निषाद वोटों पर दावेदारी के लिए गोरखपुर में एक बार फिर जंग छिड़ी

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में ‘निषाद महाकुंभ’ का आयोजन भाजपा नेता जय प्रकाश निषाद द्वारा किया जा रहा है. इस आयोजन ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल भाजपा और निषाद पार्टी के बीच की खींचतान को एक बार फिर सबके सामने लाकर रख दिया है.

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निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद और भाजपा नेता जय प्रकाश निषाद. (सभी फोटो साभार: फेसबुक)

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में ‘निषाद महाकुंभ’ का आयोजन भाजपा नेता जय प्रकाश निषाद द्वारा किया जा रहा है. इस आयोजन ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल भाजपा और निषाद पार्टी के बीच की खींचतान को एक बार फिर सबके सामने लाकर रख दिया है.

निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद और भाजपा नेता जय प्रकाश निषाद. (फोटो साभार: फेसबुक)

गोरखपुर: निषाद वोटों पर दावेदारी के लिए उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक बार फिर जंग छिड़ गई है. निषाद समुदाय पर निषाद पार्टी के एकाधिकार को चुनौती देने के लिए 24 जुलाई को शहर में ‘निषाद महाकुंभ’ का आयोजन किया गया है.

इसके आयोजक बसपा से भाजपा में आए राज्यसभा के पूर्व सदस्य जय प्रकाश निषाद हैं. वे निषाद समाज के आरक्षण के मुद्दे को लेकर बड़ा जुटान कर अपने को निषादों के नेता के रूप में स्थापित करने में जुटे हैं.

दिलचस्प है कि डॉ. संजय निषाद के नेतृत्व वाली निषाद पार्टी भी भाजपा नीत एनडीए के साथ है और निषाद महाकुंभ का आयोजन करने वाले जय प्रकाश निषाद भी भाजपा में ही हैं. अब दोनों के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है. दोनों एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. रोज-ब-रोज आरोप-प्रत्यारोप तीखे होते जा रहे हैं.

निषाद पार्टी के नेता निषाद महाकुंभ के आयोजकों को निषाद समाज के विभीषण व गद्दार कह रहे हैं तो निषाद महाकुंभ के आयोजक निषाद पार्टी के अध्यक्ष डाॅ. संजय निषाद को निषाद समाज के वोटों का सौदा करने वाला बता रहे हैं.

इस जंग का एक दृश्य शुक्रवार (21 जुलाई) को सर्किट हाउस में तब देखने को मिला, जब जय प्रकाश निषाद की प्रेस कॉन्फ्रेंस में निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी कर दी.

सर्किट हाउस में ही संजय निषाद भी मौजूद थे. उन्हें पत्रकार वार्ता में निषाद समाज के लिए खून से पत्र लिखा और कहा, ‘खून की एक-एक बूंद मछुआ समाज के लिए समर्पित है. निषाद समाज का आरक्षण अति महत्वपूर्ण पड़ाव पर है. जल्द ही आरक्षण के मुद्दे पर केंद्र सरकार अपनी स्थिति स्पष्ट करेगी. विपक्षी नेताओं को मझवार और तुरैहा आरक्षण पर सफलता के कदम भा नही रहे है. आरक्षण की फाइल चोरी करवाने वाले आज आरक्षण के नाम पर समाज को गुमराह करने का काम कर रहे हैं. आरक्षण के मुद्दे पर वे खुले मंच पर बहस करने को तैयार है, समय और स्थान विपक्षी नेता तय कर सकते हैं.’

निषाद पार्टी महज सात वर्ष में तेजी से उभरी है. आज उसके पास उत्तर प्रदेश के विधानसभा में छह विधायक हैं. संजय निषाद के बड़े पुत्र प्रवीण निषाद संतकबीर नगर के भाजपा सांसद हैं तो छोटे बेटे सरवन निषाद चौरीचौरा से विधायक हैं.

डाॅ. संजय उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. अब वे अपने तीसरे बेटे डाॅ. अमित निषाद को लॉन्च करने की तैयारी में हैं. आज-कल निषाद पार्टी के कार्यक्रमों में देखे जा रहे हैं और उन्हें निषाद एकता परिषद का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया हैं.

संजय निषाद अब अपने संगठन को पूरे उत्तर प्रदेश में विस्तारित करने के साथ-साथ दूसरे राज्यो में भी ले जाने की कोशिश कर रहे हैं. अभी हाल में उन्होंने तमिलनाडु का दौरा किया है. नगर निकाय चुनाव में वे निषाद पार्टी से कई जिलों में अपने प्रत्याशी चुनाव लड़ाना चाहते थे, लेकिन भाजपा ने उनकी इच्छा को ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

निषाद पार्टी के आधा दर्जन से अधिक प्रत्याशी चुनाव मैदान में कूद गए, जिन्हें चुनाव नहीं लड़ने का निर्देश दिया गया. इनमें से कई नहीं माने ओर बागी हो गए. संजय निषाद अब लोकसभा में अधिक से अधिक सीटे हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि अब एनडीए में ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के शामिल होने से उनके लिए ज्यादा सीटें हासिल करना बहुत मुश्किल होगा.

इस बीच अब संजय निषाद को उनके ही गढ़ में चुनौती मिलने लगी है. विधानसभा चुनाव के समय भी सर्वहारा विकास पार्टी नाम से राजनीतिक दल खड़ी कर उनके ताकत को कम करने की कोशिश की गई.

बिहार के विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुकेश सहनी ने भी निषाद बहुल सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर निषाद समाज में उनकी पैठ को कम करने की प्रयास किया.

बीते 21 जुलाई को गोरखपुर के सर्किट हाउस में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान खून से लिखे पत्र के साथ पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद. (फोटो साभार: फेसबुक)

समाजवादी पार्टी ने गोरखपुर और आसपास के जिलों में की निषाद प्रत्याशी उतार दिए, लेकिन इनमें से कोई जीत नहीं सका. संजय निषाद को कमजोर करने की कोशिशें ज्यादा सफल नहीं हुईं और वे विधानसभा में 10 सीटों में से छह जीतने में सफल रहे.

भाजपा ने वैसे तो निषाद पार्टी को 16 सीटें दी थी, जिसमें 10 उम्मीदवार निषाद पार्टी के सिंबल पर लड़े, जबकि छह भाजपा के सिंबल पर मैदान में उतरे.

संजय निषाद ने 13 जनवरी 2023 को 10वें संकल्प दिवस पर भव्य आयोजन कर अपने को निषाद समाज का एकमात्र नेता के बतौर स्थापित करने की कोशिश की. यह समारोह गोरखपुर में रामगढ़ ताल के किनारे बने महंत दिग्विजयनाथ पार्क में हुआ, जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल हुए.

इस भव्य समारोह में संजय निषाद सभा के बीचोबीच बने रैम्प पर फूलों की वर्षा के बीच आए और मंच तक पहुंचे. उस समय गाना बज रहा था- आने वाले आ गए, निषादों का झंडा लहराने वाले आ गए…’.

‘महामना’, ‘निषाद पार्टी के सुप्रीमो’, ‘पोलिटिकल गॉडफादर ऑफ फिशरमैन’ कहलाने वाले संजय निषाद की उपलब्धियों का बखान करने के लिए डॉक्यूमेंट्री दिखायी गई. 5 लाख के नोटों की माला पहनाई गई और 51 लाख की टोयोटा फॉर्च्यूनर लिजेंडर भेंट की गई.

संजय निषाद की बढ़ती राजनीतिक ताकत को दूसरे राजनीतिक दल खास कर सपा चुनौती देने की लगातार कोशिश तो कर ही रही है, भाजपा के भीतर भी उन्हें किनारे लगाने की कोशिश की जा रही है.

प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री के साथ लगातार मुलाकात की तस्वीरें तमाम बड़े भाजपा नेताओं के कलेजे में तीखे नश्तर की तरह चुभ रही है. पूर्वांचल में विधानसभा और लोकसभा सीटों को निषाद पार्टी में बांटा जाना बहुतों को अखर रहा है. ऐसा लगता है कि भाजपा की एक लॉबी अपने नेता जय प्रकाश निषाद को आगे कर संजय निषाद को चुनौती देने का प्रयास कर रही है.

जय प्रकाश निषाद 2012-17 तक चौरीचौरा से बसपा के विधायक रहे. इसके पहले बसपा सरकार ने उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दिया था. 2017 का चुनाव भी वह बसपा से चौरीचौरा से लड़े, लेकिन भाजपा की संगीता यादव से हार गए.

यह वही समय था जब निषाद पार्टी पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी थी. उसने डॉ. अयूब की पीस पार्टी से दोस्ती कर 72 सीटों पर चुनाव लड़ा. उसे सिर्फ एक सीट ज्ञानपुर पर जीत मिली, लेकिन कई सीटों पर उसे अच्छे-खासे वोट मिले. निषाद पार्टी को 2017 के विधानसभा चुनाव में कुल 5,40,539 वोट मिले.

एक साल बाद 2019 में गोरखपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ ओर सपा ने संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को प्रत्याशी बना दिया. बसपा, पीस पार्टी आदि का भी उन्हें समर्थन मिला और उन्होंने योगी आदित्यनाथ के गढ़ में भाजपा प्रत्याशी का हराकर सबको चौंका दिया.

इस परिणाम की पूरे देश में चर्चा हुई. भाजपा को निषाद मतों के अपने से दूर जाने का एहसास हुआ. निषाद समाज को अपने साथ जोड़ने के लिए जय प्रकाश निषाद को 2018 में बसपा से भाजपा में लाया गया. दो वर्ष बाद 2020 में उन्हें बेनी प्रसाद वर्मा के निधन से खाली हुई सीट पर भाजपा ने उन्हें जिता कर राज्यसभा का सदस्य बना दिया.

एक कार्यक्रम के दौरान भाजपा नेता जय प्रकाश निषाद.

एक वर्ष से कुछ अधिक समय तक ही वे राज्यसभा के सदस्य रहे. उन्होंने अपना कार्यकाल चुपचाप पूरा किया और इस दौरान उनकी कोई विशेष सक्रियता नहीं देखी गई.

इसकी वजह यह भी हो सकती है कि उनके राज्यसभा सदस्य बनने के पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में निषाद पार्टी सपा से अलग होकर भाजपा से आ मिली. डाॅ संजय की भाजपा से नजदीकियां बढ़ती चली गई और भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व उन्हें ज्यादा महत्व देने लगा.

अब अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले अचानक जय प्रकाश निषाद का सक्रिय होकर निषाद महाकुंभ आयोजित करने से राजनीतिक विश्लेषण एकबारगी तो चौंक पड़े हैं.

वह बहुत मुखर नेता नहीं हैं, लेकिन उनकी छवि सौम्य नेता की है. निषाद समाज से उनका निकट का जुड़ाव है, लेकिन उन्होंने कभी बड़ी महात्वाकांक्षा प्रकट नहीं की. वे आक्रामक नेता भी नहीं माने जाते हैं, जैसा कि सपा के रामभुआल निषाद, अमरेंद्र निषाद और काजल निषाद. उनका सभी दलों के नेताओं से अच्छे संबंध हैं.

निषाद महाकुंभ के आयोजन के सिलसिले में इन दिनों वे गोरखपुर और आसपास के जिलों का भ्रमण कर रहे हैं और उनका दावा है कि भारी भीड़ जुटेगी. उनके साथ कई पुराने निषाद नेता दिख रहे हैं.

इनमें से एक घनश्याम दत्त निषाद ने बताया कि निषाद महाकुंभ में निषाद समुदाय की सभी जातियों-उपजातियों को अनुसूचित जाति के आरक्षण की मांग की जाएगी. साथ ही विमुक्त जातियों के लिए अलग से आयोग बनाने की मांग को पुरजोर तरीके से उठाया जाएगा.

उन्होंने कहा कि यदि समुदाय को उसका संवैधानिक अधिकार नहीं मिला तो 2024 के चुनाव में हम भाजपा को डूबो देंगे. महाकुंभ में निषाद आरक्षण, विमुक्ति जाति आयोग के लिए प्रदेश और केंद्र सरकार को तीन महीने का समय दिया जाएगा और इस अवधि में हमारी मांग पूरी नहीं होती हे तो सड़क से संसद तक संघर्ष छेड़ा जाएगा.

यह पूछे जाने पर कि निषाद महाकुंभ के मुख्य आयोजक भाजपा नेता पूर्व राज्यसभा सदस्य जय प्रकाश निषाद हैं और निषाद पार्टी भी भाजपा नीत एनडीए का हिस्सा है, तब भी उनकी मांग पूरी क्यों नहीं हो पा रही है तो उनका कहना था कि जय प्रकाश निषाद ने अपने स्तर से हमारी मांगों को हमेशा उठाया है. निषाद महाकुंभ के जरिये भाजपा को सचेत करना चाहते हैं.

उन्होंने कहा कि निषाद समाज ने संजय निषाद को नकार दिया है और हम उनसे कोई उम्मीद नहीं करते हैं. वे आरक्षण की बात हमारे बीच तो करते हैं, लेकिन जब सरकार में शामिल बड़े नेताओं से मिलते हैं तो यह मुद्दा नहीं उठाते. उनके सामने सिर्फ अपने व अपने परिजनों को सत्ता सुख दिलाने के बारे में बात करते हैं. उन्होंने अपनी भोजन भरी थाली (निषाद पार्टी का चुनाव चिह्न) भाजपा को खाने के लिए दे दी है. पार्टी के सिंबल से भाजपा नेता चुनाव लड़ते हैं. टिकट को बेचा जाता है. अब उनके पास पेड वर्कर ही बचे हुए हैं.

निषाद महाकुंभ के आयोजकों ने कहा है कि इस आयोजन में किसी राजनीतिक दल का झंडा नहीं लगेगा और किसी भी दल के महत्व या विरोध में भाषण नहीं होगा. समाज को संवैधानिक अधिकार दिलाने और संघर्ष की रणनीति पर ही विचार होगा.

एक कार्यक्रम के दौरान योगी आदित्यनाथ के साथ संजय निषाद.

जय प्रकाश निषाद ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘निषाद महाकुंभ किसी पार्टी या संगठन का आयोजन नहीं है. यह आयोजन निषाद समाज का है. हम इसके जरिये केंद्र और प्रदेश सरकार से कहना चाहते हैं कि वे हमारी मांगों के बारे में सीधे समाज को संबोधित करे. हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि हमारे वोटों का सौदा करने वाले और बारगेनिंग कर अपने परिवार का भला करने वाले को बीच में लाने की जरूरत नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने निषाद पार्टी को 16 टिकट दिए, लेकिन ये टिकट समाज के लिए संघर्ष करने वालों को नहीं मिले. इससे समाज में बहुत तकलीफ है.’

उनका कहना था कि समाज के लोग भाजपा से नाराज नहीं हैं. बस वे चाहते हैं कि उन्हें, जो हक मिलना चाहिए उन्हें सीधे दिया जाए न कि बिचौलियों के जरिये. उन्होंने दावा किया कि निषाद महाकुंभ में इतनी भीड़ जुटेगी कि अब तक के सभी रिकार्ड टूट जाएंगे.

निषाद महाकुंभ के आयोजन से निषाद पार्टी में बेचैनी देखी जा रही है. पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद का 21 जुलाई को कार्यकर्ताओं के बीच संबोधन इसकी एक बानगी है.

उन्होंने जय प्रकाश निषाद का नाम न लेते हुए उन्हें निषाद समाज का ‘गद्दार, विभीषण और आस्तीन का सांप’ बताते हुए ऐसे लोगों को खदेड़ने को कहा.

उनका कहना था कि सारी कवायद ‘हाथी वाले साथी’ को पद दिलाने की है. जो नेता कमल (भाजपा) का विरोध करता है, ‘भोजन भरी थाली’ का विरोध करता है वह कभी निषाद समाज का नहीं हो सकता.

उन्होंने कहा, ‘मुझे प्रधानमंत्री ने देश के मछुआरों का नेता माना है. मेरे विरोध में जो आता है, खुद समाप्त हो जाता है. वर्ष 2016 में एक ‘बिहारी भाई’ आए थे, आज देखिए वे किस हालत में हैं.’

परिवारवाद के आरोपों पर सफाई देते हुए उन्होंने कहा, ‘हमारे परिवार के सभी सदस्य रेल में सवार है. उन्होंने निषाद समाज के हक के लिए लाठी-डंडे खाए हैं.’

रामगढ़ ताल के किनारे निषाद पार्टी ने कई बड़ी रैलियां की है. उसी जगह पर अब निषाद नेताओं द्वारा निषाद महाकुंभ का आयोजन कर पहली बार संजय निषाद को सीधी चुनौती दी गई है. अब निषाद महाकुंभ में निषाद समाज की भागीदारी ही तय करेगी कि निषाद पार्टी की नाव फंसती है या पार होती है.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं)

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