सुप्रीम कोर्ट वर्ष 2019 में एक दो वर्षीय शिशु द्वारा अपनी मां के माध्यम से दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कॉरपोरेट अस्पतालों के किडनी रैकेट की जांच सीबीआई या एसआईटी से कराने की मांग की गई थी. अदालत ने कहा कि यह पुलिस और कार्यकारी तंत्र के माध्यम से निपटने वाले प्रशासनिक मुद्दे हैं.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (28 जुलाई) को 2019 में दो वर्षीय शिशु द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें उसने कई राज्यों के कॉरपोरेट अस्पतालों की संलिप्तता वाले ‘वृहद स्तरीय’ और ‘सुव्यवस्थित’ किडनी प्रत्यारोपण घोटाले की शिकायतों की सीबीआई या एसआईटी से जांच कराने की मांग की थी.
एनडीटीवी के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें सभी गलत चीजों के लिए ‘रामबाण’ नहीं हो सकती हैं.
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि अदालत सब कुछ करने का प्रयास करने वाली सर्वव्यापी प्रणाली की तरह नहीं हो सकती. इसने कहा कि यह पुलिस और कार्यकारी तंत्र के माध्यम से निपटने वाले प्रशासनिक मुद्दे हैं.
अगस्त 2019 में अपनी मां के माध्यम से अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले एक 23 महीने के शिशु की याचिका पर शीर्ष अदालत ने केंद्र और अन्य से जवाब मांगा था.
बच्चा वेस्ट सिंड्रोम से पीड़ित था, यह एक ऐसी स्थिति जिसमें बच्चों को दौरे पड़ते हैं और उनमें ज्ञान-समझ एवं विकासात्मक कमी देखी जाती है. एक निजी अस्पताल में उसके जन्म के समय इस बीमारी ने उसे मानसिक रूप से विकलांग बना दिया था.
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील सचिन जैन ने पीठ को 2023 में कथित किडनी रैकेट के पांच हालिया मामलों के बारे में बताया और जस्टिस (सेवानिवृत्त) जेएस वर्मा समिति की जनवरी 2013 की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें बच्चों को जबरन श्रम, यौन शोषण और अवैध मानव अंग व्यापार का शिकार बनाने के मुद्दे को उठाया था.
पीठ ने कहा, ‘हम याचिका पर आगे विचार करने के इच्छुक नहीं हैं, लेकिन प्रतिवादियों (केंद्र और अन्य) से अनुरोध करते हैं कि वे याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दे पर गौर करें और आवश्यक कार्रवाई करें, खासकर जस्टिस जेएस वर्मा समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए.’
सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा, ‘क्या सुप्रीम कोर्ट के पास हर चीज, हर विभाग, हर सिस्टम के लिए कोई संचालन तंत्र है?’ जैन ने कहा कि ऐसे घोटालों के तार अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़े होते हैं और एक केंद्रीय एजेंसी को इनकी जांच का जिम्मा सौंपा जाना चाहिए.
पीठ ने कहा, ‘ये प्रशासनिक मुद्दे हैं. (इसके लिए) पुलिस तंत्र है. इनसे निपटने के लिए कार्यकारी तंत्र है. हम हर चीज का बोझ अपने ऊपर नहीं ले सकते.’
अदालत ने कहा कि यदि किसी विशेष घटना में चीजें काम नहीं कर रही हैं, तो अदालत इसकी जांच करती है और न्यायिक आदेश पारित करती है.
पीठ ने कहा, ‘यह (अदालत) उन सभी चीजों के लिए रामबाण नहीं है, जो देश में गलत हो सकती हैं.’
अगस्त 2019 में शीर्ष अदालत ने उस याचिका पर केंद्र और हरियाणा, उत्तर प्रदेश व दिल्ली राज्यों सहित अन्य से जवाब मांगा था, जिसमें कहा गया था कि जांच की निगरानी एक या अधिक पूर्व न्यायाधीशों या वरिष्ठ अधिवक्ताओं वाली समिति द्वारा की जानी चाहिए.
याचिका में केंद्र और तीन राज्यों को अंग व्यापार के खतरे के बारे में वंचित वर्गों के बीच जागरूकता पैदा करने और उन्हें उनके अधिकारों और उपायों से परिचित कराने के लिए एक अभियान चलाने का निर्देश देने की भी मांग की गई थी.
याचिका में किडनी तस्करी के बारे में मीडिया रिपोर्टों का उल्लेख करते हुए दावा किया गया था कि बड़ी संख्या में गरीब और कमजोर नागरिकों को अक्सर अपनी किडनी बेचने के लिए मजबूर किया जा रहा है और केंद्र व राज्यों ने इस धोखाधड़ी को रोकने के लिए कोई निवारक कदम नहीं उठाया है.
याचिका में आरोप लगाया गया कि अंग तस्करी में कुछ चिकित्सक शामिल थे, जो चिकित्सा उद्योग के लिए ‘कलंक’ थे, और मानवता, कानून और संपूर्ण चिकित्सा बिरादरी के लिए विध्वंसक थे.