यूपी: पूर्वांचल में एक-एक कर बंद होती चीनी मिलें चिंता का सबब क्यों नहीं हैं

कुशीनगर की कप्तानगंज चीनी मिल 77 करोड़ रुपये के बकाये का भुगतान न करने के चलते सील कर दिया गया है, जिसके चलते इसके इस वर्ष चलने की संभावना नहीं है. बकाया भुगतान के कारण ही मिल पिछले सत्र में भी नहीं चली थी.

/
(सभी फोटो: मनोज सिंह)

कुशीनगर की कप्तानगंज चीनी मिल 77 करोड़ रुपये के बकाये का भुगतान न करने के चलते सील कर दिया गया है, जिसके चलते इसके इस वर्ष चलने की संभावना नहीं है. बकाया भुगतान के कारण ही मिल पिछले सत्र में भी नहीं चली थी.

(सभी फोटो: मनोज सिंह)

कुशीनगर की कप्तानगंज स्थित कानोरिया शुगर एंड जनरल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी की चीनी मिल को 77.12 करोड़ रुपये के बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान न करने पर सील कर दिया गया है. बकाया भुगतान के कारण सत्र 2022-23 में चीनी मिल को गन्ना आवंटित नहीं किया गया था जिसके कारण चीनी मिल चल नहीं पाई थी. नए गन्ना सत्र 2023-24 में भी चीनी मिल के चलने की संभावना नहीं दिख रही है क्योंकि चीनी मिल बकाए की स्थिति में नहीं है.

कप्तानगंज चीनी मिल 89 वर्ष पुरानी है. यह चीनी मिल वर्ष 1934 में स्थापित हुई थी. अपने 89 वर्ष के इतिहास में यह पहला अवसर है कि चीनी मिल बंद हुई है. इस मिल से दस हजार से अधिक गन्ना किसान और 200 से अधिक स्थायी व सीजनल कर्मचारी जुड़े हुए हैं.

चीनी मिल पर इस वक्त 77 करोड़ 12 लाख 61 हजार रुपये गन्ना मूल्य बकाया है. इसमें वर्ष 2002-2003 का डिफर (अंतर मूल्य) 30 करोड़ 74 लाख 75 हजार ब्याज सहित डिफर तथा वर्ष 2021-2022 का 46 करोड़ 35 लाख 86 हजार रुपये ब्याज सहित शामिल है. बकाया भुगतान के लिए प्रशासन की तरफ से दो बार मिल प्रबंधन तंत्र को नोटिस भेजा गया था लेकिन चीनी मिल प्रबंधन तंत्र भुगतान करने में विफल रहा.

जिलाधिकारी कुशीनगर ने 28 जुलाई को तहसील प्रशासन को चीनी मिल सील करने का आदेश दिया जिस पर अमल करते हुए तहसीलदार कृष्ण गोपाल त्रिपाठी चीनी मिल पहुंचे और चीनी मिल के छह गेट पर अपना ताला लगाकर सील कर दिया.

जिला गन्ना अधिकारी डीके सैनी ने बताया कि सील करने के बाद भी प्रबंध तंत्र बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं करता है, तो कुर्की व नीलामी की कार्रवाई शुरू की जाएगी.

चीनी मिल द्वारा बकाया भुगतान नहीं करने से करीब छह हजार किसान परिवार प्रभावित हैं. ये किसान परिवार गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं.

कप्तानगंज चीनी मिल के महाप्रबंधक का कार्य देख रहे नरेंद्र बली ने बताया कि हम बकाया भुगतान की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि वे इस सत्र के शुरू होने के पहले बकाया भुगतान के प्रति आश्वस्त नहीं दिखे. उनका कहना था कि चीनी मिल के इस सत्र में चलने के बारे में वे कुछ कह नहीं सकते.

चीनी मिल पर पंजाब नेशनल बैंक के 49.65 करोड़ रुपये के कर्ज का मामला नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) में गया था. पिछले वर्ष जून महीने ने चीनी मिल और पंजाब नेशनल बैंक के बीच इस मसले पर आपसी समझौता हो गया और एनसीएलएटी ने तीन जून को कपंनी के खिलाफ कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया को वापस लेने की अनुमति दे दी.

इस संकट से उबरने के बाद चीनी मिल को किसानों के बकाया 77.12 करोड़ रुपये के भुगतान की चुनौती है.

चीनी मिल की बंदी की नौबत तब आई जब पिछले तीन-चार वर्षों से बकाया गन्ना मूल्य के भुगतान में देरी होने लगी. सत्र 2021-22 में इसी कारण चीनी मिल को गन्ना बहुत कम मिला और उसे ‘नो केन’ के चलते कई बार चीनी मिल को पेराई बंद करनी पड़ी.

चीनी मिल की क्षमता पांच हजार टीसीडी (प्रति टन गन्ना/दिन) है और वह एक गन्ना सत्र में 45 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई कर लेती थी. गन्ना सत्र 2021-22 में उसे बहुत कम गन्ना मिला जिसके कारण वह सिर्फ 14 लाख क्विंटल ही गन्ना पेर पाई. इस कारण चीनी मिल को काफी नुकसान उठाना पड़ा और उसका संकट बढ़ता चला गया.

गन्ना मूल्य भुगतान नहीं होने से किसानों में आक्रोश बढ़ रहा है. भारतीय किसान यूनियन (अम्बावता) के जिलाध्यक्ष रामचंद्र सिंह ने 31 जुलाई को मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन उपजिलाधिकारी को देते हुए कहा कि यदि 15 दिन में गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं हुआ तो आंदोलन शुरू किया जाएगा.

सिंह ने कहा कि चीनी मिल को सील किया गया है लेकिन किसानों को गन्ना मूल्य कब मिलेगा इस बारे में सरकार और प्रशासन चुप है. किसानों के आय का एक मात्र साधन गन्ना है और इसी के सहारे किसान अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के साथ साथ घर की अन्य सभी जरूरतों को पूरा करता है. इस महंगाई के जमाने में किसानों के गन्ने का भुगतान नहीं होना उनके परिवार की जीविका चलाने में भी अत्यंत बाधक सिद्ध हो रहा है.

उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र की लक्ष्मीगंज चीनी मिल पहले से बंद है. अब कप्तानगंज चीनी मिल भी बंद हो गई. इससे न सिर्फ किसानों पर बल्कि इस पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ा है.

कप्तानगंज चीनी मिल.

कुशीनगर जिला गन्ने की खेती के लिए जाना जाता है. यहां पर कभी दस चीनी- कप्तानगंज, लक्ष्मीगंज, रामकोला में दो, पडरौना, सेवरही, छितौनी, खड्डा, कठकुइयां और ढाढा- हुआ करती थीं. अब इसमें से छह चीनी मिलें रामकोला, पडरौना, कठकुइयां, छितौनी, लक्ष्मीगंज व कप्तानगंज बंद हो गई हैं.

कुशीनगर जिले में गन्ने का रकबा एक लाख हेक्टेयर से अधिक हुआ करता था लेकिन अब यह 93 हजार हेक्टेयर तक सिमट गया है.

जिला गन्ना अधिकारी डीके सैनी के अनुसार, सत्र 2023-24 में जिले में 93 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ना बोया गया है. पिछले वर्ष गन्ने का रकबा 85 हजार हेक्टेयर था. इस सत्र में गन्ने का रकबा बढ़ा है. उनका मानना था कि कप्तानगंज चीनी मिल से कप्तानगंज क्षेत्र में गन्ने की खेती पर जरूर प्रभाव पड़ा है लेकिन पूरे जिले में गन्ने की खेती बढ़ रही है.

कुशीनगर के अलावा देवरिया, महाराजगंज, गोरखपुर, बस्ती, संतकबीरनगर में 18 चीनी मिलें हुआ करती थी, जिनमें से आज 11 बंद हैं. देवरिया में पांच में से चार चीनी मिलें बंद हैं. गोरखपुर में तीन में दो चीनी मिल बंद हैं. महराजगंज जिले में चार में से दो चीनी मिलें बंद हैं. संत कबीर नगर जिले में एक चीनी मिल थी लेकिन वह भी बंद है. बस्ती में पांच चीनी मिलों में से दो बंद हैं.

2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुशीनगर जिले के पडरौना में अपनी जनसभा में पूर्वांचल की बंद चीनी मिलों का उल्लेख करते हुए पडरौना चीनी मिल को चलाने का वादा किया था. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में गृहमंत्री अमित शाह ने गोरखपुर जिले के चौरी चौरा की जनसभा में वर्षों से बंद सरैया चीनी मिल को चलाने का वादा किया था. इसी तरह यूपी में भाजपा की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर की बंद धुरियापार चीनी मिल के स्थान पर एथेनॉल प्लांट लगाने का वादा किया था. पडरौना और सरैया चीनी मिल आज भी बंद है.

योगी सरकार ने पहले कार्यकाल में पिपराइच और मुंडेरवा में नई चीनी मिल स्थापित की है लेकिन पिछले दो वर्ष में निजी क्षेत्र कि दो चीनी मिलें -कप्तानगंज और जेएचवी शुगर मिल गड़ोरा की चीनी मिल बंद हो गई है

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले सितंबर 2021 में कप्तानगंज में एक सभा में कहा था कि दोबारा सत्ता में आने पर कुशीनगर और देवरिया में चीनी मिल स्थापित करेंगे लेकिन अभी तक इस बारे में भी कोई सुगबुगाहट होती नहीं दिख रही है.

गोरखपुर मंडल के महराजगंज जिले में गड़ौरा में स्थित जेएचवी शुगर मिल पिछले दो वर्ष से बंद है. इस चीनी मिल पर किसानों को 40 करोड़ रुपये से अधिक बकाया था. चीनी मिल द्वारा हाल में बकाया गन्ना मूल्य भुगतान शुरू किया है. महराजगंज के जिला गन्ना अधिकारी ओम प्रकाश सिंह ने बताया कि चीनी मिल पर सत्र 2020-21 का 15.83 करोड़ रुपये बकाया था जिसमें 14.23 करोड़ रुपये का भुगतान चीनी मिल द्वारा किया गया है. अभी एक करोड़ 60 लाख रुपया बकाया है. सत्र 21-22 का 7.47 करोड़ रुपये बकाया है.

महराजगंज में गन्ना रकबा 16 हजार हेक्टेयर है और 38 हजार किसान परिवार गन्ने की खेती से जुड़े हैं.

चीनी मिल कर्मचारियों का वेतन, एरियर, बोनस, पीएफ सहित कई मदों में करीब 18 करोड़ रुपये बकाया है. बकाया भुगतान के लिए कर्मचारियों ने कई बार आंदोलन किया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. भुगतान के लिए कर्मचारी अब इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे हैं.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)