स्टेट ऑफ इंडियन बर्ड्स (एसओआईबी) रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अध्ययन की गई 338 पक्षी प्रजातियों में से 60 प्रतिशत में दीर्घकालिक गिरावट देखी गई है. वहीं, वर्तमान वार्षिक प्रवृत्ति के लिए मूल्यांकन की गई 359 प्रजातियों में से 40 प्रतिशत में गिरावट दर्ज हुई है.
नई दिल्ली: एक रिपोर्ट में पता चला है कि खुले पारिस्थितिकी तंत्र, नदियों और तटों जैसे प्रमुख स्थानों (Habitats) में रहने वाले पक्षियों की संख्या में कमी आई है. स्टेट ऑफ इंडियन बर्ड्स (एसओआईबी) रिपोर्ट के दूसरे संस्करण को शुक्रवार (25 अगस्त) को जारी किया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, रिपोर्ट में देश भर के 30,000 से अधिक बर्डवॉचर से डेटा एकत्र कर संकलित किया गया है. एसओआईबी को 13 सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के समूह स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स पार्टनरशिप द्वारा प्रकाशित किया जाता है.
खुले स्थान वाले आवास पारिस्थितिक तंत्र की एक विस्तृत श्रृंखला का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसमें खुले प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र जैसे घास के मैदान, अर्ध-शुष्क क्षेत्र और रेगिस्तान शामिल हैं. साथ ही इसमें मानव निर्मित पारिस्थितिक तंत्र जैसे फसल भूमि, चरागाह भूमि और परती भूमि (Fallow Lands) भी शामिल हैं.
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अध्ययन की गई 338 पक्षी प्रजातियों में से 60 प्रतिशत में दीर्घकालिक गिरावट देखी गई है. वहीं, वर्तमान वार्षिक प्रवृत्ति के लिए मूल्यांकन की गई 359 प्रजातियों में से 40 प्रतिशत में गिरावट दर्ज हुई है.
2020 के बाद दूसरी बार जारी की गई पक्षी मूल्यांकन रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘प्रिनिया’, ‘रॉक कबूतर’, ‘एशियाई कोयल’ और ‘भारतीय मोर’ जैसी सामान्य प्रजातियों में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है.
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ई-बर्ड पर अपलोड किए गए डेटा का उपयोग करके तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, ‘बाया वीवर’ और ‘पाइड बुशचैट’ जैसी अन्य सामान्य पक्षी प्रजातियों की संख्या अपेक्षाकृत स्थिर हैं.
रिपोर्ट में भारत में सबसे गंभीर रूप से खतरे में पड़ी पक्षी प्रजातियों के संरक्षण की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है, जिसमें ‘जेर्डनंस कोर्सर’, ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’, ‘ह्वाइट-बेलिड हेरॉन’, ‘बंगाल फ्लोरिकन’ और ‘फिन्स वीवर’ शामिल हैं.
विशेष रूप से घास के मैदानों और अन्य खुले आवासों, वेटलैंड और वुडलैंड्स के पक्षियों की संख्या तेजी से घट रही है. सबसे अधिक गिरावट वाले पक्षियों में रैप्टर, प्रवासी समुद्री पक्षी और बत्तख शामिल थे.
आहार के संदर्भ में बात की जाए तो मांसाहारी, कीटभक्षी और अनाज या बीज खाने वाले पक्षियों की संख्या में सर्वाहारी या फल और फूलों का मधु (पराग) खाने वाले पक्षियों की तुलना में अधिक तेजी से गिरावट आ रही है.
इसके अलावा प्रवासी प्रजातियां गैर-प्रवासियों की तुलना में अधिक खतरे में प्रतीत होती हैं और पश्चिमी घाट-श्रीलंका क्षेत्र की स्थानिक प्रजातियां दूसरों की तुलना में बदतर स्थिति में हैं.
पक्षियों के कुछ समूह विशेष रूप से खतरे में नज़र आ रहे हैं, जिनमें ‘बस्टर्ड’ और ‘कौरसर’ जैसी खुले निवास स्थान वाली प्रजातियां, ‘स्कीमर’ और कुछ ‘टर्न’ जैसे नदी के किनारे पर घोंसला बनाने वाले पक्षी, तटीय पक्षी और कई बत्तख शामिल हैं.
रिपोर्ट में विशेषज्ञों और बर्ड वॉचर्स द्वारा संरक्षण प्राथमिकता के लिए भारतीय पक्षियों की कुल 942 प्रजातियों का अध्ययन किया गया, जिनमें से 217 प्रजातियां पिछले आठ वर्षों में स्थिर या बढ़ती पाई गईं. इसके अलावा पिछले तीन दशकों में 204 पक्षी प्रजातियों में गिरावट देखी गई है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कुल 942 में से 178 प्रजातियों को उच्च संरक्षण प्राथमिकता के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें नॉर्दर्न शॉवेलर, नॉर्दर्न पिंटेल, कॉमन टील, टफ्टेड डक, ग्रेटर फ्लेमिंगो, सारस क्रेन, इंडियन कौरसर और अंडमान सर्पेंट ईगल शामिल हैं.’