आपराधिक न्याय प्रणाली के औपनिवेशिक स्वरूप को बदलने का हवाला देते हुए केंद्र सरकार ने लोकसभा में तीन नए विधेयक पेश किए हैं. कांग्रेस ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि इसकी प्रेरणा हर चीज़ पर अपनी छाप छोड़ने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा है.
नई दिल्ली: मोदी सरकार द्वारा देश में आपराधिक कानूनों को बदलने के कदम की कांग्रेस ने आलोचना की है. इसने कहा कि यह हर चीज पर अपनी छाप छोड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े गेमप्लान का हिस्सा था.
ज्ञात हो कि शुक्रवार को लोकसभा में आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार और इसके औपनिवेशिक स्वरूप को बदलने का हवाला देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने तीन नए विधेयक- भारतीय न्याय संहिता विधेयक- 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक- 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक- 2023 पेश किए थे. ये तीनों क्रमशः इंडियन पीनल कोड, 1860, सीआरपीसी और इंडियन एविडेंस एक्ट, 1872 की जगह लेंगे.
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेता और अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, ‘ऐसे कुछ परिवर्तन हो सकते हैं जिनकी जरूरत थी, लेकिन यह निश्चित रूप से कुछ विशिष्ट परिवर्तन करने का प्रयास नहीं है. यह अपनी नई छाप छोड़ने के लिए चीजों को बदलने, समाज के प्रत्येक वर्ग की ओर मुड़ने और यह सुझाव देने के बड़े गेमप्लान का हिस्सा है कि अतीत में सब कुछ- सामाजिक, कानूनी, सांस्कृतिक, राजनीतिक – सब खराब था और नए मोदी स्टैंप की जरूरत है.’
उन्होंने कहा, ‘इस तरह के व्यापक, व्यापक संशोधन केवल इस नकारात्मक इच्छा से प्रेरित थे.’
उल्लेखनीय है कि आईपीसी जगह लेने वाला भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023 अन्य बातों के अलावा आईपीसी में राजद्रोह से संबंधित प्रावधानों को बदला गया है.
सिंघवी ने इसे लेकर कहा, ‘मुझे इस सरकार के दुस्साहस और इसकी अत्यधिक असंवेदनशीलता की तारीफ करनी चाहिए. मोटी चमड़ी होने की भी सीमा होती है. सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार राजद्रोह के खिलाफ राय दी है और यहां सरकार इसे मजबूत करने के लिए काम कर रही है.’
नए कानून में राजद्रोह शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि इस अपराध को ‘भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला’ बताया गया है.
इसकी धारा 150 में लिखा है: ‘जो कोई, इरादे से या जानबूझकर या बोले गए या लिखे गए शब्दों, या संकेतों द्वारा, या इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा या वित्तीय साधनों के उपयोग से, या अन्यथा, अलगाव या सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियाँ भड़काने का प्रयास, या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करना या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालना; या ऐसे किसी भी कार्य में शामिल होता है या करता है तो उसे आजीवन कारावास या जेल की सज़ा मिल सकती है, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
दंगा भड़काने से संबंधित प्रावधान पर सिंघवी ने कहा, ‘दंगों के संबंध में प्रस्तावित प्रावधान स्पष्ट रूप से और जानबूझकर पक्षपाती मानसिकता के साथ सांप्रदायिक रंग देने के उद्देश्य से हैं. हमने इस कानून के आए बिना भी ऐसे ख़राब काम होते देखे हैं; अब कानून और इसकी स्पष्ट वैधता इसे और बदतर बना देगी.’
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा, ‘इस विधेयक में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाहर फेंक दिया गया है. इसलिए लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति से मेरी यह मांग होगी कि वे इनमें से प्रत्येक की जांच करने के लिए संसद की एक संयुक्त समिति का गठन करना चाहिए, जिसमें सभी दलों के प्रतिष्ठित कानूनी व्यक्ति शामिल हों.’
उधर, केंद्र पर निशाना साधते हुए द्रमुक ने 26-पार्टी विपक्षी गठबंधन की ओर इशारा करते हुए कहा कि इससे पता चलता है कि भाजपा ‘इंडिया’ से कितना डरती है.
द्रमुक के वरिष्ठ नेता और पार्टी प्रवक्ता टीकेएस एलंगोवन ने कहा कि तीन विधेयकों में इंडिया के बजाय ‘भारतीय’ शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है क्योंकि ‘वे इस शब्द से डरते हैं’.
एलंगोवन ने पीटीआई से कहा, ‘उन्होंने विधेयकों का नाम बदलकर ‘इंडिया’ के बजाय ‘भारतीय’ कर दिया है. तो वे इंडियासे कितना डरते हैं, यह उजागर हो गया है. वे ‘इंडिया’ शब्द से डरते हैं क्योंकि यह नाम विपक्षी दलों द्वारा लिया जाता है. यह सब बहुत बचकाना है… इस सरकार की अपरिपक्वता को दर्शाता है.’