2023 का भारत 1938 का जर्मनी बन चुका है, यह बार-बार साबित हो रहा है

मुज़फ़्फ़रनगर की अध्यापिका से पूछ सकते हैं कि वे छात्र के लिए ‘मोहम्मडन’ विशेषण क्यों प्रयोग कर रही हैं? वे कह सकती हैं कि उनकी सारी चिंता मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई को लेकर थी. मुमकिन है कि इसका इस्तेमाल इस प्रचार के लिए हो कि मुस्लिम शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं हैं और उन्हें जब तक दंडित न किया जाए, वे नहीं सुधरेंगे.

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(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

मुज़फ़्फ़रनगर की अध्यापिका से पूछ सकते हैं कि वे छात्र के लिए ‘मोहम्मडन’ विशेषण क्यों प्रयोग कर रही हैं? वे कह सकती हैं कि उनकी सारी चिंता मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई को लेकर थी. मुमकिन है कि इसका इस्तेमाल इस प्रचार के लिए हो कि मुस्लिम शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं हैं और उन्हें जब तक दंडित न किया जाए, वे नहीं सुधरेंगे.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

एक मुसलमान बच्चे को उसी की क्लास के हिंदू बच्चों से पिटवाने के वीडियो से पैदा हुए शुरुआती सदमे के बाद भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य और समर्थक मुज़फ़्फ़रनगर के एक स्कूल की घटना की ‘धर्मनिरपेक्ष’ व्याख्या में जुट गए हैं.

दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक़, ‘वीडियो में कुर्सी बैठी शिक्षिका छात्र के धर्म को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी कर रही है. वह पहले एक छात्र से उसके गाल पर थप्पड़ लगवाती है. इसके बाद दो अन्य छात्रों को बुलाकर गाल और दूसरे से पीठ पर पिटाई कराती है. पीड़ित छात्र खड़े हुए आंसू बहा रहा है, जबकि उसके निकट बैठा व्यक्ति इस मुद्दे पर हंस रहा है.’

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक़, कैमरे के पीछे के आदमी से शिक्षिका यह कहती सुनी जाती है, ‘मैंने तो डिक्लेयर कर दिया, जितने भी मोहम्मडन बच्चे हैं, इनके वहां चले जाओ…’ कैमरे के पीछे का व्यक्ति उससे सहमति जतलाता जान पड़ता है.

आगे रिपोर्ट के मुताबिक़, छात्र को मारने के बाद जब एक बच्चा वापस अपनी जगह बैठता तो त्यागी उसे कहती है, ‘क्या तुम मार रहे हो? ज़ोर से मारो न.’ फिर वह पूछती हैं, ‘चलो और किसका नंबर है.’ जब वह रोने लगता है तो वह कहती हैं, ‘अबकी बार कमर पर मारो… चलो… मुंह पे मत मारो अब मुंह लाल हो रहा है… कमर पर मारो सारे.’

साफ़ है कि शिक्षिका बच्चे को क़ायदे से सज़ा देना चाहती है ताकि उसको यह सबक़ याद रह जाए. दंड सांकेतिक नहीं, वास्तविक होना चाहिए.

अध्यापिका हिंदू हैं. यह उसका अपना स्कूल है. वह जिस बच्चे को पिटवा रही है, वह मुसलमान. पीटने वाले बच्चे हिंदू ही होंगे, यह हिंदी अख़बार कहता है. वीडियो के प्रसारित होने के बाद पुलिस हरकत में आई और शिक्षा विभाग भी.

पुलिस ने तहक़ीक़ात में शुरुआती जानकारी में अध्यापिका का पक्ष पेश किया है. एक अधिकारी के मुताबिक़ आरंभिक जांच से मालूम हुआ है कि अध्यापिका यह कह रही थीं कि जिन मुसलमान बच्चों की मांएं उनकी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देती हैं, उनकी पढ़ाई का नाश हो जाएगा… ’ अधिकारी के अनुसार अध्यापिका के क़रीब जो बैठा है, उसने भी इस बात की तस्दीक़ की है.

अध्यापिका विकलांग हैं. एक तर्क यह दिया जा रहा है कि बच्चे ने अपना काम नहीं किया था जिसके चलते वह उसे दंडित करना चाहती थीं. लेकिन बेचारी विकलांग होने के कारण ख़ुद बच्चे को मार नहीं सकती थीं इसलिए उसने बाक़ी बच्चों से वह करवाया जो वह ख़ुद करतीं. इस तर्क के अनुसार बच्चे को मुसलमान होने के कारण नहीं, बल्कि स्कूल का काम नहीं करने के कारण दंड दिया गया.

अध्यापिका की शारीरिक अक्षमता को ध्यान में रखा जाना चाहिए. मुमकिन है कि अध्यापिका को दंडित किए जाने की मांग के ख़िलाफ़ उसकी विकलांगता की मजबूरी का तर्क पेश किया जाए. यह भी कि वह आख़िरकार बच्चे की भलाई के लिए ही यह अप्रिय कार्य करने को बाध्य हुईं. उसके इरादे को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

आप पूछ सकते हैं कि वह छात्र के लिए ‘मोहम्मडन’ विशेषण का प्रयोग क्यों कर रही हैं? वह यह कह सकती हैं कि उनकी चिंता सारी मुसलमान बच्चों की पढ़ाई को लेकर थी क्योंकि वे काम नहीं कर रहे थे. इसलिए उन्होंने अलग से इस बात का उल्लेख किया.

यह भी क़तई मुमकिन है कि इस बात का इस्तेमाल फिर से इस प्रचार के लिए किया जाए कि मुसलमान शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं हैं और उन्हें जब तक दंडित नहीं किया जाए, वे नहीं सुधरेंगे.

हो सकता है कि हमें यह भी बतलाया जाए कि सहपाठियों से पीटने के अनुभव हम सबके हैं. अध्यापक अक्सर दूसरे बच्चों से उनके सहपाठियों को पिटवाते रहे हैं. हमें याद है कि पहले अध्यापक कैसे बेंत की छिलाई ख़ुद बच्चों से करवाते थे और उसे उन्हें क्लास के दूसरे बच्चों पर आज़माने का काम सहपाठियों को ही देते थे. ज़ोर से नहीं मारने पर वे उस बच्चे को बेंत लगाकर बतलाते थे कि ठीक से कैसे मारा जाता है. विषय से अधिक छात्रों को वह सबक़ याद रह गया है.

यह सब कुछ हमें बतलाया जाएगा, शिक्षिका को एक भली मंशा वाली अध्यापिका साबित करने के लिए जिसके मन में छात्र की भलाई का ख़याल ही था. यह साबित कर दिया जाएगा कि उनको सजा देने का जो शोर उठ रहा है, वह ‘मॉब लिंचिंग’ है और अध्यापिका के साथ नाइंसाफ़ी है. संभव है कि उनके पक्ष में कोई अभियान ही चलाया जाए.

बच्चों के अधिकारों के लिए स्थापित राष्ट्रीय आयोग ने बच्चे के साथ हुई नाइंसाफ़ी और हिंसा पर चिंता या नाराज़गी जतलाने की जगह उन सबको क़ानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है जो इस वीडियो को प्रसारित कर रहे हैं. बहाना यह है कि इससे इस घटना में शामिल बच्चों को पहचान उजागर हो रही है. आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर उन सबको क़ानूनी नोटिस भेजे जा रहे हों.

इस घटना से मुसलमानों को उनके स्कूली तजुर्बों की याद आ गई है. किस तरह उनके सहपाठी उनका मज़ाक़ बनाते थे, उनके धर्म को लेकर उन्हें बेइज्जत करते थे, उन्हें पाकिस्तानी कहकर दुत्कारते थे, मुसलमानों की हर पीढ़ी की याद में यह सब कुछ सामान्य है. उनमें से कई कह रहे हैं कि सहपाठी ज़रूर ऐसा करते थे, लेकिन अध्यापक ऐसे न थे. लेकिन क्या यह सच है?

एक छात्रा ने दिल्ली के एक प्रगतिशील स्कूल का अपना अनुभव बतलाया. छठी क्लास में एक पिकनिक में उसकी अध्यापिका ने कहना शुरू किया कि मुसलमान उस हर चीज़ का उल्टा करते हैं जो हिंदू करते हैं. उस छात्रा ने बालोचित भोलेपन में पूछा कि यह भी संभव है कि हिंदू ही मुसलमान जो करते हैं, उनका उल्टा करते हों! इस बात की जानकारी जब मैंने ख़ुद स्कूल की प्राचार्या को दी और अपनी चिंता जतलाई तो उन्होंने बच्ची की बात को सच मानने से इनकार कर दिया.

अब आप कोई 90 साल पहले 8 नवंबर, 1938 की बर्लिन की कक्षा में चलिए. गिल्बर्ट इस कक्षा का एक यहूदी छात्र है. अध्यापक उसे बुलाकर उसके होमवर्क के लिए दुत्कारता है और पिछली बेंच पर बिठा देता है. उसे पूरी क्लास के आगे चिह्नित किया जाता है. उसके सामने एक दूसरे आर्य बच्चे की तारीफ़ की जाती है.

2023 का भारत 1938 का जर्मनी है. यह बार-बार साबित हो रहा है. लेकिन ऐसा कहने वाले को भारत को बदनाम करने के लिए जेल भेजा जा सकता है. जेल भेजने वाले चाहते वही हैं, लेकिन जाने किस कुंठा के कारण ख़ुद को फ़ासिस्ट नहीं कहना चाहते.

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.)