खोजी पत्रकारों के नेटवर्क ओसीसीआरपी के पत्रकारों द्वारा प्राप्त और अंतरराष्ट्रीय अख़बारों- द गार्जियन और फाइनेंशियल टाइम्स के साथ साझा किए गए दस्तावेज़ बताते हैं कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडानी समूह में आने वाले जिन ‘मॉरीशस के निवेश फंड्स’ ज़िक्र किया गया था, उनके तार अडानी समूह से ही जुड़े हैं.
नई दिल्ली: यूनाइटेड किंगडम के अख़बार द गार्जियन ने इसके द्वारा देखे गए ‘ऑफशोर वित्तीय रिकॉर्ड’ का हवाला देते हुए एक रिपोर्ट में बताया है कि ‘अडानी परिवार के सहयोगियों ने अडानी समूह की कंपनियों में चतुराई से स्टॉक हासिल करने में कई साल बिताए होंगे.’
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि गौतम अडानी और उनके भाई से जुड़े दो लोग बरमूडा में एक ग्लोबल ऑपर्च्युनिटीज फंड का इस्तेमाल ‘एक विशिष्ट उद्देश्य’- अडानी समूह के शेयरों में बड़े पद हासिल करने और व्यापार करने, के लिए कर रहे थे. इससे
अख़बार ने निष्कर्ष दिया है कि समूह के संस्थापक गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी के सहयोगी- संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से नासिर अली शाबान अहली और ताइवान से चांग चुंग-लिंग’ की जोड़ी के निवेश ‘विनोद अडानी के एक कर्मचारी’ संभाल रहे थे. इससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या वे शेयर मूल्य में हेराफेरी रोकने वाले भारतीय कंपनियों के नियमों को दरकिनार करने वाले अगुवा के बतौर काम कर रहे थे.’
फाइनेंशियल टाइम्स में कहा गया है कि यह पहली बार है कि अडानी स्टॉक के संभावित विवादास्पद मालिकों की पहचान की गई है. इससे अमेरिकी शॉर्ट सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की जनवरी में प्रकाशित रिपोर्ट में अडानी समूह पर ‘कॉरपोरेट इतिहास में सबसे बड़ा घोटाला’ करने का आरोप लगाया गया था. उस समय, अडानी ने किसी भी गलत काम से इनकार किया था.
अब सामने आई ख़बरों से संबंधित दस्तावेज़ संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी), जो खोजी पत्रकारों का एक नेटवर्क है, द्वारा दो अख़बारों के साथ साझा किए गए थे, जो ऑफशोर कंपनियों में निवेश के लिए अपनाए गए तरीके को बताते हैं.
ओसीसीआरपी द्वारा प्राप्त किए गए और द गार्जियन और फाइनेंशियल टाइम्स के साथ साझा किए गए विशेष दस्तावेज़, जिनके बारे में उनका कहना है कि अडानी समूह के व्यवसाय की सीधी जानकारी और कई देशों के सार्वजनिक रिकॉर्ड वाले लोगों द्वारा पुष्टि की गई थी, दिखाते हैं कि कैसे मॉरीशस के एक द्वीपीय देश के अपारदर्शी निवेश के जरिये अडानी स्टॉक में करोड़ों डॉलर का निवेश किया गया था.
क्या था तरीका
ओसीसीआरपी के अनुसार, उसके पत्रकारों द्वारा प्राप्त दस्तावेज़ों से पता चलता है कि अडानी समूह में निवेश कैसे आ रहा था, जिसमें हिंडनबर्ग रिपोर्ट में उद्धृत 13 ऑफशोर संस्थाओं में से दो शामिल थे, जो ‘मॉरीशस-आधारित निवेश फंड’ में से थे.
दो फंड- इमर्जिंग इंडिया फोकस फंड (ईआईएफएफ) और ईएम रिसर्जेंट फंड (ईएमआरएफ), जो ऑफशोर निवेश लगते हैं, जो कई अमीर निवेशकों से जुड़े होते हैं. लेकिन पत्रकारों द्वारा प्राप्त दस्तावेज़ों से पता चलता है कि ‘धन का एक बड़ा हिस्सा दो विदेशी निवेशकों- ताइवान के चांग और यूएई के नासिर अली शाबान अहली- द्वारा इन फंडों में लगाया गया था, जिन्होंने 2013 और 2018 के बीच चार अडानी कंपनियों में बड़ी मात्रा में शेयरों ट्रेडिंग के लिए इसका इस्तेमाल किया था.’
ओसीसीआरपी के अनुसार, मार्च 2017 में एक समय पर अडानी समूह के स्टॉक में निवेश की कीमत 430 मिलियन डॉलर थी.
यह पैसा किसी सीधे रस्ते से नहीं आ रहा था और इसे फॉलो करना मुश्किल भरा था. इसे चार कंपनियों के माध्यम से लाया गया था: चांग के स्वामित्व वाली लिंगो इन्वेस्टमेंट लिमिटेड (बीवीआई); अहली के स्वामित्व वाली गल्फ एरिज ट्रेडिंग एफजेडई (यूएई); मध्य पूर्व महासागर व्यापार (मॉरीशस), जिसका मालिकाना हक अहली का था; और गल्फ एशिया ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट लिमिटेड (बीवीआई), जिसे ‘सम्भालने वाले शख्स अहली थे) और बरमूडा का ग्लोबल अपॉर्चुनिटीज फंड. (नीचे ट्वीट में चार्ट देखें).
The @FT breaks it down: how a "trove of documents" revealed alleged illegal insider trading and stock manipulation within The Adani Group pic.twitter.com/ltHxPm7XDK
— Holly Creenaune (@hollycreenaune) August 31, 2023
ओसीसीआरपी ने बताया कि ईआईएफएफ और ईएमआरएफ में चांग और अहली के निवेश के प्रभारी फंड मैनेजरों को ‘अडानी कंपनी से निवेश पर सीधे निर्देश प्राप्त हुए.’ इसमें कहा गया है, ‘ईआईएफएफ और ईएमआरएफ को सलाहकार सेवाएं देने के लिए एक्सेल के लिए एक समझौते पर खुद विनोद अडानी ने 2011 में हस्ताक्षर किए थे.”
ओसीसीआरपी द्वारा प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, इन निवेशों के परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण लाभ हुआ, जहां पिछले कुछ वर्षों में सैकड़ों करोड़ की कमाई हुई क्योंकि ईआईएफएफ और ईएमआरएफ ने बार-बार अडानी स्टॉक को कम कीमत पर खरीदा और इसे ऊंचे दाम पर बेचा.
जून 2016 में अपने निवेश के उच्चतम स्तर पर दोनों फंडों के पास अडानी समूह की चार कंपनियों: अडानी पावर, अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी पोर्ट्स और अडानी ट्रांसमिशन, के 8% से लेकर लगभग 14% तक फ्री-फ्लोटिंग शेयर थे.
रिपोर्ट बताती है, ‘चांग और अहली के अडानी परिवार से संबंध पिछले कुछ वर्षों में व्यापक रूप से सामने आए हैं. अडानी समूह द्वारा कथित गलत कामों की दो अलग-अलग सरकारी जांचों में इन लोगों को परिवार से जोड़ा गया था. अंततः दोनों मामले ख़ारिज कर दिए गए.’
फाइनेंशियल टाइम्स में कहा गया है कि भारत के कानूनों और नियामक ढांचे के कारण यह संबंध महत्वपूर्ण है. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘विनोद अडानी के साथ उनका रिश्ता मायने रखता है क्योंकि वह तथाकथित प्रमोटर समूह का हिस्सा हैं, जो कॉरपोरेट के अंदरूनी लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला भारतीय कानूनी शब्द है, जिनकी शेयरधारिता शेयर बाजार नियमों के तहत 75 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए. नियम का उल्लंघन करने पर डीलिस्टिंग हो सकती है.’
इन ख़बरों पर प्रतिक्रिया देते हुए हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा, ‘आखिरकार, लूप बंद हो ही गया.’
Finally, the loop is closed.
The Financial Times and OCCRP report that offshore funds owning at least 13% of the free float in multiple Adani stocks were secretly controlled by associates of Vinod Adani, masking the relationship with 2 sets of books. https://t.co/L4clFVpA2K pic.twitter.com/ofWf6KQK5h
— Hindenburg Research (@HindenburgRes) August 30, 2023
आरोपों पर जवाब
ओसीसीआरपी का कहना है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि चांग और अहली के अडानी समूह के निवेश का पैसा अडानी परिवार से आया था. इसके अनुसार इस धन का स्रोत अज्ञात है. लेकिन उनका दावा है कि ओसीसीआरपी द्वारा प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि विनोद अडानी ने अपने निवेश के लिए मॉरीशस के उसी फंड में से एक का इस्तेमाल किया था.
अडानी समूह के एक प्रतिनिधि ने ओसीसीआरपी को बताया कि पत्रकारों द्वारा जांच की गई मॉरीशस फंड का नाम पहले ही ‘हिंडनबर्ग रिपोर्ट’ में आया था. (रिपोर्ट में इन ऑफशोर कंपनियों का नाम बताया गया है, लेकिन यह खुलासा नहीं किया गया है कि अडानी स्टॉक में निवेश करने के लिए उनका इस्तेमाल कौन कर रहा था.)
प्रतिनिधि ने कहा, ‘ये आरोप न केवल निराधार और निराधार हैं, बल्कि हिंडनबर्ग के आरोपों को दोहराते हैं. यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अडानी समूह की सभी सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध संस्थाएं सार्वजनिक शेयर होल्डिंग्स से संबंधित विनियमन सहित सभी लागू कानूनों का अनुपालन करती हैं.’
द गार्जियन को दिए जवाब में चांग ने कहा कि उन्हें अडानी स्टॉक की किसी भी गुप्त खरीद के बारे में कुछ भी नहीं पता था. उन्होंने यह नहीं बताया कि क्या उन्होंने कोई स्टॉक खरीदा या नहीं है, लेकिन यह जरूर पूछा कि पत्रकारों को उनके अन्य निवेशों में दिलचस्पी क्यों नहीं है. उन्होंने बात खत्म करने से पहले जोड़ा, ‘हम सामान्य कारोबार करते हैं.”
विनोद अडानी ने टिप्पणी के लिए किए गए अनुरोधों का जवाब नहीं दिया. हालांकि, अडानी समूह ने इस बात से इनकार किया है कि समूह को चलाने में उनकी कोई भूमिका है, लेकिन इस मार्च में उन्होंने स्वीकार किया कि वह इसके ‘प्रमोटर समूह’ का हिस्सा थे – जिसका अर्थ है कि कंपनी के मामलों पर उनका नियंत्रण था और उन्हें अडानी ग्रुप के स्टॉक की सभी होल्डिंग्स के बारे में सूचित किया जाना था.
On allegations of OCCRP, Adani Group says "We categorically reject these recycled allegations. These news reports appear to be yet another concerted bid by Soros-funded interests supported by a section of the foreign media to revive the meritless Hindenburg report. In fact, this… pic.twitter.com/hOfRU4BUSN
— ANI (@ANI) August 31, 2023
दोनों अख़बारों की ख़बरें सामने बाद अडानी समूह की ओर से एक बयान जारी करते हुए कह गया, ‘ये रिसाइकिल (दोबारा इस्तेमाल किए गए) आरोप हैं. ये समाचार रिपोर्ट्स सोरोस द्वारा फंड किए जा रहे हितों और विदेशी मीडिया के एक वर्ग द्वारा समर्थित बेकार हिंडनबर्ग रिपोर्ट को जिलाने का एक और प्रयास लगती हैं.’
सेबी ने चेतावनी को नज़रअंदाज़ किया?
ओसीसीआरपी की रिपोर्ट यह भी कहती है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के तुरंत बाद भारतीय नियामकों ने अडानी के लेनदेन के बारे में चेतावनियों को नजरअंदाज किया.
द गार्जियन की रिपोर्ट कहती है:
‘अडानी ने बार-बार इस बात से इनकार किया है कि प्रधानमंत्री के साथ उनके लंबे समय से रिश्तों के कारण भारत सरकार की तरफ से उन्हें तरजीह दी गई है. फिर भी ओसीसीआरपी द्वारा निकाले गए और गार्जियन द्वारा देखे गए एक दस्तावेज से पता चलता है कि सेबी, जो अब अडानी समूह को लेकर हो रही जांच का प्रभारी सरकारी नियामक है, को 2014 की शुरुआत में ही अडानी ऑफशोर फंड के इस्तेमाल से जुड़ी शेयर बाजार गतिविधि के बारे में अवगत कराया गया था.’
‘जनवरी 2014 को लिखे एक पत्र में भारत की वित्तीय कानून प्रवर्तन एजेंसी- राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के तत्कालीन प्रमुख नजीब शाह ने सेबी के तत्कालीन प्रमुख उपेंद्र कुमार सिन्हा को लिखा था. शाह ने पत्र में कहा था कि ‘ऐसे संकेत मिले हैं कि (अडानी से जुड़ा) पैसा अडानी समूह में निवेश और विनिवेश के रूप में भारत के शेयर बाजारों में पहुंच गया है.’
‘उन्होंने नोट किया कि उन्होंने यह सामग्री सिन्हा को इसलिए भेजी थी क्योंकि सेबी ‘शेयर बाजार में अडानी समूह की कंपनियों के लेनदेन की जांच कर रहा था. हालांकि, नियामक के लिए काम करने वाले एक सूत्र ने बताया कि कुछ महीनों बाद मई 2014 में मोदी के चुने जाने के बाद सेबी की दिलचस्पी गायब हो गई.’
‘सेबी ने कभी भी डीआरआई द्वारा दी गई चेतावनी का सार्वजनिक रूप से खुलासा नहीं किया है, न ही 2014 में अडानी समूह में की गई किसी जांच का खुलासा किया है. यह पत्र सेबी द्वारा हाल में अदालतों में दाखिल बयानों से मेल नहीं खाता है, जिसमें उसने इस बात से इनकार किया था कि 2020 से पहले अडानी समूह की कोई जांच हुई थी. साथ ही इसने यह भी जोड़ा कि यह कहना कि 2016 में इसने अडानी समूह की जांच की था, ‘तथ्यात्मक रूप से निराधार’ है.
(नोट: इस रिपोर्ट को अपडेट किया गया है.)