उच्च रिफिल लागत और पहुंच की कमी ग़रीब परिवारों को एलपीजी के उपयोग से रोकती है: अध्ययन

अमेरिकी सरकार की एजेंसी यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) द्वारा पर्यावरण और सामाजिक प्रभाव वाले स्टार्ट-अप एएसएआर के सहयोग से यह अध्ययन किया गया है. अध्ययन में पाया गया कि ग़रीब परिवारों के लिए एलपीजी सिलेंडर को फिर से भरने की कीमत इसके उपयोग में एक बड़ी बाधा है.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

अमेरिकी सरकार की एजेंसी यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) द्वारा पर्यावरण और सामाजिक प्रभाव वाले स्टार्ट-अप एएसएआर के सहयोग से यह अध्ययन किया गया है. अध्ययन में पाया गया कि ग़रीब परिवारों के लिए एलपीजी सिलेंडर को फिर से भरने की कीमत इसके उपयोग में एक बड़ी बाधा है.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: एक अध्ययन में पता चला है कि पहुंच की कमी, सरकारी योजनाओं की जानकारी न होना और कम आय वाले घरों में बायोमास जैसे प्रदूषणकारी ईंधन की अपेक्षा एलपीजी सिलेंडरों की अधिक कीमत इसके इस्तेमाल में आने वाली प्रमुख बाधाओं में से एक है.

अमेरिकी सरकार की एजेंसी यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) द्वारा पर्यावरण और सामाजिक प्रभाव वाले स्टार्ट-अप एएसएआर के सहयोग से यह अध्ययन किया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, यह अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि उपयोगकर्ताओं के लिए, किस ईंधन का उपयोग करना है, यह तय करते समय उपयोग में आसानी की तुलना में उसके मिलने में आसानी अधिक महत्वपूर्ण है.

इस अध्ययन का शीर्षक ‘कम आय वाले परिवारों के बीच स्वच्छ ईंधन तक पहुंच, उसे अपनाने और निरंतर उपयोग में बाधाएं: दिल्ली और झारखंड से एक खोजपूर्ण अध्ययन’ है. इसे बीते सोमवार (21 अगस्त) को जारी किया गया था.

इस अध्ययन के लिए एएसएआर सोशल इम्पैक्ट एडवाइजर्स ने दिल्ली के शहरी समुदायों और ग्रामीण झारखंड के कई गांवों में गहन साक्षात्कार के साथ शोध किया. शोध में 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को शामिल करने पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया गया.

यूएसएआईडी इंडिया के पर्यावरण सलाहकार सौमित्री दास ने कहा कि यूएसएआईडी के स्वच्छ वायु और बेहतर स्वास्थ्य परियोजना द्वारा समर्थित अध्ययन, ‘हमें लिंग समावेशन (Gender Inclusion) पर ध्यान देने के साथ लक्षित आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने में सक्षम करेगा’.

एएसएआर में लिंग और जलवायु कार्यक्रम की प्रमुख नेहा सहगल ने कहा, ‘भले ही महिलाओं को बायोमास जलने से निकलने वाले जहरीले धुएं के कारण हल्के से लेकर गंभीर स्वास्थ्य प्रभावों का खतरा होता है, लेकिन वे अक्सर इसके परिणामों से अनजान होती हैं और शायद ही कभी इसके बारे में कुछ कर पाती हैं.’

उन्होंने कहा, ‘एक स्वच्छ विकल्प के रूप में इसके बारे में शायद ही कुछ किया जा सकता है, क्योंकि एलपीजी निचले सामाजिक-आर्थिक स्तर के अधिकांश घरों के लिए सस्ती नहीं है.’

अध्ययन में यह भी कहा गया है, ‘एलपीजी के बारे में उपयोगकर्ताओं की धारणाएं, जैसे कि य​ह असुरक्षित है, इस पर पकाया गया भोजन अस्वास्थ्यकर और कम स्वादिष्ट है आदि आपूर्ति संबंधी बाधाओं के साथ मिलकर एलपीजी सिलेंडर के लिए आवेदन करने और इसे प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियां हैं.’

इसके अनुसार, ‘एलपीजी सिलेंडर के लिए रिफिल ऑर्डर करते समय एकमुश्त नकदी कुछ ऐसे कारक हैं, जो कम आय वाले घरों में महिलाओं द्वारा इसके निरंतर उपयोग में बाधा के रूप में कार्य करते हैं.’

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, साल 2016 से सरकार अपनी प्रमुख योजना – प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के माध्यम से विशेष रूप से गरीब और वंचित परिवारों के बीच स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन, विशेष रूप से एलपीजी के उपयोग को बढ़ावा दे रही है.

अध्ययन में बताया गया है, ‘हालांकि पीएमयूवाई के माध्यम से एलपीजी तक पहुंच में तेजी से विस्तार सराहनीय है, लेकिन शोध से पता चलता है कि एलपीजी कनेक्शन होने से घरों में इसका निरंतर उपयोग सुनिश्चित नहीं होता है.’

यह भी पाया गया कि गरीब परिवारों के लिए एलपीजी सिलेंडर को फिर से भरने की कीमत इसके उपयोग में एक बड़ी बाधा है.

अध्ययन के मुताबिक, ‘सरकारी सब्सिडी हटाने के साथ-साथ ईंधन की बढ़ती कीमतें एलपीजी सिलेंडर को अप्रभावी बना देती हैं. इसलिए कम आय वाले परिवार बायोमास की ओर रुख करते हैं या एलपीजी के साथ बायोमास का उपयोग करते हैं.’