सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट जजों के लिए संपत्ति की घोषणा करना अनिवार्य हो: संसदीय समिति

भाजपा सांसद सुशील मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने संसद में पेश रिपोर्ट में सिफ़ारिश की है कि जिस तरह नेताओं और नौकरशाहों द्वारा उनकी संपत्ति की घोषणा की जाती है, उसी तरह सरकार उच्च न्यायपालिका के जजों के लिए उनकी संपत्ति की वार्षिक घोषणा अनिवार्य करने के लिए क़ानून बनाए.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

भाजपा सांसद सुशील मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने संसद में पेश रिपोर्ट में सिफ़ारिश की है कि जिस तरह नेताओं और नौकरशाहों द्वारा उनकी संपत्ति की घोषणा की जाती है, उसी तरह सरकार उच्च न्यायपालिका के जजों के लिए उनकी संपत्ति की वार्षिक घोषणा अनिवार्य करने के लिए क़ानून बनाए.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: विधि और न्याय पर संसद की स्थायी समिति ने संसद में पेश एक रिपोर्ट में सिफारिश की है कि शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को अनिवार्य रूप से अपनी संपत्ति की घोषणा करनी चाहिए जैसा कि नेताओं और नौकरशाहों के मामले में होता है.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, सिफारिश में यह भी कहा गया है कि उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति की घोषणा से इस प्रणाली में भरोसा और विश्वसनीयता बढ़ेगी.

भाजपा सांसद और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने सोमवार को कहा, ‘चूंकि स्वैच्छिक आधार पर न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति की घोषणा पर सुप्रीम कोर्ट के अंतिम प्रस्ताव का अनुपालन नहीं किया गया, समिति सिफारिश करती है कि सरकार उच्च न्यायपालिका (सुप्रीम और हाई कोर्ट) के न्यायाधीशों के लिए वार्षिक आधार पर अपने संपत्ति रिटर्न पेश करना अनिवार्य बनाने के लिए उचित कानून लाए.’

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए समिति ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस हद तक पहुंच गया है कि जनता को सांसद या विधायक का चुनाव में खड़े लोगों की संपत्ति जानने का अधिकार है. ऐसे में यह तर्क गलत है कि न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति और देनदारियों का खुलासा करने की जरूरत नहीं है. कोई भी व्यक्ति, जो सार्वजनिक पद पर है और सरकारी खजाने से वेतन लेता है, उसे अनिवार्य रूप से अपनी संपत्ति का वार्षिक रिटर्न पेश करना चाहिए.’

समिति ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट सहित अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित मामलों पर भी चिंता व्यक्त की और न्यायपालिका की छुट्टियों में कटौती करने की सिफारिश की है.

इसने सुझाव देते हुए कहा, ‘यह एक निर्विवाद तथ्य है कि न्यायपालिका में छुट्टियां एक औपनिवेशिक विरासत है और पूरी अदालत के सामूहिक रूप से छुट्टियों पर जाने से वादियों को खासी असुविधा होती है. सभी न्यायाधीशों को एक ही समय में छुट्टी पर जाने की बजाय पूरे साल में अलग-अलग समय पर छुट्टी लेनी चाहिए ताकि अदालतें लगातार खुली रहें.

समिति ने यह कहते हुए कि शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालय में ‘विविधता की कमी’ है क्योंकि संवैधानिक अदालतों में एससी/एसटी, ओबीसी, महिलाओं और अल्पसंख्यकों) का प्रतिनिधित्व नहीं है, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के लिए उच्च न्यायपालिका में आरक्षण की भी सिफारिश की है.

समिति ने कहा कि उच्च न्यायपालिका में आरक्षण से संबंधित प्रावधानों का प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए, जिसे वर्तमान में अंतिम रूप दिया जा रहा है.

समिति ने सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठ बनाने का भी समर्थन किया. इसने कहा कि संविधान के तहत ‘न्याय तक पहुंच’ एक मौलिक अधिकार है और देश के दूर-दराज से आने वाले गरीब लोगों को इंसाफ पाने में कठिनाई होती है.