केंद्र ने सोमवार देर शाम सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफ़नामा दायर किया है, जिसमें कहा गया कि पिछले हलफ़नामे में एक पैराग्राफ ‘अनजाने में छूट गया’ था. उक्त पैरा में लिखा था कि ‘संविधान के तहत या अन्यथा कोई अन्य निकाय जनगणना या जनगणना के समान कोई कार्रवाई करने का अधिकार नहीं रखता है.’
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सोमवार देर शाम बिहार जाति सर्वेक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि ‘पिछले’ हलफनामे में एक निश्चित पैराग्राफ ‘अनजाने में छूट गया’ था.
रिपोर्ट के अनुसार, उक्त पैराग्राफ में लिखा था कि ‘संविधान के तहत या अन्यथा कोई अन्य निकाय जनगणना या जनगणना के समान कोई कार्रवाई करने का अधिकार नहीं रखता है.’
अब सरकार का ताजा हलफनामा बिहार सरकार की आलोचना के बाद आया है. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वह न तो राष्ट्रीय स्तर पर जनगणना कराना चाहती है और न ही बिहार में.
लाइव लॉ के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा पिछले हलफनामे से पैरा 5 हटाने और नया हलफनामा दाखिल करने के बावजूद इस मामले पर मोदी सरकार के दृष्टिकोण का सार पुराना ही है.
नए हलफनामे में कहा गया है कि जनगणना 1948 के जनगणना अधिनियम द्वारा शासित एक वैधानिक प्रक्रिया है, जिसे संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची I की प्रविष्टि 69 के तहत शक्तियों के प्रयोग में अधिनियमित किया गया था और उक्त अधिनियम केवल केंद्र सरकार को जनगणना का संचालन करने का अधिकार देता है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता यह बताना चाहते थे कि केंद्र सरकार किसी भी तरह से बिहार की जनगणना में बाधा डालते हुए नहीं दिखना चाहती. उन्होंने शीर्ष अदालत से कहा, ‘केंद्र न तो मुकदमे का विरोध कर रहा था और न ही समर्थन कर रहा था.’
केंद्र का यह कदम बिहार के उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव के केंद्र पर निशाना साधने के बयान के तुरंत बाद सामने आया है. तेजस्वी का कहना था, ‘उनके पास कोई ज्ञान नहीं है. वे केवल झूठ बोलना और सच को दबाना जानते हैं. उन्होंने हलफनामे में भी इसका विरोध किया है… यह स्पष्ट कर दिया गया है कि भाजपा ऐसा नहीं चाहती है और इसका विरोध कर रही है. यदि वे इसका समर्थन करते हैं, तो उन्हें इसे (जाति जनगणना) पूरे देश में कराना चाहिए.’
उनसे पहले राजद संरक्षक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने भी इस मुद्दे पर मोदी सरकार पर निशाना साधा था. उन्होंने कहा कि बिहार में हुए जाति सर्वे को केंद्र नफरत की नज़र से देख रही है. किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति और जाति से परिचित हुए बिना नीतियां कैसे बनाई जा सकती हैं? उन्होंने जोड़ा, ‘इस देश के प्रधानमंत्री जातियों से परेशान लगते हैं. वह अपने भाषणों में ‘जाति’ का जिक्र करते रहते हैं, शायद उन्हें लगता है कि यह सामाजिक हकीकत उन्हें चैन से जीने नहीं देगी. अगर वह ऐसा सोचते हैं तो सही हैं.’
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि महागठबंधन, उसके बाद कांग्रेस और इंडिया ‘गठबंधन’ ने कहा है कि वे जाति जनगणना के पक्ष में हैं, भाजपा बैकफुट पर है और इस विषय से बचने के लिए उत्सुक है. इसे जाति जनगणना करने के लिए सहमत होने में समस्या है, क्योंकि यह मूल रूप से हिंदुत्व की अपनी विचारधारा के विपरीत है, जो हिंदुत्व के तले सभी जातियों को लाने की मांग करती है, मगर राजनीतिक रूप से इसके लिए उपयुक्त नहीं है. उसे लगता है कि इस तरह के सर्वे से सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय की बात करने वाले विपक्ष को ही फायदा होगा.
ज्ञात हो कि इस महीने की शुरुआत में बिहार का जाति सर्वे पूरा हो गया है, इसी तरह के सर्वे ओडिशा और झारखंड में हो रहे हैं.
बिहार में जाति सर्वेक्षण का पहला दौर जनवरी में 7 से 21 जनवरी के बीच आयोजित किया गया था. दूसरा दौर 15 अप्रैल को शुरू हुआ था और यह एक महीने तक जारी रहने वाला था. हालांकि 4 मई को पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को जाति आधारित सर्वेक्षण को तुरंत रोकने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि अंतिम आदेश पारित होने तक पहले से ही एकत्र किए गए आंकड़ों को किसी के साथ साझा न किया जाए. बाद में इसी अदालत ने इसकी अनुमति दी.
इस कवायद के पीछे बिहार की नीतीश सरकार का तर्क है कि सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर विस्तृत जानकारी से वंचित समूहों की सहायता के लिए बेहतर सरकारी नीति बनाने में मदद मिलेगी.