केंद्र सरकार के आरटीआई पोर्टल से कई वर्षों की जानकारी ग़ायब

सूचना का अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस बात की पुष्टि की है कि आरटीआई पोर्टल से वर्षों का डेटा गायब हो गया है. पिछले साल केंद्र सरकार ने ‘भारी लोड’ का हवाला देते हुए पोर्टल पर एकाउंट बनाने की सुविधा हटा दी थी. इसके अलावा अगर मौजूदा एकाउंट होल्डर अपने एकाउंट को बरक़रार रखना चाहते हैं तो उन्हें छह महीने की अवधि में कम से कम एक आवेदन दाख़िल करना होगा.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

सूचना का अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस बात की पुष्टि की है कि आरटीआई पोर्टल से वर्षों का डेटा गायब हो गया है. पिछले साल केंद्र सरकार ने ‘भारी लोड’ का हवाला देते हुए पोर्टल पर एकाउंट बनाने की सुविधा हटा दी थी. इसके अलावा अगर मौजूदा एकाउंट होल्डर अपने एकाउंट को बरक़रार रखना चाहते हैं तो उन्हें छह महीने की अवधि में कम से कम एक आवेदन दाख़िल करना होगा.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: सूचना का अधिकार कार्यकर्ताओं ने बुधवार को पाया कि उनके पिछले आवेदनों के रिकॉर्ड सैकड़ों की संख्या में आरटीआई ऑनलाइन पोर्टल से गायब हो गए हैं. यह पोर्टल नागरिकों को केंद्र सरकार से सार्वजनिक सूचना तक पहुंच के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है.

द हिंदू ने दो आरटीआई कार्यकर्ताओं के आवेदनों के नमूने देखे और सत्यापित किए, जिनमें से एक के पूरे एकाउंट से 2022 से पहले की जानकारी हटा दी गई है.

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी), जो आरटीआई पोर्टल का प्रबंधन करता है और सरकारी अधिकारियों को आरटीआई आवेदनों को कैसे संभालना चाहिए, इसके लिए प्रशिक्षण और मानकों का प्रसार करता है, ने गायब डेटा के संबंध में द हिंदू के एक प्रश्न का जवाब नहीं दिया.

मध्य प्रदेश के एक आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने कहा कि उनके एकाउंट में भी दिक्कत (आवेदन गायब होने के संबंध में) है. इसके अलावा द हिंदू द्वारा उपयोग किए गए दो एकाउंट में भी कई वर्षों के आवेदन और उनके जवाब गायब हैं.

आरटीआई ऑनलाइन पोर्टल नागरिकों को आरटीआई आवेदन दाखिल करने के लिए 10 रुपये का शुल्क जमा करने के लिए कई डिजिटल भुगतान विकल्पों की अनुमति देता है. यह एक ऐसी सुविधा है, जो डाक चेक के साथ आवेदन भेजने के अन्य तरीकों की तुलना में कहीं अधिक सुविधाजनक है.

पोर्टल का रखरखाव राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) द्वारा किया जाता है.

डिजिटल अधिकार कार्यकर्ता और द वायर के लिए डिजिटल मुद्दों पर स्तंभकार श्रीनिवास कोडाली ने भी पोर्टल से डेटा गायब होने की पुष्टि की.

उन्होंने द वायर को बताया, ‘आरटीआई ऑनलाइन पोर्टल को सरकार पिछले कुछ महीनों से अनुपयोगी बना रही है और नए पंजीकरण रोक रही है. यहां तक कि उन एकाउंट को हटाने की चेतावनी भी दे रही है, जिनका उपयोग नहीं किया जा रहा है. 2019 से पहले दायर की गई सभी आरटीआई अब सर्वर से हटा दी गई हैं.’

उन्होंने कहा कि यह सरकारी आदेशों को हटाने जितना ही गंभीर है. उन्होंने कहा, ‘आरटीआई पोर्टल के किसी भी उपयोगकर्ता को इसके बारे में कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई थी.’

द हिंदू द्वारा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, आरटीआई ऑनलाइन पोर्टल ने 2013 से (जब इसे लॉन्च किया गया था) 2022 तक 58.3 लाख से अधिक आवेदनों पर कार्रवाई की है. दायर किए गए आवेदनों की संख्या लगातार बढ़ रही है. 2022 में 12.6 लाख से अधिक आवेदन दायर किए गए थे.

सार्वजनिक जानकारी का गायब होना पिछले कुछ महीनों में आरटीआई पोर्टल के बिगड़ते प्रदर्शन से जुड़ी एक अन्य समस्या है. इससे पहले पिछले कुछ दिनों में कम से कम दो अवधियों के लिए पोर्टल की गति और प्रदर्शन में दिक्कतें आईं और भुगतान किए जाने के कुछ दिनों बाद तक अधिकारियों को आवेदन मिल नहीं सके थे.

यह साइट नागरिकों को सभी केंद्रीय मंत्रालयों, उनके विभागों, सहायक संस्थानों, नियामकों, भारत के विदेशी मिशनों और कुछ केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों के पास आवेदन दाखिल करने की अनुमति देती है.

रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल केंद्र सरकार ने ‘भारी लोड’ का हवाला देते हुए आरटीआई पोर्टल पर एकाउंट बनाने की सुविधा हटा दी थी. इसके अलावा अगर मौजूदा एकाउंट होल्डर अपने एकाउंट को बरकरार रखना चाहते हैं तो उन्हें छह महीने की अवधि में कम से कम एक आवेदन दाखिल करना होगा.

आईटीआई कार्यकर्ता गौड़ ने कहा कि पोर्टल में ‘फॉरगॉट पासवर्ड’ का विकल्प भी नहीं दिया गया है, जिसका अर्थ है कि जिन कुछ लोगों के पास अभी भी एकाउंट है, वे अपने लॉगिन क्रेडेंशियल गलत होने पर पूरी तरह से एक्सेस खोने का जोखिम उठा सकते हैं.

उन्होंने कहा कि एकाउंट होने से आवेदकों के व्यक्तिगत विवरण पहले से भरे होते हैं, जिससे फाइलिंग प्रक्रिया अधिक सुविधाजनक हो जाती है. इसके बिना आवेदकों को अब हर बार आवेदन दाखिल करते समय अपना व्यक्तिगत विवरण भरना होता है.

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 भारत में एक ऐतिहासिक कानून था, जिसने एक नागरिक को सार्वजनिक जानकारी मांगने की क्षमता प्रदान की और नौकरशाही तथा अपारदर्शी सरकारों से संबंधित तमाम मामलों की जानकारी तक पहुंच को आसान बना दिया था.

हालांकि 2014 के बाद से आवेदनों के माध्यम से या अपील में जानकारी प्राप्त करने की क्षमता सत्तारूढ़ प्रतिष्ठान की अनिच्छा और अक्सर वर्षों तक सूचना आयुक्तों की नियुक्ति न होने के कारण बाधित हुई है.

विशेषज्ञों का कहना है कि संसद के आखिरी सत्र में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक का पारित होना पिछले दरवाजे से आरटीआई अधिनियम में संशोधन करने जैसा है. इससे पहले ‘व्यापक सार्वजनिक हित’ ने व्यक्तिगत जानकारी के प्रकटीकरण को उचित ठहराया था. अब यह नया विधेयक सरकारी एजेंसियों को किसी भी प्रकार की निजी जानकारी साझा करने से रोकता है, भले ही इसमें सार्वजनिक हित शामिल हो.