संशोधित नियमों के तहत केंद्र को गंभीर कदाचार या अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए पेंशनभोगी के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए अब राज्य सरकार से संदर्भ (रिफरेंस) का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा. सूत्रों के मुताबिक, अब ख़ुफ़िया संगठन में काम कर चुके कर्मचारी के ख़िलाफ़ संवेदनशील जानकारी का खुलासा करने वाली किताबें लिखने पर कार्रवाई हो सकती है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने आईएएस, आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) और आईएफओएस (भारतीय वन सेवा) पेंशनभोगियों के सेवानिवृत्ति लाभों से संबंधित नियमों में संशोधन किया है, जिससे उसे उनके खिलाफ गंभीर कदाचार या गंभीर अपराध के दोषी पाए जाने की स्थिति में कार्रवाई करने और राज्य सरकार के संदर्भ (रिफरेंस) के बिना भी उनकी पेंशन रोकने या वापस लेने का अधिकार मिल गया है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) संशोधन नियम 2023 के संबंध में 6 जुलाई की अधिसूचना में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने कहा कि ‘गंभीर कदाचार’ में आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम में उल्लिखित किसी दस्तावेज या जानकारी का संचार या खुलासा शामिल है और ‘गंभीर अपराध’ में आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत अपराध से जुड़ा कोई भी अपराध शामिल है.
सरकार के सूत्रों ने अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम 1958 के पुराने नियम 3(3) की ओर इशारा किया, जिसमें कहा गया था कि अगर सेवानिवृत्ति के बाद कोई पेंशनभोगी दोषी पाया जाता है तो केंद्र सरकार संबंधित राज्य सरकार के संदर्भ पर उसकी पेंशन या इसके किसी भी हिस्से को रोक या वापस ले सकती है.
डीओपीटी के एक सूत्र ने कहा कि इसका मतलब यह है कि केंद्र को गंभीर कदाचार का दोषी पाए गए या अदालत द्वारा गंभीर अपराध के लिए दोषी ठहराए गए पेंशनभोगी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए राज्य सरकार के संदर्भ (रिफरेंस) का इंतजार नहीं करना पड़ सकता है.
एक राज्य सरकार जुड़े एक सूत्र ने कहा कि अगर संबंधित राज्य सरकार ऐसे मामलों में ऐसे रिफरेंस नहीं भेजती है, तो केंद्र सरकार कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर सकती है.
इस संशोधन के पीछे तर्क यह था कि कभी-कभी संबंधित राज्य सरकारें अदालतों द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद भी सेवानिवृत्त अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए संदर्भ नहीं भेजती हैं.
अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति से संबंधित केंद्र के नियमों की प्रयोज्यता (Applicability ∼ प्रासंगिक या उपयुक्त होने की गुणवत्ता) पर भी केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकारें दो साल पहले और उससे पहले आमने-सामने थीं.
अखिल भारतीय सेवाओं की प्रकृति को देखते हुए केंद्र सरकार अक्सर राज्य सरकारों के संदर्भ के बिना ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में असहाय होती है.
संशोधित नियम दोहराते हैं कि पेंशन रोकने या वापस लेने पर केंद्र सरकार का निर्णय ‘अंतिम होगा.’
नए नियम में कहा गया है कि किसी सेवा का कोई भी सदस्य जिसने किसी भी खुफिया या सुरक्षा-संबंधित संगठन में काम किया है, ‘ऐसे संगठन के प्रमुख से पूर्व मंजूरी के बिना, सेवानिवृत्ति के बाद संगठन के डोमेन से संबंधित किसी भी सामग्री का कोई प्रकाशन नहीं करेगा.’
डीओपीटी के सूत्र ने कहा, ‘इसका मतलब है कि मीडिया में कहने और लिखने और संवेदनशील जानकारी का खुलासा करने वाली किताबें लिखने पर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी.’
केंद्रीय सिविल सेवाओं के लिए संबंधित पेंशन नियमों में भी 2021 में ऐसा ही संशोधन किया गया था.
जिन अधिकारियों ने खुफिया या सुरक्षा-संबंधित संगठनों के साथ काम किया है, उन्हें नए नियमों का पालन करने का वचन देना होगा और सेवाओं के सेवानिवृत्त सदस्य की ओर से इस तरह के वचन का पालन करने में किसी भी विफलता को ‘गंभीर कदाचार माना जाएगा.’