इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एनएमसी द्वारा प्रिस्क्रिप्शन में अनिवार्य रूप से जेनेरिक दवाएं लिखने के नियम को वापस लेने की मांग करते हुए कहा है कि देश में निर्मित 1% से भी कम जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता का परीक्षण किया जाता है. सरकार और डॉक्टर रोगी सुरक्षा से कोई समझौता नहीं कर सकते.
नई दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया को लिखे एक पत्र में भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) प्रिस्क्रिप्शन में जेनेरिक दवाएं अनिवार्य रूप से लिखने पर राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) के नियमों को वापस लेने की मांग की है.
एनडीटीवी के अनुसार, आईएमए का कहना है कि सभी दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित होने तक इस नियम को अनिवार्य न रखा जाए.
आईएमए ने उन नियमों पर भी चिंता व्यक्त की जो डॉक्टरों को फार्मा कंपनियों द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों में भाग लेने से रोकते हैं. इसने कहा कि इस तरह की पाबंदी पर दोबारा सोचे जाने की जरूरत है. उसने मांग की कि संघों और संगठनों को एनएमसी नियमों के दायरे से छूट दी जानी चाहिए.
खबर के अनुसार, आईएमए और इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस के सदस्यों ने सोमवार को स्वास्थ्य मंत्री मांडविया से मुलाकात की थी और एनएमसी के नियमों को लेकर अपनी चिंता जाहिर की थी.
उल्लेखनीय है कि एनएमसी ने अपने ‘पंजीकृत चिकित्सकों के आचरण से संबंधित विनियमों’ में कहा है कि सभी डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखनी होंगी, ऐसा न करने पर उन्हें सजा मिलेगी और उनका लाइसेंस भी एक अवधि के लिए निलंबित किया जा सकता है.
इसमें चिकित्सकों से ब्रांडेड जेनेरिक दवाएं लिखने से बचने को भी कहा गया है. आईएमए ने अपने पत्र में कहा, ‘आईएमए के लिए यह बड़ी चिंता का विषय है क्योंकि इसका सीधा असर मरीज की देखभाल और सुरक्षा पर पड़ता है. ऐसा माना जाता है कि भारत में निर्मित 1 प्रतिशत से भी कम जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता का परीक्षण किया जाता है. रोगी की देखभाल और सुरक्षा से सरकार और चिकित्सा पेशेवर, दोनों ही कोई समझौता नहीं कर सकते.’
एसोसिएशन ने कहा कि हमारे देश में क्वॉलिटी एश्योरेंस तंत्र बहुत कमजोर है. इसमें कहा गया है कि भारत में 70,000 दवा फॉर्मूलेशन के 3 लाख से अधिक बैच हैं, वहीं हमारे देश में क्वॉलिटी एश्योरेंस तंत्र सालाना केवल 15,753 दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित कर सकता है.
आईएमए ने कहा, ‘2023 में, सीडीएससीओ और राज्य औषधि नियंत्रण विभाग द्वारा मिलकर केवल लगभग 12,000 परीक्षण किए गए थे. यदि हम मानते हैं कि प्रत्येक बैच से एक नमूने का परीक्षण किया जाता है, तो परीक्षणों की न्यूनतम आवश्यक संख्या लगभग 3,00,000 थी.’
एनएमसी के नियमों में यह भी कहा गया है, ‘पंजीकृत चिकित्सकों और उनके परिवारों को कोई तोहफा, यात्रा सुविधाएं, कैश या आर्थिक सहायता नहीं मिलनी चाहिए. किसी भी बहाने से उनकी पहुंच फार्मा कंपनियों या उनके प्रतिनिधियों, वाणिज्यिक मेडिकल केयर संस्थानों, मेडिकल उपकरण कंपनियों या कॉरपोरेट अस्पतालों की ओर से मिलने वाले मनोरंजन तक नहीं होनी चाहिए.’
साथ ही नियमों में कहा गया है कि इसके अलावा, पंजीकृत चिकित्सा चिकित्सकों को सेमिनार, कार्यशाला, संगोष्ठी और सम्मेलन जैसी किसी भी थर्ड पार्टी की शैक्षणिक गतिविधि में शामिल नहीं होना चाहिए, जिसमें फार्मा कंपनियों या संबद्ध स्वास्थ्य क्षेत्र की तरफ से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष स्पॉन्सरशिप शामिल हो.
आईएमए का कहना है कि नैतिक आचरण और पक्षपात रहित प्रशिक्षण माहौल सुनिश्चित करने की मंशा वाजिब है, लेकिन फार्मा कंपनियों या स्वास्थ्य तंत्र द्वारा प्रायोजित थर्ड पार्टी की शिक्षण गतिविधियों पर सीधे-सीधे पाबंदी पर पुनर्विचार होना चाहिए.
इसके अलावा, एनएमसी नियम डॉक्टरों को किसी भी दवा ब्रांड, दवा और उपकरण का समर्थन करने या उनका विज्ञापन करने से भी रोकते हैं. इस संबंध में एसोसिएशन ने कहा कि आईएमए और कई पेशेवर संगठन सोसाइटी अधिनियम या इसी तरह के अधिनियमों के तहत पंजीकृत हैं.
आईएमए ने कहा, ‘इस तरह की गतिविधियों के लिए धन जुटाने के लिए यह कानूनी रूप से सही तरीका है. जब तक धन को प्रामाणिक तरीके से पारदर्शी तरीके से जुटाया जाता है और एसोसिएशन के उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह आईएमए के कानूनी अधिकारों के हिसाब से है.’
एनएमसी के यह कहने पर कि इन नियमों के प्रकाशन की तारीख से 3 साल के भीतर पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर आईटी अधिनियम, डेटा सुरक्षा और गोपनीयता कानूनों के प्रावधानों का पालन करते हुए पूरी तरह से डिजिटलीकृत रिकॉर्ड सुनिश्चित करेंगे, आईएमए ने कहा कि ‘डिजिटलीकरण का स्वागत है, हालांकि यह अनिवार्य करना कि यह 3 सालों में किया जाए, अवास्तविक बात है.’