केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने लोकसभा में एक सवाल के लिखित उत्तर में ये आंकड़े उपलब्ध कराए हैं. पश्चिम बंगाल ने वित्त वर्ष 2022-23 में सबसे अधिक 83.36 लाख श्रमिकों के नाम योजना से हटा दिए हैं. दिसंबर 2021 से इस राज्य को इस योजना के लिए केंद्र सरकार से धन नहीं मिला है.
नई दिल्ली: देश भर की राज्य सरकारों ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा MGNREGS) के तहत पंजीकृत 5.18 करोड़ श्रमिकों के नाम हटा दिए हैं.
यह पिछले वित्त वर्ष की तुलना में मजदूरों को हटाने के आंकड़ों में 247 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है.
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने बीते मंगलवार (25 जुलाई) को लोकसभा में एक एक सवाल के लिखित उत्तर में ये आंकड़े उपलब्ध कराए हैं.
सिंह के जवाब में कहा गया है कि श्रमिकों को हटाए जाने के कई कारण थे, जिनमें ‘1. फर्जी जॉब कार्ड, 2. डुप्लीकेट जॉब कार्ड, 3. अब काम करने को तैयार नहीं, 4. परिवार ग्राम पंचायत से स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गया और 5. जॉब कार्ड में एकल व्यक्ति और उसकी मृत्यु हो गई है, आदि कारण थे.’
वह कांग्रेस सांसद वीके श्रीकंदन और गौरव गोगोई के एक सवाल का जवाब दे रहे थे, जिन्होंने पूछा कि क्या यह सच है कि मनरेगा प्रणाली से एक करोड़ से अधिक नाम हटा दिए गए हैं और अगर हां, तो क्यों?
मनरेगा देश में ग्रामीण परिवारों को विशेष रूप से अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी पर 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देता है. योजना के तहत काम में शारीरिक श्रम शामिल है. इसमें निर्माण, वनीकरण और भूमि-समतलीकरण जैसी गतिविधियां शामिल हैं.
सिंह ने अपने जवाब में स्पष्ट किया कि ‘सिस्टम एरर’ श्रमिकों का नाम हटाने का कारण नहीं था.
हालांकि, द हिंदू ने बताया है कि नाम हटाए जाने का एक कारण यह है कि राज्य सरकारें अपने मनरेगा जॉब कार्ड और आधार कार्ड के बीच पंजीकृत श्रमिकों के विवरण में अंतर को सुलझाने में असमर्थ हैं.
दरअसल मजदूरों को इन दोनों कार्डों को लिंक करना पड़ा है, क्योंकि केंद्र सरकार ने इस साल की शुरुआत में मनरेगा के लिए भुगतान अनिवार्य रूप से बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली ‘आधार’ के माध्यम से करने का निर्णय लिया था.
केंद्र सरकार ने इस साल जनवरी से इस ‘आधार-आधारित भुगतान प्रणाली’ को अनिवार्य बनाने की समयसीमा कई बार बढ़ाई है.
द हिंदू ने पिछले महीने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था, हालांकि समयसीमा के इन विस्तारों ने राज्य सरकारों को [मनरेगा प्रणाली से] उन श्रमिकों को हटाने से नहीं रोका, जिनके दोनों डेटाबेस के बीच विसंगतियां हैं.
यह पूछे जाने पर कि सरकार मनरेगा में त्रुटियों के लिए निचले स्तर के अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराने के लिए क्या कदम उठा रही है, गिरिराज सिंह ने जवाब दिया कि योजना को ठीक से लागू करने के लिए राज्य सरकारें जिम्मेदार थीं.
जवाब में दिए गए ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल ने पिछले वित्त वर्ष में योजना से 83.36 लाख श्रमिकों के नाम हटा दिए हैं. यह उस समयावधि में किसी भी राज्य द्वारा हटाए जाने की सबसे अधिक संख्या है.
पश्चिम बंगाल में बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने का एक कारण यह हो सकता है कि राज्य सरकार की ओर से भ्रष्टाचार और दुर्भावना के आरोपों के बाद दिसंबर 2021 से राज्य को इस योजना के लिए केंद्र सरकार से धन नहीं मिला है.
इसका मतलब है कि राज्य सरकार अपने मनरेगा श्रमिकों को उचित मुआवजा देने में असमर्थ है।
मनरेगा योजना को प्रवासी श्रमिकों को रोजगार सुरक्षा प्रदान करने के लिए जाना जाता है और यहां तक कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण श्रमिकों के लिए ‘उद्धारक’ के रूप में भी इसकी सराहना की गई थी.
पश्चिम बंगाल में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस पार्टी का शासन है, जो भाजपा के विरोध में है.
ग्रामीण विकास राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने डीएमके सांसद एकेपी चिनराज के एक सवाल के जवाब में कहा कि राज्य सरकार पर 21 जुलाई तक केंद्र सरकार से मनरेगा मजदूरी भुगतान का कुल 2,765.55 करोड़ रुपये बकाया है.
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