उत्तराखंड के मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली संयुक्त समिति ने मसूरी शहर की वहन क्षमता पर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) को सौंपी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि पर्यटकों का पंजीकरण क्षेत्र की वहन क्षमता, विशेष रूप से उपलब्ध पार्किंग स्थान, अतिथि कक्ष की उपलब्धता आदि के अनुसार किया जाना चाहिए.
नई दिल्ली: उत्तराखंड के मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली एक संयुक्त समिति ने मसूरी के हिल स्टेशन में पर्यटकों की आमद को क्षेत्र की वहन क्षमता के अनुपात में विनियमित करने का सुझाव दिया है, ताकि क्षेत्र में जोशीमठ जैसे हालात बनने से रोके जा सकें.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मसूरी की वहन क्षमता पर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के समक्ष प्रस्तुत स्थिति रिपोर्ट में पाया गया कि ‘बेतरतीब निर्माण और बुनियादी ढांचे के विकास से प्रेरित अनियोजित शहरीकरण बड़ा जोखिम खड़ा करता है, जिसमें भारी वर्षा और भूकंप के दौरान इमारतों का ढहना और आपदाएं शामिल हैं.’
रिपोर्ट में सूचीबद्ध निवारक और उपचारात्मक उपायों में नौ सदस्यीय समिति ने मसूरी क्षेत्र में आने वाले पर्यटकों से शुल्क लेने की भी सिफारिश की और कहा कि इस भुगतान का उपयोग कचरे के प्रबंधन और स्वच्छता के लिए किया जा सकता है.
समिति ने सिफारिश की कि पर्यटकों का पंजीकरण क्षेत्र की वहन क्षमता, विशेष रूप से उपलब्ध पार्किंग स्थान, अतिथि कक्ष की उपलब्धता आदि के अनुसार किया जाना चाहिए.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में पहाड़ी के नीचे से पत्थर और शिलाखंड नहीं हटाए जाने चाहिए, क्योंकि इससे उसे मिलने वाला सहारा हट जाएगा, जिससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाएगी. ढलानों पर दिखाई देने वाली किसी भी दरार को भरना आवश्यक है.’
गौरतलब है कि इस साल के शुरुआत में जोशीमठ में हुई भूधंसाव की घटना पर एनजीटी ने कहा था कि यह वहन क्षमता से परे अत्यधिक अनियोजित निर्माण के कारण है. यह मसूरी के लिए भी एक चेतावनी है, जहां अनियोजित निर्माण हुए हैं और अभी भी हो रहे हैं.
फरवरी में मसूरी शहर में जोशीमठ जैसी स्थिति की संभावना के बीच एनजीटी ने उत्तराखंड सरकार को हिल स्टेशन की विशिष्ट वहन क्षमता का अध्ययन करने के निर्देश जारी किए थे.
एनजीटी ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय संयुक्त समिति का गठन किया है, जिसमें देहरादून के वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, गोविंद बल्लभ पंत नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरनमेंट और रुड़की के इंस्टिट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (एनआईएच) के प्रतिनिधि बतौर सदस्य शामिल हैं.
समिति ने कहा कि हालांकि 1996 से मसूरी के ‘फ्रीज जोन’ क्षेत्रों में निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन हाल के विस्तार विकल्पों के लिए मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) द्वारा सावधानीपूर्वक निगरानी की आवश्यकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यटकों की भारी आमद अनियमित निर्माण, अत्यधिक अपशिष्ट उत्पादन, स्वच्छता और सीवेज समस्या, पानी की कमी, भीड़भाड़ वाली सड़कों, यातायात की भीड़ और वाहन प्रदूषण जैसे मुद्दों में बढ़ोतरी करती है.
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि हिल स्टेशन गढ़वाल हिमालय श्रृंखला की तलहटी में है, जो भूकंपीय क्षेत्र-4 के अंतर्गत आता है.
इसमें कहा गया है कि मसूरी में आमतौर पर दिसंबर, जनवरी और फरवरी में कुछ बर्फबारी होती है, हालांकि स्थानीय जलवायु कारकों और ग्लोबल वार्मिंग के संयोजन के कारण हाल के वर्षों में बर्फीले दिनों की संख्या में कमी आई है.
रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि साल 2000 और 2019 के बीच 20 वर्षों में लगभग 255 फीसदी (2000 में 8.5 लाख से अधिक और 2019 में 30 लाख से अधिक) पर्यटक बढ़े हैं. वर्ष 2020 और 2021 में शायद कोविड-19 के कारण क्षेत्र में विपरीत प्रवृत्ति देखी गई.
समिति ने मसूरी में भूमि मालिकों या स्थानीय निवासियों को नए निर्माण की अनुमति नियमों के दायरे में दिए जाने का सुझाव दिया.
गौरतलब है कि इस साल जनवरी में जोशीमठ में जमीन धंसने से कई घरों में दरारें आ गईं थीं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, शहर के नौ वार्डों की 868 इमारतों में दरारें पाई गईं, जबकि 181 इमारतें असुरक्षित क्षेत्र में आ गई थीं.