भारत में क़ैदियों की अप्राकृतिक मौतों का प्रमुख कारण आत्महत्या: सुप्रीम कोर्ट समिति

सुप्रीम कोर्ट की जेल सुधार समिति ने आत्महत्या रोधी बैरक के निर्माण की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए शीर्ष अदालत को बताया कि 2017 और 2021 के बीच देश भर की जेलों में हुईं 817 अप्राकृतिक मौतों में से 660 आत्महत्याएं थीं और इस दौरान उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 101 आत्महत्याएं दर्ज की गई हैं. इन मौतों में जेल के अंदर 41 हत्याएं भी शामिल हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर/@GujaratPolice)

सुप्रीम कोर्ट की जेल सुधार समिति ने आत्महत्या रोधी बैरक के निर्माण की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए शीर्ष अदालत को बताया कि 2017 और 2021 के बीच देश भर की जेलों में हुईं 817 अप्राकृतिक मौतों में से 660 आत्महत्याएं थीं और इस दौरान उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 101 आत्महत्याएं दर्ज की गई हैं. इन मौतों में जेल के अंदर 41 हत्याएं भी शामिल हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर/@GujaratPolice)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की जेल सुधार समिति ने आत्महत्या रोधी बैरक के निर्माण की आवश्यकता पर जोर देते हुए शीर्ष अदालत को बताया कि 2017 और 2021 के बीच देश भर की जेलों में हुईं 817 अप्राकृतिक मौतों का एक प्रमुख कारण आत्महत्या है.

द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस (सेवानिवृत्त) अमिताव रॉय की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त समिति ने कहा है कि 817 अप्राकृतिक मौतों में से 660 आत्महत्याएं थीं और इस दौरान उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 101 आत्महत्याएं दर्ज की गईं.

समिति ने शीर्ष अदालत में प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा, ‘जेल के बुनियादी ढांचे के मौजूदा डिजाइन के भीतर संभावित फांसी स्थल और संवेदनशील स्थानों की पहचान कर उन्हें बदलने के साथ आत्महत्या प्रतिरोधी कक्षों/बैरक का निर्माण करने की आवश्यकता है.’

27 दिसंबर 2022 की रिपोर्ट के अंतिम रिपोर्ट में नौ अध्याय हैं, जिनमें जेलों में अप्राकृतिक मौतें, मौत की सजा पाए दोषी और भारतीय जेलों में हिंसा शामिल हैं.

सितंबर 2018 में शीर्ष अदालत ने जेल सुधारों से जुड़े मुद्दों को देखने और जेलों में भीड़भाड़ सहित कई पहलुओं पर सिफारिशें देने के लिए जस्टिस (सेवानिवृत्त) रॉय की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था.

‘जेलों में अप्राकृतिक मौतें’ शीर्षक वाले अध्याय में समिति ने कहा है कि हिरासत में यातना या हिरासत में मौत नागरिकों के बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन है और यह ‘मानवीय गरिमा का अपमान’ है.

इसमें कहा गया है कि रिपोर्ट राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा प्रकाशित 2017 से 2021 तक प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया (पीएसआई) रिपोर्ट में उपलब्ध कराए गए आंकड़ों पर आधारित है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘समिति ने भारत की जेलों में मौतों (प्राकृतिक और अप्राकृतिक) से संबंधित पीएसआई डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि हिरासत में होने वाली मौतों की संख्या में 2019 के बाद से लगातार वृद्धि देखी गई है और 2021 में अब तक सबसे अधिक मौतें हुईं, इसमें आत्महत्या (80 प्रतिशत) अप्राकृतिक मौतों का प्रमुख कारण है.’

इसमें कहा गया है कि 2017 से 2021 तक पांच वर्षों में वृद्धावस्था के कारण 462 मौतें हुईं और बीमारी के कारण 7,736 कैदियों की मौत हुई.

इसके अनुसार, ‘2017-2021 के बीच भारत की जेलों में हुईं कुल 817 अप्राकृतिक मौतों में से 2017 से 2021 तक पिछले पांच वर्षों के दौरान 660 आत्महत्याएं और 41 हत्याएं हुईं.’

समिति ने कहा कि इस अवधि के दौरान 46 मौतें आकस्मिक मौतों से संबंधित थीं, जबकि 7 कैदियों की मौत क्रमशः बाहरी तत्वों के हमले और जेलकर्मियों की लापरवाही या ज्यादती के कारण हुई.

समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पिछले पांच वर्षों (वर्ष 2017 से 2021) के दौरान उत्तर प्रदेश की जेलों में देश में सबसे अधिक आत्महत्याएं (101) दर्ज की गई हैं, इसके बाद पंजाब और पश्चिम बंगाल राज्य हैं, जहां क्रमशः 63 और 60 कैदियों ने आत्महत्या की. केंद्रशासित प्रदेशों में दिल्ली में इस दौरान सबसे अधिक 40 आत्महत्याएं दर्ज की गईं.

समिति ने सिफारिश की है कि जहां तक संभव हो अदालतों में वरिष्ठ नागरिकों और बीमार कैदियों की पेशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग माध्यम से की जाए.

इसमें कहा गया है, ‘आत्महत्या कैदियों के बीच अप्राकृतिक मौतों का एक प्रमुख कारण है. जेल कर्मचारियों को चेतावनी के संकेतों को पहचानने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और जेलों में जीवन की सुरक्षा के लिए उचित तंत्र तैयार करना चाहिए.’

समिति ने कहा कि जेल कर्मचारियों को नियमित रूप से ‘अवसाद और असामान्य व्यवहार के लक्षणों’ को पहचानने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए, जिसमें आत्मघाती इरादा भी शामिल हो सकता है और कैदियों को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार अनिवार्य रूप से मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करनी चाहिए.

समिति ने कहा कि प्रत्येक जेल में पहचान से लेकर चिकित्सा उपचार तक एक ‘आत्महत्या रोकथाम कार्यक्रम’ होना चाहिए, ताकि ऐसी किसी भी संभावना को विफल किया जा सके.

इसमें कहा गया है, ‘जब जोखिम वाले किसी कैदी की पहचान कर्मचारियों या सह-कैदियों द्वारा की जाती है, तो ऐसे कैदी को तत्काल मूल्यांकन और आवश्यक हस्तक्षेप के लिए मानसिक स्वास्थ्य इकाई में भेजा जाना चाहिए.’

इसमें कहा गया है कि जेल प्रशासन को कैदियों के बीच हिंसा को रोकने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाने चाहिए.

समिति ने कहा, ‘जेलों में हिंसा को कम करने के लिए, यह सिफारिश की गई है कि पहली बार अपराध करने वाले और बार-बार अपराध करने वाले अपराधियों के बीच जेलों, अस्पतालों और अदालतों और अन्य स्थानों पर उनके परिवहन के दौरान अलगाव होना चाहिए.’

इसमें कहा गया है, ‘जेल प्रशासन को राष्ट्रीय और राज्य स्वास्थ्य बीमा योजनाओं जैसे आयुष्मान भारत योजना, चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना और इसी तरह की राज्य स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को जेलों में व्यापक रूप से लागू करने का प्रयास करना चाहिए.’

कई सिफारिशों में इसने कैदियों के लिए अपनी शिकायतें दर्ज कराने के लिए एक मजबूत शिकायत निवारण तंत्र की आवश्यकता का भी सुझाव दिया.

शीर्ष अदालत पूरे भारत में 1,382 जेलों में व्याप्त स्थितियों से संबंधित मामले पर विचार कर रही है. इस मामले की सुनवाई 26 सितंबर को होनी है.

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