतिक आपदा के रूप में देखने की मांग

बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की मांग है कि बिजली गिरने से होने वाली मौतों को प्राकृतिक आपदा के रूप में देखा जाए. इसकी अधिसूचना जारी होने के बाद पीड़ित राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) से मुआवज़ा पाने के हक़दार होंगे. एसडीआरएफ को लगभग 75 फीसदी धनराशि केंद्र से मिलती है.

(फाइल फोटो: एपी/पीटीआई)

बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की मांग है कि बिजली गिरने से होने वाली मौतों को प्राकृतिक आपदा के रूप में देखा जाए. इसकी अधिसूचना जारी होने के बाद पीड़ित राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) से मुआवज़ा पाने के हक़दार होंगे. एसडीआरएफ को लगभग 75 फीसदी धनराशि केंद्र से मिलती है.

(फाइल फोटो: एपी/पीटीआई)

नई दिल्ली: एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि केंद्र सरकार बिजली गिरने को प्राकृतिक आपदा घोषित करने के पक्ष में नहीं है, क्योंकि शिक्षा और जागरूकता के जरिये इससे होने वाली मौतों को टाला जा सकता है.

भारत दुनिया के उन पांच देशों में से एक है, जहां बिजली गिरने की पूर्व चेतावनी प्रणाली है और पूर्वानुमान पांच दिन से लेकर तीन घंटे तक उपलब्ध रहता है.

द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की मांग है कि बिजली गिरने से होने वाली मौतों को प्राकृतिक आपदा के रूप में देखा जाए. इसकी अधिसूचना जारी होने के बाद पीड़ित राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) से मुआवजा पाने के हकदार होंगे. एसडीआरएफ को लगभग 75 फीसदी धनराशि केंद्र से मिलती है.

वर्तमान मानदंडों के अनुसार, चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, कीटों का हमला, पाला गिरना और शीत लहर को आपदा माना जाता है, जो एसडीआरएफ के अंतर्गत आते हैं.

बिहार के आपदा प्रबंधन मंत्री शाहनवाज आलम ने द हिंदू को बताया कि बिहार सबसे संवेदनशील राज्यों में से एक है और इस साल 6 जुलाई तक राज्य में बिजली गिरने से 107 लोगों की मौत हो गई है.

आलम ने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों में बिजली गिरने से होने वाली मौतों में उछाल आया है. संभव है कि जलवायु परिवर्तन भी इसका एक कारण हो. पिछले पांच सालों में बिहार में 1500 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. 25 जून, 2020 को बिजली गिरने से एक ही दिन में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.’

उन्होंने कहा कि उन्होंने 13 जुलाई को दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में राज्यों के आपदा प्रबंधन मंत्रियों की बैठक में यह मुद्दा उठाया था. मंत्री ने कहा कि लोगों को समय पर अलर्ट भेजा जाता है और लोगों को बिजली से जुड़े खतरों के बारे में जागरूक करने के लिए पंचायत स्तर पर पर्चे वितरित किए जाते हैं.

आलम ने कहा, ‘कई बार लोग संदेश को स्वीकार करते हैं और पर्याप्त सावधानी बरतते हैं, लेकिन खेती के चरम मौसम के दौरान कभी-कभी लोग चेतावनियों को नजरअंदाज कर देते हैं.’

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, वर्ष 2021 में बिजली गिरने से 2,880 लोगों की मौत हुई थी. प्राकृतिक प्रभावों के कारण हुईं कुल आकस्मिक मोतों में इनकी संख्या 40 फीसदी थी.

जहां 2020 में 2,862 लोगों की मौत हुई, वहीं 2019 में यह संख्या 2,876 हो गई. प्रकृति से संबंधित घटनाओं के कारण होने वाली कुल आकस्मिक मौतों की तुलना में ऐसी मौतों के अनुपात में वृद्धि हुई है.

उदाहरण के लिए 2003 में बिजली गिरने से होने वाली मौतें प्राकृतिक प्रभावों के कारण होने वाली कुल मौतों का केवल 0.2 फीसदी थीं.

मार्च में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक द्वारा दी गई एक प्रस्तुति के अनुसार, बिजली गिरने की आवृत्ति पूर्वोत्तर राज्यों और पश्चिम बंगाल, सिक्किम, झारखंड, ओडिशा और बिहार में अधिकतम थी, लेकिन मध्य भारतीय राज्यों मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में मौतों की संख्या अधिक रही.