छत्तीसगढ़ की एक अदालत ने 29 युवकों की ज़मानत याचिका ख़ारिज कर दी है. एसटी/एससी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले इन युवकों ने कथित फ़र्ज़ी जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर सरकारी नौकरियों में भर्ती पर राज्य की निष्क्रियता के ख़िलाफ़ विधानसभा के पास नग्न प्रदर्शन किया था.
नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ की एक अदालत ने बुधवार (19 जुलाई) को उन 29 लोगों की जमानत याचिका खारिज कर दी, जिन्हें मंगलवार (18 जुलाई) को रायपुर में विधानसभा के पास नग्न अवस्था में विरोध प्रदर्शन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
ये सभी युवक अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति से हैं. कथित फर्जी जाति प्रमाण-पत्रों के आधार पर सरकारी नौकरियों में भर्ती पर राज्य की निष्क्रियता के खिलाफ ये विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, उनके वकील प्रमोद नवरत्न ने कहा, ‘हमने तर्क दिया कि ये युवा छात्र हैं और अपने अधिकारों के लिए विरोध कर रहे थे. उन पर दंगा करने और पुलिस पर हमला करने के झूठे आरोपों के तहत मामला दर्ज किया गया है, जबकि पुलिस ने ही हिरासत में उनके साथ मारपीट की है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘माननीय अदालत ने यह कहते हुए उनकी जमानत खारिज कर दी कि प्रदर्शनकारी अलग-अलग जिलों से हैं, इस कृत्य से लोगों को असुविधा हुई और अगर इस स्तर पर उन्हें जमानत का लाभ दिया जाता है तो इससे इस तरह के और विरोध प्रदर्शनों को बढ़ावा मिलेगा.’
रिपोर्ट के अनुसार, मामला 2020 का है, जब साल 2000 से 2020 के बीच कथित रूप से फर्जी जाति प्रमाण-पत्रों के आधार पर दी गईं सरकारी नौकरियों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया था. उस समय समिति ने 758 सरकारी कर्मचारियों के जाति प्रमाण-पत्रों की जांच की और 267 प्रमाण-पत्रों को फर्जी पाया था. सामान्य प्रशासन विभाग ने नवंबर 2020 में अतिरिक्त मुख्य सचिव को समिति की रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के लिए लिखा था.
गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के परिवार के कुछ सदस्यों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि वे लोग स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे और दो वर्षों में कई विरोध प्रदर्शनों के बावजूद सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया है.
प्रदर्शन में शामिल गिरफ्तार किए गए लोगों में से एक बिलासपुर के 23 वर्षीय एलएलबी द्वितीय वर्ष के छात्र हरेश बंजारे के चचेरे भाई पिंटू बंजारे ने कहा, ‘हरेश और उनकी स्नातक बहन ने सरकारी नौकरी पाने की कोशिश की, लेकिन इसके बजाय फर्जी प्रमाण पत्र वाले लोगों को यह मिल रही है.’
उन्होंने कहा, ‘दिसंबर 2022 में जब मुख्यमंत्री बघेल हमारे जिले में आए तो हमने काले झंडे लहराए. उन्होंने इस साल जून में रायपुर में अन्य लोगों के साथ चार दिनों तक भूख हड़ताल की, जिसके बाद सरकार की ओर से एक मध्यस्थ भेजा गया, लेकिन उन्होंने हमारे प्रति कोई सम्मान नहीं दिखाया और कहा कि अगर हमें कुछ भी हुआ तो सरकार को कोई परवाह नहीं होगी. यहां तक कि हिरासत में भी पुलिस ने उनके साथ मारपीट की.’
पुलिस ने कहा कि छह लोगों – वेंकटेश मनहर, विक्रम जांगड़े, संजीत बर्मन, अमन दिवाकर, आशुतोष जानी और विनय कौशल – के खिलाफ आपराधिक रिकॉर्ड है और उनमें से दो, मनहर और दिवाकर पर हत्या के प्रयास और डकैती का मामला दर्ज किया गया था.
इस बीच, विपक्षी भाजपा ने विधानसभा में इस मुद्दे को उठाया और युवकों की रिहाई और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के इस्तीफे की मांग की. उनके हंगामे के कारण कार्यवाही पांच मिनट के लिए स्थगित करनी पड़ी. कांग्रेस विधायकों ने पलटवार करते हुए कहा कि भाजपा सरकार के शासनकाल में भी भर्तियां हुई थीं.
दलित कार्यकर्ता और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के छत्तीसगढ़ प्रमुख डिग्री प्रसाद चौहान ने कहा, ‘कार्रवाई होने तक हम अपना विरोध जारी रखेंगे.’