‘डेटा सेट से नाख़ुश’ मोदी सरकार ने एनएफएचएस तैयार करने वाले संस्थान के निदेशक को सस्पेंड किया

केंद्र सरकार ने इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (एनएफएचएस) के निदेशक केएस जेम्स को भर्ती में अनियमितता का हवाला देते हुए निलंबित कर दिया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला आईआईपीएस राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण तैयार करता है.

/
प्रोफेसर केएस जेम्स. (फोटो साभार: आईआईपीएस वेबसाइट)

केंद्र सरकार ने इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (एनएफएचएस) के निदेशक केएस जेम्स को भर्ती में अनियमितता का हवाला देते हुए निलंबित कर दिया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला आईआईपीएस राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण तैयार करता है.

प्रोफेसर केएस जेम्स. (फोटो साभार: आईआईपीएस वेबसाइट)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस) के निदेशक केएस जेम्स को निलंबित कर दिया है. सूत्रों ने द वायर को बताया कि इसके लिए जेम्स की भर्ती में अनियमितता का हवाला दिया गया है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला आईआईपीएस राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) तैयार करता है. साथ ही, भारत सरकार की ओर से ऐसे अन्य महत्वपूर्ण कार्य करता है.

द वायर ने मंत्रालय से संपर्क किया लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. मंत्रालय के जवाब देने पर रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.

हालांकि, आईआईपीएस के सार्वजनिक स्वास्थ्य और मृत्यु अध्ययन विभाग के एक स्रोत ने द वायर से पुष्टि की है कि एक निलंबन पत्र जारी किया गया है और अधिक जानकारी सोमवार को मिलेगी.

सूत्रों के अनुसार,  जेम्स को सरकार ने पहले इस्तीफा देने के लिए कहा था क्योंकि सरकार आईआईपीएस द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में सामने आए कुछ डेटा सेटों से खुश नहीं थी. हालांकि, वे इस कारण पद छोड़ने के लिए अनिच्छुक थे.

बताया गया है कि उन्हें निलंबन पत्र 28 जुलाई की शाम को भेजा गया.

असुविधाजनक डेटा? 

ऐसी सरकार जो ऐसा मजबूत और ‘सकारात्मक’ डेटा चाहती है, जो उसके चुनावी जीत के राजनीतिक अभियान फिट बैठे, उसके लिए एनएफएचएस-5 ने कई असुविधाजनक डेटा सेट पेश किए हैं.

उदाहरण के लिए, इसमें सामने आया कि भारत खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) होने के कहीं भी करीब नहीं है- यह दावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत यह सरकार अक्सर करती रहती है. एनएफएचएस-5 ने बताया था कि उन्नीस प्रतिशत परिवार किसी भी शौचालय सुविधा का उपयोग नहीं करते हैं, जिसका अर्थ है कि वे खुले में शौच करते हैं.

इसमें कहा गया था कि लक्षद्वीप को छोड़कर किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश ऐसा नहीं है, जहां 100% आबादी के पास शौचालय हैं.

एनएफएचएस-5 ने यह भी बताया था कि 40% से अधिक घरों में खाना पकाने के स्वच्छ ईंधन तक पहुंच नहीं थी- यह उज्ज्वला योजना की सफलता के दावों पर सवाल खड़ा करता है. इसमें कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आधी से अधिक (57%) आबादी की पहुंच एलपीजी या प्राकृतिक गैस तक नहीं है.

एनएफएचएस-5 ने यह भी कहा था कि भारत में एनीमिया बढ़ रहा है. हाल में आईं कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि सरकार एनएफएचएस-6 के लिए एनीमिया के मापदंड को हटाने पर विचार कर रही है.

संयोगवश, हाल ही में प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य शमिका रवि ने इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा था जिसमें दावा किया गया था कि एनएफएचएस और ऐसे अन्य सर्वेक्षणों के लिए डेटा संग्रह त्रुटिपूर्ण था. उनके लेख की अमिताभ कुंडू और पीसी मोहनन ने अख़बार में प्रकाशित एक अन्य लेख में आलोचना की थी.

ज्ञात हो कि जेम्स को 2018 में मुंबई स्थित इस संस्थान का निदेशक नियुक्त किया गया था. उनके पास हार्वर्ड सेंटर फॉर पॉपुलेशन एंड डेवलपमेंट से पोस्टडॉक्टरल की डिग्री है. आईआईपीएस में शामिल होने से पहले वह जेएनयू में जनसंख्या अध्ययन के प्रोफेसर थे.

डेटा और केंद्र सरकार

केंद्र सरकार डेटा को लेकर इसके असहज रवैये को लेकर अक्सर खबरों में रही है. इसने अपने पहले कार्यकाल में इसके खुद के उपभोग व्यय सर्वेक्षण को बेकार करार देने ने कई सवाल खड़े किए थे.

जनवरी 2019 में सरकार ने बेरोजगारी के आंकड़ों को रोक लिया और आम चुनाव खत्म होने के बाद ही इसे जारी किया गया  इसके चलते राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के सदस्यों को इस्तीफा देना पड़ा था, इसमें शीर्ष सांख्यिकी निकाय के कार्यवाहक अध्यक्ष पीसी मोहनन भी शामिल थे.

मोहनन ने तब कहा था कि सरकार आयोग के काम को गंभीरता से नहीं ले रही है और सदस्यों की सलाह को नज़रअंदाज़ कर रही है. उस समय इस्तीफ़ा देने वाले दोनों सदस्यों का कार्यकाल जून 2020 तक का था.

इसके साथ ही, 2021 में होने वाली दशकीय जनगणना को इस सरकार द्वारा  गया है. 150 साल में यह पहली बार हुआ है कि जनगणना स्थगित की गई है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)