गर्भपात संबंधी सुनवाई में लापरवाही की बजाय तत्परता दिखाई जानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट गुजरात की एक रेप सर्वाइवर की 27 सप्ताह से अधिक के भ्रूण के गर्भपात की इजाज़त मांगने की याचिका सुन रहा था. कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट को महिला की याचिका को बारह दिन के लिए स्थगित करने के लिए फटकारते हुए कहा कि ऐसे मामलों में वक़्त ख़राब न करते हुए तत्परता बरती जानी चाहिए. 

(फोटो: द वायर)

सुप्रीम कोर्ट गुजरात की एक रेप सर्वाइवर की 27 सप्ताह से अधिक के भ्रूण के गर्भपात की इजाज़त मांगने की याचिका सुन रहा था. कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट को महिला की याचिका को बारह दिन के लिए स्थगित करने के लिए फटकारते हुए कहा कि ऐसे मामलों में वक़्त ख़राब न करते हुए तत्परता बरती जानी चाहिए.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को एक बलात्कार पीड़िता की 27 सप्ताह से अधिक के भ्रूण का गर्भपात कराने की अनुमति वाली याचिका पर छुट्टी के दिन विशेष सुनवाई करते हुए कहा कि गर्भपात के मामलों में ‘लापरवाह रवैया’ बरतने के बजाय ‘तत्परता’ होनी चाहिए.

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, जस्टिस बीवी नागरत्ना की अगुवाई वाली पीठ ने ऐसे मामलों में बर्बाद हुए बहुमूल्य समय के बारे में न समझने के लिए गुजरात हाईकोर्ट की आलोचना करते हुए रविवार तक महिला की ताजा मेडिकल रिपोर्ट मांगी और मामले को सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.

पीठ में जस्टिस उज्जल भुइयां भी शामिल थे. पीठ ने कहा, ’11 अगस्त को जब हाईकोर्ट के सामने मेडिकल रिपोर्ट रखी गई और उसके आदेश में मामले को 23 अगस्त को सूचीबद्ध करने को कहा गया, तो हाईकोर्ट के इस मामले को स्थगित करने के चलते 12 दिन का कीमती समय ज़ाया हुआ. ऐसे मामलों में तात्कालिकता की भावना होनी चाहिए न कि लापरवाह रवैया…  किसी सामान्य मामले की तरह स्थगित कर देना.’

अदालत ने यह देखने कि 10 अगस्त की मेडिकल रिपोर्ट में महिला के सुरक्षित गर्भपात की याचिका का समर्थन किया था, लेकिन हाईकोर्ट ने 11 अगस्त को रिपोर्ट लेने पर मामले को 23 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दिया, को लेकर कोर्ट को फटकार लगाई. इसके बाद 17 अगस्त को हाईकोर्ट ने कोई कारण बताए बिना या अपना आदेश जारी किए बिना महिला की याचिका खारिज कर दी.

इस पर, पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने न केवल इस तथ्य को नजरअंदाज किया कि गर्भावस्था बढ़ने पर प्रत्येक दिन की देरी महत्वपूर्ण होगी, बल्कि 25 वर्षीय महिला की याचिका बिना कोई कारण बताए खारिज कर दी.

महिला के वकील शशांक सिंह द्वारा दी गई जानकारी का संज्ञान लेते हुए पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को गुजरात हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से उक्त आदेश को कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किए जाने के बारे में पूछताछ करने का निर्देश दिया. सिंह ने बताया था कि महिला ने पहली बार 7 अगस्त को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन 17 अगस्त को बिना किसी स्पष्ट आदेश के याचिका खारिज कर दी गई.

इस पर पीठ ने पीड़िता की वर्तमान मेडिकल स्थिति और सुरक्षित गर्भपात की होने की संभावना पर गुजरात के एक सरकारी अस्पताल से ताजा मेडिकल रिपोर्ट मांगी और मामले को सोमवार को सबसे पहले सुनने को कहा है.

उल्लेखनीय है कि 2021 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम में हुए संशोधन के बाद बलात्कार की सर्वाइवर महिलाओं को 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति मिली है. केवल गंभीर भ्रूण असामान्यताओं के मामले में यह कानून 24 सप्ताह से अधिक के गर्भ की समाप्ति की अनुमति देता है.

हालांकि, कोई संवैधानिक अदालत जिन मामलों को वे उचित समझती हैं, उनमें 24 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करने की मंजूरी देने के लिए अपनी असाधारण शक्तियों का उपयोग कर सकती है.

जुलाई 2022 में दिल्ली हाईकोर्ट ने बलात्कार की शिकार हुआ एक 13 वर्षीय लड़की को 26 सप्ताह का गर्भ समाप्त करने इजाज़त देते हुए कहा था कि अगर उसे कम उम्र में मातृत्व का बोझ उठाने के लिए मजबूर किया गया तो उसकी पीड़ा बढ़ जाएगी. अगस्त 2022 में केरल हाईकोर्ट ने भी मेडिकल बोर्ड की सिफारिश के बाद एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता की 28 सप्ताह के गर्भ को ख़त्म करने की अनुमति दी थी.