योगी के गढ़ में भाजपा के अन्य नेताओं को आगे बढ़ाने के मायने क्या है?

उत्तर प्रदेश की गोरखपुर सीट से चार बार विधायक रहे राज्यसभा सदस्य डाॅ. राधा मोहन दास अग्रवाल को भाजपा का राष्ट्रीय महामंत्री बनाया गया है. यहीं से पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता शिव प्रताप शुक्ल को इसी साल हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया था. ये दोनों नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के क़रीबी नहीं रहे हैं, ऐसे में उनकी तरक्की राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गई है.

योगी आदित्यनाथ के साथ राधा मोहन दास अग्रवाल (दाएं से दूसरे). (फाइल फोटो साभार: फेसबुक)

उत्तर प्रदेश की गोरखपुर सीट से चार बार विधायक रहे राज्यसभा सदस्य डाॅ. राधा मोहन दास अग्रवाल को भाजपा का राष्ट्रीय महामंत्री बनाया गया है. यहीं से पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता शिव प्रताप शुक्ल को इसी साल हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया था. ये दोनों नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के क़रीबी नहीं रहे हैं, ऐसे में उनकी तरक्की राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गई है.

योगी आदित्यनाथ के साथ राधा मोहन दास अग्रवाल (दाएं से दूसरे). (फाइल फोटो साभार: फेसबुक)

गोरखपुर: उत्तर प्रदेश की गोरखपुर सीट से चार बार विधायक रहे राज्यसभा सदस्य डाॅ. राधा मोहन दास अग्रवाल को शनिवार (29 जुलाई) को भाजपा संगठन में महत्वपूर्ण ओहदा देते हुए राष्ट्रीय महामंत्री बना दिया गया. पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी सीट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़कर विधानसभा गए थे. उन्हें जुलाई 2022 में भाजपा ने राज्यसभा सदस्य बनाने के बाद लक्षद्वीप का प्रभारी और केरल का सह-प्रभारी बनाया था.

इसके पहले गोरखपुर के ही वरिष्ठ भाजपा नेता शिव प्रताप शुक्ल को फरवरी 2023 में हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया था.

गोरखपुर के बगल के जिले महराजगंज से सांसद पंकज चौधरी को दो वर्ष पहले केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री बनाया गया था. इसी महीने सात जुलाई को गीता प्रेस के शताब्दी कार्यक्रम में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक पंकज चौधरी के घर पहुंच गए और उनके परिजनों के प्रति काफी आत्मीयता प्रदर्शित की थी.

साथ ही गोरखपुर में बनी निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार निषाद को भाजपा नेतृत्व द्वारा अत्यधिक महत्व दिया जा रहा है.

इन सभी राजनीतिक घटनाक्रमों में एक समानता है. ये चारों नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी नहीं हैं और समय-समय पर योगी ने इन्हें अपने तरीके से कभी जोर का कभी धीरे का झटका दिया है. इन झटकों का दंश इन नेताओं का खूब सालता है और अंदरूनी बातचीत में रिसता भी है.

इन चार नेताओं की तरक्की को लेकर राजनीतिक विश्लेषक तरह-तरह की चर्चा कर रहे हैं.

भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बनाए गए डॉ. अग्रवाल राजनीति में आने से पहले शहर के जाने माने बाल रोग चिकित्सक थे. उन्होंने बीएचयू से एमबीबीएस, एमडी किया. वह छात्र संघ की राजनीति में सक्रिय रहे और पदाधिकारी भी चुने गए. गोरखपुर आने के बाद वह आरएसएस के सेवा कार्यों से जुड़े. वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवेद्यनाथ के काफी करीब रहे है.

आरएमडी के नाम से चर्चित वर्ष 2000 में वह राजनीति में सक्रिय होने लगे. यही दौर था जब योगी आदित्यनाथ सांसद बनने के बाद तेजी से उभर रहे थे. उनका तबके बीजेपी मंत्री शिव प्रताप शुक्ल से टकराव हुआ.

2002 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने शिव प्रताप शुक्ल के खिलाफ डॉ. अग्रवाल को हिंदू महासभा से चुनाव लड़वाया और जिताया. चुनाव जीतने के बाद वे भाजपा में शामिल हो गए. वे 2007, 2012 और 2017 विधायक चुने गए.

डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल. (फोटो साभार: फेसबुक)

वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बहुत अनिच्छा से अपनी सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए खाली करनी पड़ी. विधानसभा चुनाव के बाद उनके पास कोई पद नहीं रहा. वे फिर से चिकित्सा कार्य में लग गए लेकिन चार महीने बाद ही उन्हें राज्यसभा में ले लिया गया. फिर उन्हें लक्षद्वीप का प्रभारी, केरल का सह-प्रभारी बनाया गया और अब उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय महामंत्री बना दिया गया.

चार बार के विधायक रहे डाॅ. अग्रवाल विधानसभा में बेहद सक्रिय रहे. योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े नेता के साये के बावजूद वह भाजपा के इकलौते ऐसे विधायक रहे, जिन्होंने अपनी छवि को खुद एक अलग तरह से गढ़ा. स्वतंत्र पहलकदमी ली और इसके लिए योगी आदित्यनाथ के मुखापेक्षी (सहायता की अपेक्षा करने वाला) नहीं रहे.

योगी के बाद यदि किसी और भाजपा नेता को मीडिया में सबसे अधिक चर्चा मिलती रही तो वह डाॅ. अग्रवाल ही थे. उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी की सांप्रदायिक राजनीति से अपने को दूर रखा. उन्होंने योगी की मंडली में अपनी एक उदार राष्ट्रवादी नेता की छवि निर्मित की.

वह हर तरह की विचारधारा के लोगों से संपर्क रखते और उनके कार्यक्रमों में उपस्थिति रहते. शहर में बीजेपी के कट्टर विरोधी तमाम लोग कहते कि वे डॉ. अग्रवाल को वोट देते हैं, क्योंकि उन्हें उनमें एक आदर्श विधायक नजर आते हैं.

डॉ. अग्रवाल की स्थानीय भाजपा संगठन से कभी नहीं बनी. इसका कारण यह था कि वह संगठन के जरिये लोगों से संवाद बनाने के बजाय सीधे तौर पर संवाद-संपर्क बनाते. उन्होंने अपने संवाद-संपर्क का एक समानांतर नेटवर्क विकसित कर लिया. इससे भाजपा संगठन में उनके प्रति नाराजगी बढ़ती गई और पिछले दो चुनावों में तो भाजपा के स्थानीय संगठन द्वारा उन्हें टिकट न देने की भी खुले तौर से मांग की गई थी.

शहर के तमाम लोगों को लगता है कि योगी आदित्यनाथ और डॉ. अग्रवाल की राजनीति अलग-अलग है. दो दशक में कई मौकों पर कई मुद्दों पर दोनों का स्टैंड अलग-अलग रहा और दोनों के बीच शीतयुद्ध गरम होने की खबरें आती रहीं.

चार बार से लगातार विधायक चुने जाने के बावजूद उन्हें सरकार या संगठन में कोई महत्वपूर्ण पद नहीं मिला. डॉ. अग्रवाल ने मंत्री बनने की इच्छा को फेसबुक पर यह लिखकर सार्वजनिक किया कि ‘शायद ईश्वर उन्हें इससे बड़ी भूमिका में देखना चाहता है’.

पिछले चार वर्षों से वे गोरखपुर की राजनीति में प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने लगे थे. वे विभिन्न मुद्दों पर सरकारी तंत्र से भिड़ने लगे. बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एनआरएचएम संविदा कर्मियों को वेतन न मिलने पर वे धरने पर बैठ गए. मजदूर दिवस पर उप-श्रम आयुक्त कार्यालय में आयोजित समारोह में उन्होंने आरोप लगा दिया कि कि श्रम विभाग अपनी योजनाओं को असली लाभार्थियों तक नहीं पहुंचा पा रहा है.

एक कार्यक्रम के दौरान राधा मोहन दास अग्रवाल. (फाइल फोटो साभार: फेसबुक)

शराब की दुकान हटाने को लेकर महिलाओं पर पुलिस लाठीचार्ज की घटना में उनकी महिला आईपीएस चारू निगम से तीखी तकरार हो गई, जिसका वीडियो वायरल हुआ था. एक और वायरल वीडियो में उन्हें यह कहते हुए सुना गया था कि ‘ठाकुरों का राज चल रहा है. डर कर रहिए’.

दिसंबर 2019 में जल निगम की निर्माण इकाई गोरखपुर के आधा दर्जन अभियंता डॉ. अग्रवाल पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए सामूहिक अवकाश पर चले गए थे. उन्होंने इन अभियंताओं पर 140 किलोमीटर लंबी सीवर लाइन बिछाने के काम में मानक के विपरीत कार्य करने, नई बनी सड़कों को काटकर छोड़ देने का आरोप लगाया था.

इसके अलावा उन्होंने लखीमपुर खीरी जिले में एक भाजपा कार्यकर्ता के रिश्तेदार की गोली लगने से हुई मौत के मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने पर ट्विटर पर तीखी टिप्पणी की थी. उन्होंने डीजीपी और अपर मुख्य सचिव गृह को कई बार फोन किया. जब फोन नहीं उठा तो ट्विटर पर टिप्पणी की. इसके बाद आरोपियों पर कार्यवाही हुई तो उन्होंने ट्वीट हटा लिया.

वर्ष 2020 में एक इंजीनियर के तबादले को लेकर गोरखपुर के भाजपा सांसद रवि किशन, कैंपियरगंज के भाजपा विधायक फतेह बहादुर सिंह, पिपराइच के विधायक महेंद्र पाल सिंह ने राधा मोहन दास अग्रवाल पर जमकर हमला बोला और उन पर भाजपा विरोधी काम करने का आरोप लगाया.

डाॅ. अग्रवाल ने भी सार्वजनिक रूप से इन हमलों का जवाब दिया. मामला इतना आगे बढ़ गया कि 27 अगस्त 2020 को उनको पार्टी के प्रदेश महामंत्री जेपीएस राठौर ने कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. इस नोटिस में उन पर सरकार और संगठन की छवि धूमिल करने के लिए सोशल मीडिया में पोस्ट लिखने का आरोप लगाया गया था. इस विवाद को शांत करने के लिए खुद मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा.

उस समय चर्चा कि भाजपा सांसद व विधायकों ने ‘ऊपर’ से आए संकेत पर डाॅ. अग्रवाल पर हमला बोला था.

शिव प्रताप शुक्ल वर्ष 1989 में पहली बार विधायक बने थे और भाजपा सरकार में मंत्री बने. वे चार बार विधायक बने और कैबिनेट मंत्री भी. वह गोरखपुर के सबसे ताकतवर भाजपा नेता माने जाते थे और गोरखपुर में उनकी ही मर्जी चलती थी.

हालांकि इस दौरान धीरे-धीरे भाजपा संगठन में शुक्ल की कार्यशैली को लेकर रोष पनपने लगा. असंतुष्ट, योगी आदित्यनाथ के पास जुटने लगे. मेयर चुनाव में शुक्ल की पसंद को टिकट मिला, जिसका भाजपा कार्यकर्ताओं ने विरोध किया. यह चुनाव भाजपा और योगी आदित्यनाथ द्वारा खड़े किए गए बागी उम्मीदवार के बीच ही होता दिख रहा था, लेकिन भाजपा के खिलाफ लोगों के गुस्से ने किन्नर आशा देवी को मेयर बना दिया.

इसके बाद 2002 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने शिव प्रताप शुक्ल के खिलाफ डाॅ. अग्रवाल को हिंदू महासभा से चुनाव लड़वाया और जिताया. इसके बाद से शुक्ल एक दशक से अधिक समय तक हाशिये पर रहे.

हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल. (फाइल फोटो साभार: फेसबुक)

वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके दिन फिरे और उन्हें 2016 में राज्यसभा सदस्य बनाया गया. इसके बाद उन्हें सितंबर 2017 में केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री बनाया गया. राज्यसभा की सदस्यता खत्म होते ही उन्हें फरवरी 2023 में हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया.

शुक्ल को राज्यपाल बनाए जाने पर राजनीतिक पंडित चौंके थे, क्योंकि अब उनकी ‘राजनीतिक उपयोगिता’ पूरी हो चुकी मानी जा रही थी. माना गया कि गोरखपुर में राजनीतिक संतुलन बना रहे, इसलिए उन्हें राज्यपाल बनाया गया है. राज्यपाल बनने के बाद ‘महामहिम’ गोरखपुर को काफी समय देने लगे हैं.

केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी महराजगंज से सांसद है. वे इस सीट से छह बार चुने गए. उनके बड़े भाई और मां महराजगंज जिला पंचायत के अध्यक्ष रह चुके हैं. उनकी कुर्मी बिरादरी में अच्छी पकड़ है. छह बार सांसद रहने के बावजूद वह संगठन या सरकार में पद से वंचित रहे.

एक समय भाजपा संगठन में उनकी भाजपा के तबके प्रदेश महामंत्री रामपति राम त्रिपाठी (वर्तमान में देवरिया के सांसद) के साथ बहुत अच्छी जुगलबंदी थी और ये जोड़ी भाजपा का टिकट बांटती रही. योगी आदित्यनाथ का इस जोड़ी से भी टकराव हुआ था.

पंकज चौधरी लो-प्रोफाइल वाले नेता हैं. उनके न चाहने के बावजूद महराजगंज संसदीय क्षेत्र के सिसवा विधानसभा क्षेत्र से योगी आदित्यनाथ ने प्रेमसागर पटेल को 2017 और 2022 में विधानसभा का टिकट दिला दिया.

जुलाई 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में उन्हें केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री बना दिया गया. इसी महीने गोरखपुर यात्रा के दौरान उनके घर आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह प्रदर्शित किया कि वे उनके कितने प्रिय हैं.

यहां उल्लेखनीय है कि जून महीने में पंकज चौधरी के पौत्र के बरही समारोह में भाजपा के सभी बड़े नेताओं को आमंत्रित किया गया था. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, जम्मू कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा, हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल, यूपी के उप-मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह सहित भाजपा के कई दिग्गज नेता वहां पहुंचे, लेकिन योगी समारोह में नहीं देखे गए. हालांकि प्रधानमंत्री जब पंकज चौधरी के घर पहुंचे तो उनके साथ योगी भी आए.

निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद 2019 के पहले आरएसएस, भाजपा और हिंदू युवा वाहिनी पर बहुत आक्रामक रहते थे. वे आरएसएस और हिंदू युवा वाहिनी को समाजद्रोही संगठन और भाजपा को ‘भारत जलाओ पार्टी’ कहते थे. उन्होंने 2017 में पत्रकार वार्ता में हिंदू युवा वाहिनी को दंगा करने वाला और मुसलमानों, दलितों, अति पिछड़ों व निषादों पर अत्याचार करने वाला ‘संगठित गिरोह’ कहा था.

वे गोरखपुर के गोरक्षपीठ को निषादों का बताते रहे हैं. उनका कहना है कि ‘गोरक्षपीठ को निषाद वंश के घीवर परिवार में जन्मे महाराजा मत्स्येंद्र नाथ ने स्थापित किया था जिस पर बाद में मनुवादियों ने कब्जा कर लिया.’

उन्होंने 2018 के गोरखपुर लोकसभा के उपचुनाव में सपा, बसपा और पीस पार्टी के सहयोग से भाजपा प्रत्याशी को हरा दिया. एक वर्ष बाद ही वे एनडीए में आ गए. पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने गोरखपुर और आस-पास के जिलों की चौरीचौरा, नौतनवा, मेंहदावल, तमकुही, खड्डा सीट निषाद पार्टी के ले लिया. इस कारण योगी आदित्यनाथ के कई करीबी नेता चुनाव नहीं लड़ पाए. एक नेता बागी बनकर चुनाव लड़े लेकिन हार गए.

इसे समयचक्र कहें या भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की रणनीति कि जिस पूर्वांचल के राजनीतिक नक्षत्र मंडल में एक समय योगी आदित्यनाथ ही छाये हुए थे, आज चार और नेता चमकने लगे हैं. क्या यह महज संयोग है या भाजपा नेतृत्व का कोई प्रयोग? जानने वाले जानते हैं कि योगी आदित्यनाथ को उनके ही गढ़ में बेहद महीन तरीके से घेरा जा रहा है.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं)