राज्यसभा के सभापति और लोकसभा अध्यक्ष दोनों ने बुधवार को विपक्षी दलों द्वारा की गई मांग के अनुसार संसद की कार्यवाही में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और विपक्ष पर कार्यवाही में बाधा डालने और अनुचित मांग करने का आरोप लगाया है.
नई दिल्ली: राज्यसभा के सभापति और लोकसभा अध्यक्ष दोनों ने बुधवार को विपक्षी दलों द्वारा की गई मांग के अनुसार संसद की कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है, इसके बजाय विपक्ष पर कार्यवाही में बाधा डालने और अनुचित मांग करने का आरोप लगाया है.
रिपोर्ट के अनुसार, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद में आकर बोलने का निर्देश नहीं दे सकते और न ही देंगे.
धनखड़ ने कहा, ‘मैंने स्पष्ट शब्दों में उचित संवैधानिक आधार और मिसाल पर बहुत दृढ़ता से संकेत दिया था कि इस आसन से यदि मैं प्रधानमंत्री की उपस्थिति के लिए निर्देश देता हूं तो मैं अपनी शपथ का उल्लंघन करूंगा. ऐसा कभी नहीं किया गया… मैं क़ानून और संविधान की अज्ञानता की भरपाई नहीं कर सकता. अगर प्रधानमंत्री आना चाहते हैं तो हर किसी की तरह यह उनका विशेषाधिकार है. इस आसन से इस तरह का कोई निर्देश, जो कभी जारी नहीं किया गया है, जारी नहीं किया जाएगा.’
सभापति ने यह भी कहा कि उन्हें मणिपुर में हिंसा और अशांति को लेकर नियम 267 के तहत 58 नोटिस मिले थे, लेकिन इन नोटिसों को स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि उन्होंने 20 जुलाई को नियम 176 के तहत इस मुद्दे पर अल्पकालिक चर्चा को पहले ही स्वीकार कर लिया था. विपक्ष अल्पावधि चर्चा के सरकार के प्रस्ताव से संतुष्ट नहीं है और इस बात पर जोर दे रहा है कि प्रधानमंत्री को उपस्थित रहना चाहिए. धनखड़ के यह कहने के बाद कि वह मोदी को निर्देश जारी नहीं करेंगे, उन्होंने सदन में विरोध जारी रखा.
धनखड़ ने कांग्रेस प्रमुख और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे से कहा, ‘आपकी तरफ कानून की समझ रखने वाले दिग्गज हैं, उनसे पता करें. वे आपकी मदद करेंगे, संविधान और उसके तहत दिए गए नुस्खे के तहत, मैं निर्देश नहीं दे सकता, मैं नहीं दूंगा.’ इसके बाद विपक्ष ने सदन से वॉकआउट कर दिया.
वहीं, कांग्रेस ने धनखड़ पर मोदी का बचाव करने का आरोप लगाया तो बीबीसी की एक खबर के मुताबिक उन्होंने गुरुवार को कांग्रेस की आलोचनाओं का जवाब देते हुए कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बचाव करने की ज़रूरत नहीं है.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी दुनिया भर में पहचान है. उन्होंने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में जनादेश हासिल किया है. मुझे उनका बचाव करने की ज़रूरत नहीं है.
इस बीच, लोकसभा में अध्यक्ष ओम बिड़ला कथित तौर पर व्यवधानों से ‘परेशान’ थे और इसलिए उन्होंने बुधवार सुबह कार्यवाही से दूर रहने का फैसला किया.
सूत्रों ने कथित तौर पर एएनआई को बताया कि स्पीकर ओम बिरला ने निचले सदन की अध्यक्षता करने से तब तक परहेज करने का फैसला किया है जब तक सदस्य सदन की गरिमा के अनुरूप व्यवहार नहीं करते.
बिड़ला का दावा है कि वह लोकसभा में विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों के व्यवहार से परेशान हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, उनके कार्यालय के एक अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर जानकारी दी कि बुधवार को बिड़ला अपने कक्ष में ही रुके और सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के सांसदों को एक संदेश भेजा, जिसमें कहा गया कि वह सदन में तभी लौटेंगे जब दोनों पक्ष अच्छा व्यवहार करने का वादा करेंगे.
बिड़ला के कार्यालय के एक और अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि गुरुवार को दोनों ही पक्षों के सांसद उनके पास पहुंचे और माफी मांगते हुए उनसे सदन में वापस लौटने का आग्रह किया.