गुजरात हाईकोर्ट ने हत्या से जुड़े एक मामले में आरोपी और मृतक के बेटे के बीच हुए ‘समझौते’ के आधार पर आरोपी को ज़मानत दी थी, जिसके ख़िलाफ़ वारदात में घायल हुए एक व्यक्ति शीर्ष अदालत पहुंचे थे. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा इस आदेश को चुनौती न देने को लेकर भी सवाल उठाया.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक मामले में आरोपी और मृतक के बेटे के बीच ‘व्यक्तिगत समझौते’ के आधार पर एक आरोपी को जमानत देने के लिए गुजरात हाईकोर्ट को फटकार लगाई है.
रिपोर्ट के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए और आरोपी को ट्रायल कोर्ट के समक्ष तुरंत सरेंडर करने का आदेश दिया, साथ ही जमानत आदेश को चुनौती न देने के लिए गुजरात सरकार को भी फटकारा.
लाइव लॉ के अनुसार, मामला शीर्ष अदालत में जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ तक पहुंचा जब उक्त वारदात में घायल हुए एक व्यक्ति ने हाईकोर्ट के जमानत आदेश के खिलाफ अपील की. बताया गया है कि आरोपियों ने 17 सितंबर, 2021 को परवीनभाई (मृतक) और याचिकाकर्ता पर हमला किया, जिसमें उन्हें चोटें आईं और परवीनभाई की मौत हो गई थी.
पीठ ने इसे लेकर कहा, ‘अजीब बात है कि एकल न्यायाधीश ने जिस बात पर विचार किया है उनमें से एक में यह तथ्य शामिल है कि प्रतिवादी नंबर 2 [अभियुक्त] ने मूल शिकायतकर्ता [मृतक के बेटे] से समझौते की बात कही और मूल शिकायतकर्ता ने हलफनामे में उक्त समझौते की पुष्टि की, वो भी आईपीसी की धारा 302 [हत्या की सजा] के तहत अपराध के संबंध में.’
शीर्ष अदालत ने जमानत आदेश में की गई हाईकोर्ट की टिप्पणियों पर भी आपत्ति जताई कि आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है. कोर्ट ने जिक्र किया कि आरोपी को एक अन्य एफआईआर के सिलसिले में जमानत पर रिहा होने के बाद गिरफ्तार किया गया था. यह देखते हुए कि आरोपी ने 23 सितंबर, 2021 से 18 फरवरी, 2022 तक ‘केवल’ छह महीने जेल में बिताए थे, शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी की ओर से आपराधिक व्यवहार की प्रवृत्ति है और इसलिए उसे तुरंत कोर्ट के सामने सरेंडर करना चाहिए.
अदालत ने जमानत आदेश को चुनौती न देने के लिए गुजरात सरकार की भी खिंचाई की. इसने संबंधित अधिकारियों को राज्य के गृह सचिव को नवीनतम आदेश भेजने का आदेश जारी किया.
अदालत ने कहा, ‘हमारी राय में यह एक उपयुक्त मामला था जहां प्रतिवादी नंबर 1 [सरकार] को प्रतिवादी नंबर 2 [अभियुक्त] के पक्ष में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए जमानत के आदेश के खिलाफ इस अदालत का रुख करना चाइये था, लेकिन हैरानी की बात है कि ऐसा नहीं हुआ. इस आदेश की एक प्रति प्रतिवादी संख्या 1 [सरकार] के वकील द्वारा गुजरात सरकार के सचिव (गृह) को उचित कार्रवाई के लिए भेजी जाएगी.’