केरल हाईकोर्ट एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसे वर्ष 2012 में तिरुवनंतपुरम के थंपनूर रेलवे स्टेशन पर एक रेलवे पुलिसकर्मी की बंदूक से चली गोली लग गई थी. फैसले में अदालत ने रेलवे को आदेश दिया कि वह व्यक्ति को 8.2 लाख रुपये की राशि बतौर मुआवज़ा प्रदान करे.
नई दिल्ली: केरल हाईकोर्ट ने 2012 में एक रेलवे पुलिसकर्मी की गोली लगने से घायल हुए एक व्यक्ति की शिकायत को संबोधित करने में देरी पर भारतीय रेलवे को फटकार लगाई.
बार एंड बेंच के मुताबिक, जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा, ‘रेलवे ‘वंदे भारत’, ‘राजधानी’, ‘जन शताब्दी’ जैसी तेज़ ट्रेनें शुरू कर रहा है, लेकिन रेलवे को नागरिकों की इस प्रकार की शिकायतों का निवारण भी तेजी से करना चाहिए, ताकि नागरिकों को मुकदमेबाजी में घसीटे बिना उनमें विश्वास पैदा किया जा सके.’
उन्होंने कहा कि रेलवे की ओर से नागरिकों को अनावश्यक रूप से मुकदमेबाजी में घसीटना सही नहीं है. कोर्ट ने रेलवे को याचिकाकर्ता को 8.2 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया.
याचिकाकर्ता 2012 में तब घायल हो गया था, जब वह तिरुवनंतपुरम के थंपनूर रेलवे स्टेशन पर आरक्षण काउंटर की ओर जा रहा था. उस दौरान स्टेशन पर एक रेलवे पुलिसकर्मी की बंदूक से गोली चल गई, जो याचिकाकर्ता के पेट में जा लगी. उनके मामले की जांच करने के बाद रेलवे के विशेष बोर्ड ने उन्हें मुआवजे के रूप में 1.20 लाख रुपये की पेशकश की थी.
हालांकि, इसके बाद उन्होंने यह तर्क देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि मुआवजे में दी गई राशि उनके द्वारा झेले गए आघात के स्तर के लिए पर्याप्त नहीं है. उन्होंने अपनी याचिका में यह भी कहा कि चोट के कारण वह स्थायी रूप से विकलांग हो गए हैं और सामान्य जीवन जीने में सक्षम नहीं हैं. उन्होंने मुआवजे के तौर पर 20 लाख रुपये की मांग की थी.
याचिकाकर्ता के मेडिकल रिकॉर्ड की जांच करने और उसकी पीड़ा पर विचार करने के बाद अदालत ने रेलवे की खिंचाई करते हुए रेलवे को व्यक्ति को 8.20 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया. इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता उक्त राशि पर घटना की तारीख से 9 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज का भी हकदार है.
न्यायाधीश ने रेलवे को सलाह देते हुए कहा, ‘मेरी सुविचारित राय है कि इस तरह की स्थिति में रेलवे को आगे आना चाहिए था और याचिकाकर्ता से कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए कहे बिना उसकी शिकायत का निवारण करना चाहिए था.’
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