पिछले पांच साल में सीवर, सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए 339 लोगों की मौत: सरकार

सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने लोकसभा में बताया कि 2023 में अब तक इस तरह की नौ मौतें, 2022 में 66, 2021 में 58, 2020 में 22, 2019 में 117 और 2018 में 67 मौतें दर्ज की गईं. 

​​(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने लोकसभा में बताया कि 2023 में अब तक इस तरह की नौ मौतें, 2022 में 66, 2021 में 58, 2020 में 22, 2019 में 117 और 2018 में 67 मौतें दर्ज की गईं.

​​(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने कहा कि 2018 और 2023 के बीच भारत में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करते हुए 339 लोगों की जान चली गई.

सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि 2023 में इस तरह के मृत्यु के नौ मामले सामने आए, वहीं, 2022 में 66, 2021 में 58, 2020 में 22, 2019 में 117 और 2018 में 67 ऐसे मामले सामने आए.

सरकार ने कहा कहा कि देश में मैला ढोने की प्रथा प्रतिबंधित है. मंत्री ने कहा, ‘सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई और मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार पर प्रतिबंध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 और एमएस नियम 2013 के तहत निर्धारित सुरक्षा सावधानियों का पालन न करने के कारण राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में मौतें हुई हैं.’

मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.

इस सवाल के जवाब में कि क्या सफाईकर्मियों की मुक्ति और पुनर्वास की स्व-रोजगार योजना को बजट 2023-24 से हटा दिया गया है, मंत्री ने कहा कि इस योजना का नाम बदलकर नेशनल एक्शन प्लान फॉर मैकेनाइज्ड सैनिटेशन इकोसिस्टम (NAMASTE/नमस्ते) कर दिया गया है.

मार्च 2022 में द वायर पर प्रकाशित एक लेख में शोधकर्ता जावेद आलम खान और राहत तस्नीम ने कहा था, ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग के अस्तित्व के संबंध में सरकार का इनकार किसी भी वास्तविक प्रगति में हानिकारक साबित हो रहा है.’

मैला ढोने वालों की मुक्ति और पुनर्वास की स्व-रोज़गार योजना (एसआरएमएस) इस प्रथा के उन्मूलन के लिए सबसे महत्वपूर्ण सरकारी हस्तक्षेपों में से एक है. राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम (एनएसकेएफडीसी) द्वारा 10 साल से अधिक समय पहले लागू किया गया है लेकिन यह अपने लक्ष्यों को पूरा करने से बहुत दूर है. 2007 में लॉन्च किए गए एसआरएमएस का उद्देश्य 2009 तक मैनुअल स्कैवेंजर्स और उनके आश्रितों को वैकल्पिक व्यवसायों में पुनर्वास करना था.

मालूम हो कि बीते एक फरवरी को इस वर्ष के केंद्रीय बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई की खतरनाक प्रथाओं से बचने के लिए सरकार के 100 प्रतिशत मशीनीकृत सीवर सफाई पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया था.

उन्होंने कहा था कि सफाई को ‘मैनहोल टू मशीनहोल’ मोड में लाया जाएगा. साथ ही कहा था कि सीवर में गैस से होने वाली मौतों को रोकने के लिए शहरी स्वच्छता में मशीनों के उपयोग पर ध्यान दिया जाएगा.

देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है और आए दिन सीवर सफाई के दौरान लोगों की मौत की खबरें आती रहती हैं.