सीजेआई ने न्यायाधीशों से कहा- जजों को मिली प्रोटोकॉल सुविधाओं का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने हाल ही में अपनी पत्नी के साथ की गई ट्रेन यात्रा के दौरान हुई असुविधा पर रेलवे अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगने की घटना का ज़िक्र किया है.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (फाइल फोटो: पीटीआई)

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने हाल ही में अपनी पत्नी के साथ की गई ट्रेन यात्रा के दौरान हुई असुविधा पर रेलवे अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगने की घटना का ज़िक्र किया है.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि न्यायाधीशों को दी जाने वाली प्रोटोकॉल सुविधाओं का उपयोग ‘शक्ति या अधिकार की अभिव्यक्ति के रूप में’ नहीं किया जाना चाहिए.

सीजेआई ने सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने हाल ही में अपनी पत्नी के साथ की गई ट्रेन यात्रा के दौरान हुई असुविधा पर रेलवे अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगने की घटना का जिक्र किया है.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, सीजेआई द्वारा 19 जुलाई को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि ‘न्यायपालिका के भीतर आत्म-चिंतन और परामर्श आवश्यक है.’

पत्र में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि हाईकोर्ट के न्यायाधीश के पास रेलवे कर्मचारियों को लेकर अनुशासनात्मक क्षेत्राधिकार नहीं है और इसलिए हाईकोर्ट के किसी अधिकारी को स्पष्टीकरण मांगने का कोई अधिकार नहीं है.

इसमें कहा गया है कि 14 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (प्रोटोकॉल) द्वारा उत्तर मध्य रेलवे के महाप्रबंधक को इस संबंध में भेजे गए नोटिस ने न्यायपालिका के भीतर और बाहर दोनों जगह ‘उचित बेचैनी’ को जन्म दिया है.

सीजेआई ने जोर देकर कहा, ‘न्यायाधीशों को प्रोटोकॉल सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं उसका उपयोग विशेषाधिकार के दावे पर जोर देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, जो उन्हें समाज से या शक्ति या अधिकार की अभिव्यक्ति के रूप में अलग करता है. न्यायिक प्राधिकार का बुद्धिमानीपूर्ण प्रयोग, पीठ (Bench) के अंदर और बाहर दोनों जगह, न्यायपालिका की विश्वसनीयता और वैधता तथा समाज के न्यायाधीशों पर विश्वास को कायम रखता है.’

उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को प्रोटोकॉल सुविधाओं में सुविधाजनक आवास और सुरक्षित यात्रा के लिए कुछ संसाधनों की आवश्यकता होती है.

मालूम हो कि बीते 19 जुलाई को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (प्रोटोकॉल) ने रेलवे अधिकारियों से स्पष्टीकरण की मांग की थी, जिसमें 8 जुलाई को पुरुषोतम एक्सप्रेस में नई दिल्ली से इलाहाबाद तक प्रथम श्रेणी एसी कोच में यात्रा के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश गौतम चौधरी को हुई असुविधा का हवाला दिया गया था.

रजिस्ट्रार की ओर से जारी नोटिस में कहा गया था कि ट्रेन स्पष्ट रूप से तीन घंटे से अधिक देर से चल रही थी और संबंधित अधिकारियों को सूचित करने के बावजूद जस्टिस चौधरी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कोई भी सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) कर्मचारी कोच में मौजूद नहीं था.

रजिस्ट्रार ने शिकायत की कि इसके अलावा पेंट्री कार का कोई भी कर्मचारी जलपान उपलब्ध कराने के लिए भी जज के पास नहीं गया और पेंट्री कार मैनेजर को कॉल करने पर भी कोई जवाब नहीं मिला.