महामारी के बाद बच्चों की तस्करी की घटनाएं बढ़ीं; यूपी, बिहार, आंध्र प्रदेश शीर्ष पर: अध्ययन

‘गेम्स 24x7’ और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा जारी किए रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान की राजधानी जयपुर तस्करी के शिकार बच्चों के लिए प्रमुख स्थलों में से एक बनकर उभरा है. इसके बाद राष्ट्रीय राजधानी के उत्तरी दिल्ली और उत्तर पश्चिमी दिल्ली ज़िले हैं. शीर्ष 10 जिलों की सूची में राष्ट्रीय राजधानी के पांच ज़िले शामिल हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकिपीडिया)

‘गेम्स 24×7’ और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा जारी किए रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान की राजधानी जयपुर तस्करी के शिकार बच्चों के लिए प्रमुख स्थलों में से एक बनकर उभरा है. इसके बाद राष्ट्रीय राजधानी के उत्तरी दिल्ली और उत्तर पश्चिमी दिल्ली ज़िले हैं. शीर्ष 10 जिलों की सूची में राष्ट्रीय राजधानी के पांच ज़िले शामिल हैं.

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नई दिल्ली: एक अध्ययन के अनुसार, राजस्थान की राजधानी जयपुर पिछले छह वर्षों में देश में तस्करी वाले बच्चों के लिए सबसे प्रमुख स्थान के रूप में उभरा है. ‘गेम्स24×7’ और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेंस फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा बीते रविवार (30 जुलाई) को यह अध्ययन रिपोर्ट जारी की गई है.

‘चाइल्ड ट्रैफिकिंग इन इंडिया: इनसाइट्स फ्रॉम सिचुएशनल डेटा एनालिसिस एंड द नीड फॉर टेक ड्रिवेन इंटरवेंशन स्ट्रेटजीज’ शीर्षक वाली रिपोर्ट 30 जुलाई को ‘वर्ल्ड डे अगेंस्ट ट्रैफिकिंग इन पर्संस’ के अवसर पर जारी की गई.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2016 से 2022 तक केएससीएफ के हस्तक्षेप से बचाए गए बच्चों की कुल संख्या 13,549 थी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि जयपुर तस्करी के शिकार बच्चों के लिए प्रमुख स्थलों में से एक बनकर उभरा है और इस जिले से सबसे अधिक 1,115 बच्चों को बचाया गया है, जो कुल बचाए गए बच्चों का लगभग 9 प्रतिशत है.

इसके बाद राष्ट्रीय राजधानी के दो जिले हैं, उत्तरी दिल्ली जहां कुल बचाए गए बच्चों की संख्या का 5.24 प्रतिशत है और उत्तर पश्चिमी दिल्ली जहां बचाए गए कुल बच्चों की संख्या का 5.13 प्रतिशत है. शीर्ष 10 जिलों की सूची में राष्ट्रीय राजधानी के पांच जिले भी शामिल हैं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राजस्थान में औसतन तस्करी वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि देखी गई है. कोविड के बाद के वर्षों (2021-22) में यह संख्या बढ़कर 99 हो गई, जबकि कोविड से पहले वर्षों (2016-20) में यह 48 थी.

कुल मिलाकर कोविड महामारी से पहले और बाद में तस्करी किए गए बच्चों की संख्या में ‘महत्वपूर्ण वृद्धि’ हुई है, जो देश में तस्करी की स्थिति पर महामारी के हानिकारक प्रभाव की पुष्टि करती है.

राज्यों के आंकड़ों को देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में प्रति वर्ष औसतन सबसे अधिक बच्चों की तस्करी देखी गई – कोविड-19 के पहले चरण (2016-19) में 267 और कोविड के बाद वाले चरण (2021-22) में 1,214, या वर्ष 2021 में 2,055 मामलों के साथ 350 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई.

उत्तर प्रदेश के बाद बिहार और आंध्र प्रदेश थे, ये शीर्ष तीन राज्य हैं, जहां से प्रति वर्ष औसतन सबसे अधिक बच्चों की तस्करी की हुई.

कर्नाटक में प्रति वर्ष औसतन तस्करी किए गए बच्चों की संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि देखी गई, जो कि कोविड से पहले के छह मामलों के बाद 18 गुना वृद्धि के साथ 110 तक पहुंच गई. दिलचस्प है कि केरल ने कोविड के बाद बच्चों की तस्करी का एक भी मामला नहीं दर्ज किया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि बाल तस्करी के मौजूदा रुझानों और पैटर्न की स्पष्ट तस्वीर देने के लिए डेटा एकत्र किया गया है. बचाए गए 80 प्रतिशत बच्चे 13 से 18 वर्ष, 13 प्रतिशत बच्चे 9 से 12 वर्ष और 2 प्रतिशत से अधिक 9 वर्ष से छोटे थे.

केएससीएफ के प्रबंध निदेशक, एवीएसएम (सेवानिवृत्त) रियर एडमिरल राहुल कुमार श्रावत ने कहा कि तस्करी विरोधी विधेयक को संसद के इसी सत्र में पारित किया जाना चाहिए क्योंकि ‘हमारे बच्चे खतरे में हैं और हमारे पास खोने के लिए समय नहीं है’.