अडानी पोर्ट-डेलॉइट: जब ऑडिटर इस्तीफ़ा दे, तब चीज़ें वैसी होती नहीं जैसा दिखाया जाता है- कांग्रेस

डेलॉइट हास्किन्स और सेल्स ने अडानी पोर्ट्स और सेज़ के वित्तीय लेन-देन पर कुछ चिंताएं ज़ाहिर करने के बाद ऑडिटर के तौर पर ख़ुद को अलग कर लिया है. इसे लेकर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि ऑडिटर ने कंपनी के खातों पर सवाल उठाए थे, जिसका जवाब नहीं दिया गया और उसे इस्तीफ़े को मजबूर किया गया.

(फोटो साभार: संबंधित वेबसाइट)

डेलॉइट हास्किन्स और सेल्स ने अडानी पोर्ट्स और सेज़ के वित्तीय लेन-देन पर कुछ चिंताएं ज़ाहिर करने के बाद ऑडिटर के तौर पर ख़ुद को अलग कर लिया है. इसे लेकर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि ऑडिटर ने कंपनी के खातों पर सवाल उठाए थे, जिसका जवाब नहीं दिया गया और उसे इस्तीफ़े को मजबूर किया गया.

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नई दिल्ली: कांग्रेस ने शनिवार को उम्मीद जताई कि अडानी पर सेबी की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट की विशेषज्ञ समिति द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देगी और हैरानी जताई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी कब तोड़ेंगे.

मई में, शीर्ष अदालत ने अडानी समूह द्वारा स्टॉक मूल्य में हेरफेर के आरोपों की जांच पूरी करने के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) को 14 अगस्त तक का समय दिया था.

द हिंदू के मुताबिक, कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने अडानी पोर्ट्स और सेज़ के ऑडिटर के रूप में डेलॉइट हास्किन्स और सेल्स द्वारा पद छोड़ने के फैसले का हवाला देते हुए कहा, ‘जब वैधानिक ऑडिटर अक्सर इस्तीफ़ा देते हैं, तब आप जानते हैं कि चीज़ें वैसी होती नहीं जैसा कि उन्हें दिखाया जाता है.’

उन्होंने ट्विटर पर जारी बयान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस बारे में चुप्पी तोड़ने का आग्रह किया.

अपने बयान में उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री के पसंदीदा बिज़नेस ग्रुप के संदिग्ध लेन-देन के कारण डेलॉइट हास्किन्स एंड सेल्स ने कथित तौर पर अडानी पोर्ट्स एंड सेज़ के ऑडिटर पद से इस्तीफ़ा देने का असामान्य कदम उठाया है. इससे पहले ऑडिटर ने कंपनी के खातों पर एक ‘क्वालिफ़ाइड ओपिनियन’ जारी किया था जिसमें कहा गया था कि तीन संस्थाओं के साथ अडानी पोर्ट्स के लेन-देन को असंबंधित पक्षों से लेन-देन नहीं दिखाया जा सकता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऑडिटर ने यह भी कहा था कि स्वतंत्र बाहरी जांच कराने से इसे कंफर्म करने में मदद मिल सकती थी, लेकिन अडानी पोर्ट्स ने उसके लिए मना कर दिया. इससे कई गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं: वह ईपीसी कॉन्ट्रैक्टर कौन है जिसकी सुरक्षा और धन की व्यवस्था अडानी पोर्ट्स कर रहा है? मई 2023 में उसने अपना म्यांमार कंटेनर टर्मिनल वास्तव में किसे बेचा?’

डेलॉइट ने इस मामले में टिप्पणी करने से इनकार किया है.

रमेश ने आगे जोड़ा, ‘ऐसा लगता है कि अडानी पोर्ट्स इन स्पष्ट संबंधित पार्टी लेनदेन को छिपाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है. तभी डेलॉइट हास्किन्स एंड सेल्स को फर्म के वैधानिक ऑडिटर के रूप में पांच वर्षों में से केवल एक वर्ष पूरा करने के बाद ही इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है.’

उल्लेखनीय है कि अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.

हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गए सभी आरोपों से अडानी समूह इनकार कर रहा है.

उधर, कांग्रेस इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद से ही अडानी समूह के वित्तीय लेनदेन पर सवाल उठा रही है.

विपक्षी दल अडानी मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग कर रहे थे, जिसके चलते फरवरी महीने में पूरे बजट सत्र की कार्यवाही लगभग ठप रही थी.

डेलॉइट के हालिया कदम पर टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी तंज़ किया है. उन्होंने निवेशकों को सावधान करते हुए लिखा, ‘अब हमें डेलॉइट पर ईडी, सीबीआई, एसएफआईओ के छापों का इंतज़ार है! वो कैसे सरकार के प्यारे ग्रुप का ऑडिट करने से इनकार कर सकते हैं.’