जम्मू कश्मीर किसी भी समय चुनाव के लिए तैयार, राज्य का दर्जा देने की कोई समयसीमा तय नहीं: केंद्र

भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पांच जजों की संविधान पीठ 2019 में अनुच्छेद 370 में प्रावधानों में संशोधन कर जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ने दोहराया कि जम्मू कश्मीर का केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा ‘अस्थायी’ है.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पांच जजों की संविधान पीठ 2019 में अनुच्छेद 370 में प्रावधानों में संशोधन कर जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ने दोहराया कि जम्मू कश्मीर का केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा ‘अस्थायी’ है.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बीते गुरुवार (31 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि वह जम्मू कश्मीर में ‘अब किसी भी समय चुनाव के लिए तैयार है’, लेकिन वह इस केंद्र शासित प्रदेश को राज्य का दर्जा देने के लिए कोई सटीक समय सीमा नहीं दे सकती.

केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष यह दोहराया कि जम्मू कश्मीर का केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा ‘अस्थायी’ है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘मुझे दिए गए निर्देश के अनुसार, मैं अभी पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने के बारे में सटीक समय अवधि बताने में असमर्थ हूं, हालांकि ये कहूंगा कि केंद्रशासित प्रदेश की स्थिति एक अस्थायी स्थिति है. राज्य जिन अजीबोगरीब परिस्थितियों से दशकों तक बार-बार और लगातार अशांति से गुजरा, उसके कारण इसमें कुछ समय लग सकता है.’

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ में जस्टिस एसके कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल है. पीठ 2019 में अनुच्छेद 370 में किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसके बाद केंद्र सरकार ने तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य की विशेष स्थिति समाप्त कर इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू कश्मीर और लद्दाख) में विभाजित कर दिया था.

दो दिन पहले पीठ ने सरकार से पूछा था कि वह जम्मू कश्मीर में चुनाव कब करवाएगी और क्या राज्य का दर्जा देने के लिए कोई समयसीमा है.

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए मेहता ने कहा, ‘केंद्र सरकार अब किसी भी समय चुनाव के लिए तैयार है. अभी तक मतदाता सूची को अपडेट करने का काम चल रहा है, जो काफी हद तक खत्म हो चुका है. कुछ काम अभी बाकी है. चुनाव आयोग यही कर रहा है. यह केंद्र शासित प्रदेश के चुनाव आयोग और भारत के चुनाव आयोग द्वारा मिलकर लिया गया निर्णय होगा.’

उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में तीन चुनाव होने थे, जहां 2019 के बाद त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली शुरू की गई थी.

उन्होंने कहा, ‘पहला चुनाव पंचायतों का होगा. जिला विकास परिषद के चुनाव हो चुके हैं. लेह (पहाड़ी विकास परिषद) चुनाव खत्म हो गए हैं. कारगिल (पहाड़ी विकास परिषद) चुनाव सितंबर में हैं. प्रक्रिया पहले से ही चालू है. आज तक यही स्थिति है. दूसरा चुनाव नगर पालिका चुनाव और तीसरा विधानसभा चुनाव होगा. यह (जम्मू-कश्मीर) विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश है.’

मेहता ने आंकड़े भी पढ़े और कहा कि ये चुनाव कराने के किसी भी निर्णय के उद्देश्य से प्रासंगिक हैं.

2018 और 2023 के आंकड़ों की तुलना करते हुए उन्होंने कहा, ‘आतंकवादी घटनाओं में 45.2 प्रतिशत की कमी आई है. घुसपैठ, जो जम्मू कश्मीर में एक बहुत बड़ी समस्या थी, 90.2 प्रतिशत कम हो गई और पथराव आदि में 97.2 प्रतिशत की कमी आई है. सुरक्षाकर्मियों के हताहत होने की संख्या में भी 65.9 प्रतिशत की कमी आई है. ये सभी आंकड़े निर्णय के उद्देश्य से प्रासंगिक हैं.’

जस्टिस कौल ने कहा कि यह वास्तव में प्रासंगिक नहीं है.

इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि यह ‘इस उद्देश्य से है कि चुनाव कब कराया जाए’ और ‘आज की तारीख में, यही स्थिति है’. उन्होंने कहा, ‘ये वे कारक हैं, जिन पर एजेंसियां ध्यान देंगी’.

उन्होंने कहा कि अतीत में चुनावों को जिस चीज ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह पथराव की घटनाएं और बंद या हड़ताल के नियमित आह्वान थे.

उन्होंने कहा, ‘2018 में पथराव की 1,767 घटनाएं हुई थीं. यह अब (2019 से) शून्य है, केवल प्रभावी पुलिसिंग या (सुरक्षाकर्मियों के कारण) नहीं, बल्कि विभिन्न कदमों जैसे युवाओं को लाभप्रद रोजगार आदि के कारण ऐसा हुआ, युवाओं को अलगाववादी ताकतों और देश के बाहर की ताकतों द्वारा गुमराह किया गया और संगठित बंद, जो 2017 में 52 थे, अब शून्य हैं (2019 से).’

जम्मू कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा अस्थायी होने पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान का जिक्र करते हुए मेहता ने कहा, ‘हम एक बेहद असाधारण स्थिति से निपट रहे हैं. इसे एक राज्य बनाने के लिए इसमें कई चीजें शामिल करनी होंगी. वे कार्रवाइयां शुरू कर दी गई हैं.’

उन्होंने कहा कि सिर्फ पुलिसिंग से शांति नहीं आती. कई योजनाएं हैं और कई लाभकारी परियोजनाएं शुरू की गई हैं. प्रधानमंत्री के विकास पैकेज के तहत 58,477 करोड़ रुपये की 53 परियोजनाओं में से 32 पूरी हो चुकी हैं. इस तरह हम धीरे-धीरे इसे पूर्ण राज्य बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.

मेहता ने कहा कि 2022 में 1.88 करोड़ पर्यटकों ने जम्मू कश्मीर का दौरा किया. उन्होंने ​कहा, ‘अब तक मुख्य उद्योग पर्यटन था. अब उद्योग आ रहे हैं. 2023 में अब तक 1 करोड़ पर्यटक आए हैं. यह विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार पैदा करता है. केंद्र सरकार द्वारा उठाए जा रहे ये कदम केवल इसके केंद्र शासित होने पर ही उठाए जा सकते थे.’

यह कहते हुए कि ये मामले में निर्णय के लिए अप्रासंगिक हैं, कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने यह जानना चाहा कि क्या अदालत सॉलिसिटर जनरल द्वारा रिकॉर्ड पर रखे गए तथ्यों को ध्यान में रख रही है. उन्होंने कहा कि अगर अदालत वास्तव में इन्हें ध्यान में रख रही है, तो याचिकाकर्ता भी इसका प्रतिवाद करना चाहेंगे.

सिब्बल ने कहा, ‘ये तथ्य अदालत के ध्यान में जाएंगे, क्योंकि वे (सरकार) यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि जम्मू कश्मीर के लोगों के लाभ के लिए यह ‘भारी बदलाव’ कैसे हुआ है. यदि 5,000 लोग नजरबंद हैं और पूरे राज्य में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 144 लागू है, तो कोई बंद नहीं हो सकता है.’

उन्होंने अदालत से इस ओर ध्यान न करने का आग्रह किया.

सीजेआई ने कहा कि मेहता ने जो कहा वह राज्य के गठन के रोडमैप पर पीठ द्वारा उठाए गए प्रश्नों के संदर्भ में था और इसका अदालत द्वारा निपटाए जा रहे मामले के संबंध में निर्णय लेने पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

सीजेआई ने कहा, ‘ये ऐसे मामले हैं, जिन पर लोकतंत्र में नीतिगत मतभेद हो सकते हैं और होने भी चाहिए, लेकिन यह किसी संवैधानिक चुनौती के संवैधानिक उत्तर को प्रभावित नहीं कर सकता. इसलिए हमने उन तथ्यों को राज्य निर्माण के रोडमैप के परिप्रेक्ष्य में रखा, जिनका उन्होंने उल्लेख किया था.’

अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि न तो बयान और न ही उनका खंडन संवैधानिक प्रश्न निर्धारित करने के सवाल में शामिल होगा.

सिब्बल ने कहा, ‘समस्या यह है कि यह सब टेलीविजन पर दिखाया जाता है, इसलिए ये तथ्य रिकॉर्ड पर आते हैं. वे सार्वजनिक स्थान का हिस्सा हैं और लोगों को लगेगा कि सरकार ने कितना बड़ा काम किया है. इससे समस्या पैदा होती है.’

मेहता ने कहा, ‘प्रगति कभी कोई समस्या पैदा नहीं करती. हल्की बात यह है कि मेरे मित्र (सिब्बल) का कहना है कि कुछ लोग हैं, जो घर में नजरबंद हैं और इसलिएकिसी बंद का आह्वान नहीं हो रहा है तो इसका मतलब है कि सही लोग नजरबंद हैं.’