अयोध्या: क्या राम मंदिर की भव्यता छोटे मंदिर और पुजारियों को भारी पड़ रही है?

अयोध्या में राम मंदिर तक पहुंचने के लिए पारंपरिक मार्ग बंद करके नया राम जन्मभूमि पथ खोल दिया गया है, जिसके चलते पारंपरिक मार्ग पर स्थित दर्जन भर मंदिर वीरान से हो गए हैं. श्रद्धालुओं के दान से ही चलने वाले मंदिरों की देख-रेख करने वाले आगामी संकट की संभावना से सशंकित हैं.

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अयोध्या में राम जन्मभूमि के परंपरागत मार्ग पर स्थित लवकुश मंदिर और उसके आसपास का क्षेत्र, जहां अब वीरानी छाई रहती है. (फोटो: इंदुभूषण पांडे)

अयोध्या में राम मंदिर तक पहुंचने के लिए पारंपरिक मार्ग बंद करके नया राम जन्मभूमि पथ खोल दिया गया है, जिसके चलते पारंपरिक मार्ग पर स्थित दर्जन भर मंदिर वीरान से हो गए हैं. श्रद्धालुओं के दान से ही चलने वाले मंदिरों की देख-रेख करने वाले आगामी संकट की संभावना से सशंकित हैं.

अयोध्या में राम जन्मभूमि के परंपरागत मार्ग पर स्थित लवकुश मंदिर और उसके आसपास का क्षेत्र, जहां अब वीरानी छाई रहती है. (फोटो: इंदुभूषण पांडे)

अयोध्या में न अभी ‘वहीं’ बन रहे राम मंदिर का निर्माण पूरा हुआ है, न उस तक पहुंच सुविधाजनक व आसान करने के नाम पर बनाए या चौड़े किए जा रहे पथों का, लेकिन उनके साइड इफेक्ट सामने आने लग गए हैं.

गत दिनों वेद मंत्रों के उद्घोष और पुष्पवर्षा के बीच निर्माणाधीन राम मंदिर तक जाने वाला 566 मीटर लंबा व 30 मीटर चौड़ा ‘नया’ राम जन्मभूमि पथ खोला गया तो जो श्रद्धालु व दर्शनार्थी ‘राम ते प्रथम राम कर दासा’ वाली अपनी पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार ऐतिहासिक हनुमानगढ़ी में दर्शन-पूजन के उपरांत दशरथ महल के सामने वाले पारंपरिक मार्ग से राम जन्मभूमि जाया करते थे, बिड़ला धर्मशाला एवं सुग्रीव किला के सामने और अमावां मंदिर तथा रंगमहल के पीछे से होकर जाने लगे.

गौरतलब है कि राम जन्मभूमि पथ का निर्माण भी अभी पूरा नहीं हुआ है, लेकिन राम मंदिर में, उसकी ओर जाने वाले पारंपरिक मार्ग की ओर बनाए जा रहे परकोटे में कुछ महत्वपूर्ण निर्माणों के मद्देनजर श्री राम जन्ममूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने उस मार्ग से श्रद्धालुओं व दर्शनार्थियों का प्रवेश रोकने की जरूरत महसूस की, तो इस जरूरत को पूरा करने के लिए राम जन्मभूमि पथ खोल दिया गया. जानकारों के अनुसार, यह पथ पारंपरिक मार्ग की अपेक्षा राम मंदिर की दूरी आधा किलोमीटर कम भी कर देता है.

खुद को ‘सबसे बड़ा’ बताने वाले हिंदी के एक अखबार ने इस स्थिति से आह्लादित-से होकर लिखा: ‘रविवार (30 जुलाई) को दूसरी बेला से पारंपरिक मार्ग रामलला के दर्शनार्थियों से मुक्त हो गया.’ लेकिन उसे इस ‘मुक्ति’ का यह साइड इफेक्ट नहीं दिखा कि ‘दर्शनार्थियों से मुक्त’ पारंपरिक मार्ग पर स्थित कोई दर्जन भर मंदिर, जिनमें पहले श्रद्धालुओं व दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता था, वीरान से हो गए और अब उनमें भूले-भटके ही कोई श्रद्धालु पहुंचता है. इन मंदिरों में राजमहल, रंग महल, जगन्नाथ मंदिर, लवकुश मंदिर, राम कचेहरी, सुंदर भवन, श्रृंगार भवन, कैकेयी कोप भवन और रामलला सदन आदि शामिल हैं.

इनमें से एक के प्रबंधन से जुड़े पं. नीरज गोस्वामी बताते हैं कि न सिर्फ इन्हीं एक दर्जन बल्कि अयोध्या के दूसरे ज्यादातर मंदिरों में भी भगवान के भोग-राग के साथ महंतों, पुजारियों व साधु-संतों के लिए उपलब्ध कराई जाने वाली व्यवस्थाएं व सुविधाएं श्रद्धालुओं व दर्शनार्थियों के चढ़ावे व दान की रकम की बदौलत ही संभव होती रही हैं. इस कारण अब उनके संकट में पड़ जाने का अंदेशा है, क्योंकि श्रद्धालु व दर्शनार्थी अब ‘भव्य’ राम मंदिर में दर्शन-पूजन के बाद राम जन्मभूमि पथ से ही, जो कई लोगों के अनुसार भव्य राम मंदिर के अनुरूप ही भव्यता का पर्याय है, वापस चले जा रहे हैं, जबकि पारंपरिक मार्ग के मंदिर उनकी बाट जोहते रह जा रहे हैं.

इन मंदिरों के लिए राहत की बात इतनी-सी ही है कि आगामी जनवरी में मंदिर निर्माण पूरा हो जाएगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उसमें प्राण-प्रतिष्ठा कर दी जाएगी तो, कहा जा रहा है कि, तय किया जाएगा कि उनके रास्ते राम मंदिर जाने वाले पारंपरिक मार्ग का किस तरह उपयोग किया जाए.

सामाजिक कार्यकर्ता सत्यनारायण मौर्य इस बाबत कहते हैं कि अयोध्या के आम निवासियों को यह अंदेशा तो पहले से ही था कि नगरी की भव्यता, चाक्चिक्य, प्रवाह व चढ़ावा सब बरबस किसी एक मंदिर या चुनिंदा सुंदरीकृत स्थलों के नाम कर दिया जाएगा, तो उसकी सबसे ज्यादा कीमत उन छोटे मंदिरों को ही चुकानी पडे़गी, जो आकाशवृत्ति पर निर्भर हैं और आय के अत्यल्प स्रोतों के कारण जिनके पास इतना भी धन नहीं हैं कि वे ठीक से अपना रंग-रोगन करा लें और दैनन्दिन व्यवस्थाओं को सुचारु रुप से चला सकें.

मौर्य कहते हैं कि फिर भी क्षीण-सी ही सही, कई हलकों में एक यह उम्मीद भी थी कि खुद को हिंदुत्व की अलंबरदार कहने वाली शक्तियों और उनकी सत्ताओं के लिए इन छोटे मंदिरों की, जिनकी संख्या बड़े मंदिरों की कई गुनी है, सर्वथा अनदेखी संभव नहीं होगी. लेकिन अफसोस कि इस अनदेखी ने समय से कुछ पहले ही दस्तक दे दी है और आगे चलकर उसके अनेक दूसरे मंदिरों को भी अपनी जद में ले लेने का अंदेशा प्रबल है. यह तब है जब दूसरी ओर ‘स्मार्ट टेंपल मिशन’ और ‘टेंपल कनेक्ट कार्यक्रम’ का शोर मचाया जा रहा है.

मौर्य के इस कथन को थोड़ा और आगे बढ़ाएं तो राम की अयोध्या में ‘त्रेता युग की वापसी’ के लिए उसकी मूल लौकिक पहचान व स्वरूप इतने अतिक्रमित कर दिए गए हैं कि खुद भगवान राम देखें तो संभवतः वही सोचें, जो स्मृतिशेष कैफी आजमी की एक लोकप्रिय नज्म के अनुसार उन्होंने छह दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद सोचा था: ‘याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए’ और ‘राजधानी की फिजा आई नहीं रास मुझे.

क्या आश्चर्य कि इस ‘बदली हुई फिजा’ में हिंदी के महत्वपूर्ण कवि और कामता प्रसाद सुन्दरलाल साकेत पीजी कॉलेज के हिंदी प्राध्यापक अनिल कुमार सिंह पूछते हैं कि जब गरीबों के तीर्थ की अयोध्या की पहचान ही खतरे में डाल दी गई है तो गरीब या गरीबों के मंदिर मुश्किल में क्यों नहीं पड़ेंगे?

वे अपनी बात में इतना और जोड़ते हैं, ‘चूंकि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जाति विशेष के वर्चस्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवारियों के प्रभुत्व वाले ट्रस्ट की देख-रेख में कराया जा रहा है, इसलिए उससे व्यापक हिंदू समाज के बजाय सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हितों की रक्षा की अपेक्षा रखनी चाहिए.’

बढ़ती हड़बड़ी

दूसरी ओर, जैसे-जैसे जनवरी में राम मंदिर की प्रस्तावित प्राण-प्रतिष्ठा निकट आ रही है, अयोध्या में विभिन्न पथों के निर्माण व चौड़ीकरण को लेकर हड़बड़ी बढ़ती जा रही है क्योंकि तेजी लाने की ‘ऊपर’ की आज्ञाओं के बावजूद अभी बहुत-सा काम बाकी पड़ा है.

मिसाल के तौर पर, पंचकोसी परिक्रमा मार्ग पर उसके चौड़ीकरण की जद में आने वाले निर्माणों के ध्वस्तीकरण की अभी तक महज 52.28 प्रतिशत और चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग पर 63.65 प्रतिशत कार्रवाई ही पूरी हुई है. इसे देखते हुए मंडलायुक्त गौरव दयाल ने ज्यादा जेसीबी मशीने लगाकर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई जल्द निपटाने के निर्देश दिए हैं. साथ ही रामपथ में ऐसे हिस्सों पर जहां सभी यूटीलिटी संबंधी काम हो चुके हैं, सड़क निर्माण कार्य तत्काल शुरू कराने का निर्देश भी.

इतना ही नहीं, जिलाधिकारी नितीश कुमार ने भक्ति पथ के द्रुत गति से निर्माण के लिए तीन शिफ्टों में काम कराने और जरूरत के अनुसार ट्रैफिक डायवर्जन व बैरिकेडिंग की व्यवस्था सुनिश्चित कराने को कहा है.

ट्रस्ट अध्यक्ष के जन्मोत्सव में गबन

इस बीच श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास का गत 26 मई से दो जून के बीच मनाया गया जन्मोत्सव अचानक गलत कारणों से चर्चा में आ गया है. खबरों के अनुसार, उक्त जन्मोत्सव पर आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों के सिलसिले में आंध्र प्रदेश व कर्नाटक से आए दो आयोजकों ने एक सर्विस प्रदाता के नौ 9 लाख रुपये हड़प लिए है. सर्विस प्रदाता द्वारा बार-बार मांगे जाने के बावजूद भुगतान नहीं किया तो उसने उन दोनों के साथ मध्यस्थ के खिलाफ भी गबन की रिपोर्ट दर्ज करा दी है.

सर्विस प्रदाता दुर्गेंश कुमार वर्मा अयोध्या के दंतधावन कुंड स्थित काका इलेक्ट्रिक एंड साउंड सर्विस को प्रोपराइटर हैं, का दावा है कि आंध्र प्रदेश व कर्नाटक के दो आयोजकों ने (जो अयोध्या के रामघाट चौराहा स्थित मानस भवन में ठहरे थे.) खुद को मुनिराज उर्फ मिस्टर तथा गद्यम श्याम प्रसाद रेड्डी (निवासी नागार्जुन नगर, डाक्कल ग्रामीण बैंक के पास, तानांका सिकंदराबाद, लाला गुड्डा हैदराबाद, आंध्र प्रदेश) और चंद्र शेखर यादव (निवासी गनेश्रा पल्या मुख्याल पेटे बीटीसी मुलभागल जिला कोलार, कर्नाटक) बताया और महंत नृत्यगोपालदास के जन्मोत्सव के तहत भागवत सप्ताह एवं श्रीराम रक्षा महायज्ञ का आयोजन कराया था.

दुर्गेश के अनुसार, उन्होंने इसके लिए महंत नृत्यगोपाल दास की मणिरामदास छावनी के उत्तराधिकारी कमलनयन दास की उपस्थिति में नौ लाख रुपयों में बिजली की सजावट, साउंड और जेनरेटर आदि के कार्यों का ठेका दिया था. लेकिन काम निपट जाने के बाद उन्होंने रुपयों का भुगतान नहीं किया और तकाजा करनें पर लगातार टालमटोल करते रहे. अब हारकर उसने आयोजकों के खिलाफ अयोध्या कोतवाली में गबन की धारा में नामजद रिपोर्ट दर्ज करा दी है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

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