घोसी उपचुनाव सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान के इस्तीफ़े के कारण हो रहा है. चौहान उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी हैं. सपा ने यहां से दो बार विधायक रहे सुधाकर सिंह को मैदान में उतारा है. ग़रीबों के लिए काम और विकास की दुहाई, हिंदुत्व और बुलडोज़र की शौर्यगाथा पर दलबदलू और बाहरी बनाम स्थानीय के मुद्दे ने भाजपा की लड़ाई को कठिन बना दिया है.
गोरखपुर: उत्तर प्रदेश में मऊ जिले के घोसी विधानसभा का उपचुनाव जीतना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. करीब 20 दिन तक दो दर्जन से अधिक मंत्रियों और पूरे संगठन के जोर लगा लेने के बावजूद पार्टी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं है. गरीबों के लिए काम और विकास की दुहाई, हिंदुत्व और बुलडोजर की शौर्यगाथा पर दलबदलू, घोसी की माटी का लाल बनाम बाहरी के नैरेटिव ने भाजपा की लड़ाई को कठिन बना दिया है.
घोसी विधानसभा में उपचुनाव सपा छोड़ भाजपा में शामिल हुए पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान के इस्तीफे के कारण हो रहा है. चौहान उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी हैं और उनके सामने सपा ने यहां से दो बार विधायक रहे सुधाकर सिंह को मैदान में उतारा है.
चौहान का राजनीतिक जीवन दलबदल का रहा है. उन्हें यूपी का राजनीतिक मौसम विज्ञानी कहा जाता है. वह बसपा, कांग्रेस, सपा, भाजपा में रहे हैं. वर्ष 2022 के चुनाव में वह सपा के टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़े थे और विजयी हुए थे.
चौहान ने अपनी राजनीति बसपा से शुरू की थी. एक बार बसपा और एक बार सपा ने उन्हें राज्यसभा भेजा. वर्ष 2009 के लोकसभा में बसपा से जीतकर सांसद भी बने, लेकिन 2014 लोकसभा का चुनाव हार गए.
इसके बाद वह बसपा छोड़ भाजपा में शामिल हो गए. वे 2017 विधानसभा का चुनाव मधुबन विधानसभा सीट पर भाजपा से लड़े और कांग्रेस के अमरेश चंद्र पांडेय को हराकर जीते. उन्हें योगी सरकार में वन मंत्री बनाया गया.
चौहान 2022 के चुनाव के ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ भाजपा छोड़ सपा में शामिल हो गए थे. इस बार उन्होंने अपनी सीट बदल ली और घोसी से चुनाव लड़े. उनका मुकाबला भाजपा के विजय राजभर से हुआ और वह 22,216 मतों के अंतर से जीतने में सफल रहे, लेकिन 15 महीने बाद ही उन्होंने सपा से इस्तीफा दे दिया और फिर से भाजपा में लौट आए हैं. भाजपा ने उन्हें घोसी से उम्मीदवार भी बना दिया.
कहा जाता है कि चौहान चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे और विधान परिषद में जाना चाहते थे, लेकिन भाजपा ने लोकसभा चुनाव के पहले घोसी में पिछड़ी जातियों के नए ध्रुवीकरण को चुनाव के जरिये परीक्षण करना उचित समझा और उन्हें चुनाव मैदान में उतार दिया.
दरअसल 2022 के चुनाव में आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, जौनपुर, अंबेडकरनगर जिलों में भाजपा का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था. सपा ने इन जिलों में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था. ऐसा इसलिए हुआ कि सपा ने ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) से गठबंधन किया था, जिसका इन जिलों में अच्छा प्रभाव है.
सुभासपा के साथ आने से सपा को पिछड़ा वोट बैंक में राजभर समाज का जुड़ाव हुआ. इन जिलों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक है. सपा का एमवाई (मुस्लिम-यादव) फॉर्मूला सबसे बेहतर ढंग से पूर्वांचल के इस इलाके में ही लागू हुआ.
विधानसभा चुनाव के बाद सपा अपना गठबंधन कायम नहीं रख सकी. राजभर अलग हो गए. आजमगढ़ लोकसभ्भा उपचुनाव में भी सपा की हार हुई. फिर दारा सिंह चौहान भी पार्टी छोड़ गए.
दारा सिंह चौहान, फागू चौहान के बाद चौहान समाज के बड़े नेताओं में शुमार होते है. यही कारण है कि सभी दल उन्हें तवज्जो देते रहे हैं. फागू चौहान को राज्यपाल बना दिए जाने के बाद भाजपा के पास चौहान समाज का कोई बड़ा नेता नहीं है. इसलिए भाजपा उनका लोकसभा चुनाव में अच्छे से उपयोग करना चाहती है. चर्चा है कि अगर वह चुनाव जीतते हैं उन्हें मंत्री बनाया जाएगा.
दलबदलू और बाहरी का नैरेटिव
दारा सिंह चौहान घोसी से उपचुनाव में अपने राजनीतिक जीवन के कठिनतम संघर्ष में फंस गए है. उन्होंने लगातार दलबदल कर अपना कद बड़ा करते हुए सत्ता से हमेशा जुड़ाव बनाए रखा, लेकिन दलबदलू की छवि इस चुनाव में उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है.
क्षेत्र के लोगों से सीधा जुड़ाव और स्थानीय न होना उनकी दूसरी बड़ी कमजोरी है, जिसका फायदा सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह उठा रहे हैं. उन्होंने चुनाव को घोसी बनाम बाहरी बना दिया है. चौहान मूलत: आजमगढ़ के रहने वाले हैं. घोसी से छह बार जीते फागू चौहान भी आजमगढ़ के थे.
सुधाकर सिंह हर सभा में कह रहे हैं कि ‘घोसी की माटी पर बाहरी नेताओं ने कब्जा कर लिया है. वे सिर्फ चुनाव लड़ने आते हैं और जीत कर चले जाते हैं. बाहरी भगाओ, घोसी बचाओ.’
सुधाकर स्थानीय हैं और घोसी ब्लाक के पास ही रहते हैं. ब्लाक ऑफिस से तीन किलोमीटर दूर ही उनका गांव भी है. ब्लाक के बगल में स्थित उनके आवास में लगा नीम का पेड़ उनका अड्डा है, जहां लोग उनसे मिलते हैं.
वह कहते भी रहे हैं, ‘हम जीते या हारे नीमवा के पेड़ तले हमेशा मिलते रहे हैं और मिलेंगे. हारने के बाद भी न पार्टी छोड़ी न घोसी. हम घोसी की माटी के लाल हैं.’
सुधाकर दो बार विधायक रह चुके हैं. वे पहली बार 1996 में नत्थूपुर से सपा के टिकट पर जीत कर विधायक बने थे और 2012 में फिर से जीते. उन्होंने बसपा उम्मीदवार फागू चौहान और कौमी एकता दल के प्रत्याशी मुख्तार अंसारी को हराया था. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सुधाकर भाजपा के फागू चौहान से पराजित होकर तीसरे स्थान पर रहे थे.
दलबदलू, बाहरी और निष्क्रियता का आरोप दारा सिंह चौहान पर ऐसे चस्पा हो गया है कि दो दर्जन से अधिक मंत्रियों की फौज, पूरा भाजपा संगठन गांव-चौराहे पर पसीना बहाने के बाद भी आश्वस्त नहीं है कि उन्हें चुनाव में जिता देंगे.
आम लोगों पर भी इस नैरेटिव का असर है. भुजौटी के रहने वाले गणेश राजभर से 2022 के चुनाव में भी मुलाकात हुई थी. तब वे भाजपा को वोट देने की बात कर रहे थे. इस बार उनका मन बदला हुआ है. वे सुधाकर सिंह के पक्ष में हैं.
उनका कहना था, ‘सुधाकर बाबू हरज-गरज पर मिल जाए लें. दारा से तो भेंट नाहीं हो पावेला. उ खाली चुनाव के समय आवलें. बड़का दलबदलू हवन. हर बेरिए पार्टी बदल लेवे न. आज दुपहर में ओमप्रकाश भी आईल रहें. ए बेरी भाजपा के खातिर वोट मांगत बाटन. पिछली बार साइकिल के लिए मांगत रहेन. उनकर बात सुनल गइल लेकिन हमन के मन सुधाकर के वोट देवे के बा.’
मंत्रियों की फौज और निष्पक्ष चुनाव का सवाल
घोसी उपचुनाव में भाजपा ने पूरी ताकत लगा दी है. दो दर्जन से अधिक मंत्री पूरे चुनाव यहां जमे रहे. दोनों उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक के अलावा मंत्री सूर्य प्रताप शाही एके शर्मा, स्वतंत्र देव सिंह, नंद गोपाल नंदी, दिनेश सिंह आदि चुनाव प्रचार में सक्रिय रहे. इन मंत्रियों ने अपनी जाति के मतदाताओं के बीच ज्यादा समय दिया.
उप-मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक चुनाव की कमान संभाले हुए हैं. मऊ, आजमगढ़, गाजीपुर से लेकर गोरखपुर तक के होटल, गेस्ट हाउस भाजपा नेताओं से अटे पडे हैं. घोसी में मंत्रियों और भाजपा नेताओं की गाड़ियों की आवाज गूंज रही है. मंत्री और बड़े नेता गांव-गांव, घर-घर जाकर लोगों से वोट मांगते देखे गए.
निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय कुमार निषाद और सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने दर्जनों सभाएं की. राजभर ने तो सबसे ज्यादा जोर लगाया है. चर्चा है कि वह अपने बेटे अरुण राजभर को घोसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाना चाहते हैं. इसलिए दारा सिंह चौहान की जीत उनके लिए जरूरी है. वह भाजपा को यह भी दिखाना चाहते हैं कि इस इलाके में उनका बड़ा जनाधार है.
सपा की ओर से पूर्व मंत्री शिपपाल सिंह यादव मोर्चा संभाले हुए हैं. सपा ने भी कई जिलों के अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रचार में लगाया है. सपा के राजभर, निषाद, चौहान समाज के नेताओं को विशेष तौर पर प्रचार कार्य में लगाया गया, ताकि उनमें अपनी पैठ बनाई जा सके.
प्रशासन चुनाव आचार संहिता का कड़ाई से पालन कराने की बात तो करता रहा, लेकिन मंत्रियों के काफिले जिस तरह से चलते रहे उससे साफ तौर पर लगा कि सत्ता पक्ष को अपने तरीके से चुनाव प्रचार करने की छूट मिली हुई है.
घोसी विधानसभा क्षेत्र के नाके पर वाहनों की चेकिंग कर रहे निगरानी दल में मौजूद एक अधिकारी ने तल्ख लहजे में कहा कि हम सामान्य लोगों के वाहनों की वीडियोग्राफी कर रहे हैं और वे लोग बेरोकटोक झंडा, बैनर लगाए घूम रहे हैं.
घोसी उपचुनाव में जिस तरह से सत्ता पक्ष पूरी ताकत लगाए है और इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है, उससे निष्पक्ष चुनाव को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं. पूर्व मंत्री शिवपाल यादव ने खुद डीएम से मिलकर कहा था कि प्रशासन की ओर से मततदताओं को डराने धमकाने का काम बंद किया जाए और निष्पक्ष चुनाव की गारंटी दी जाए.
सपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्य चुनाव अधिकारी से लखनऊ में मुलाकत कर आरोप लगाया कि मंत्री सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में मतदान के लिए दबाव डाल रहे हैं. कोटेदारों, प्रधानों, ठेकेदारों, व्यापारियों पर भाजपा के पक्ष में मतदान करने का दबाव बनाया जा रहा है.
यह भी आरोप है कि बिजली चेकिंग के नाम पर सपा समर्थकों को डराया जा रहा है. मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बिना कारण लोगों को हिरासत में लिया गया और उनके वाहनों को थाने में जमा कराया गया. पुलिसकर्मियों की जति, धर्म देखकर तैनाती की गई है.
घोसी में मिले अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोगों ने कहा कि उन्हें आशंका है कि मुसलमानों को रामपुर कि तरह वोट देने से रोका जाए. आखिर मुसलमान बहुल इलाकों में बार-बार फ्लैग मार्च का क्या मतलब है?
भाजपा में अंतर्विरोध
भाजपा में अंतर्विरोध भी इस चुनाव में बाहर आ गए है. सवर्णों-पिछड़ों को एक साथ लेकर चलने में जो मुश्किलें हैं, वह इस चुनाव में साफ दिख रही हैं. भाजपा का कोर वोटर क्षत्रिय, भूमिहार, ब्राह्मण इस चुनाव में हिल गया है. उसे सुधाकर ज्यादा अपने लग रहे हैं. यह तबका भाजपा में पिछड़े नेताओं को बहुत अधिक अहमियत दिए जाने से क्षुब्ध है और घोसी में सुधाकर को समर्थन देकर भाजपा को संदेश देना चाहता है.
यह भी चर्चा हो रही है कि ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान की वापसी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इच्छा नहीं थी, लेकिन यूपी भाजपा के कुछ नेता दोनों को अमित शाह के पास ले गए और वहां से हरी झंडी लेकर भाजपा के साथ ले आए. यह चर्चा भी भाजपा के कोर वोटरों को उसके प्रति उदासीनता का कारण बन रही है.
पिछड़ी राजनीति का केंद्र घोसी
घोसी विधानसभा क्षेत्र में आजादी के बाद का पहला चुनाव सीपीआई नेता झारखंडेय राय जीते. उन्होंने चार बार इस विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया. पिछड़े बहुल इस सीट पर 1980 के बाद एक बार छोड़कर पिछड़े नेता ही जीतते रहे हैं.
भाजपा के लिए भी यह हमेशा कठिन सीट ही रही है. एक उपचुनाव को लेकर अब तक हुए 19 चुनावों में भाजपा सिर्फ दो बार ही जीत पाई है. यह जीत भी 2017 में तब मिली जब फागू चौहान भाजपा में आए. उनके राज्यपाल बनने के बाद हुए 2019 के उपचुनाव में भी भाजपा जीती, लेकिन फिर 2022 में उसे हार का सामना करना पड़ा.
इस सीट पर सात बार चौहान समुदाय के नेता चुनाव जीते हैं, लेकिन उनमें से स्थानीय नहीं थे. स्थानीय चौहान नेताओं को दर्द है कि उन्हें कोई भी राजनीतिक दल तवज्जो नहीं दे रहा है. इन नेताओं को लग रहा है कि यदि दारा सिंह चौहान चुनाव जीत जाएंगे तो उनके लिए आगे बढ़ने का रास्ता बंद हो जाएगा.
पिछले कुछ वर्षों से पिछड़े वर्ग में चौहान समुदाय भाजपा के साथ खुलकर समर्थन में रही है. पिछले चुनाव में दारा सिंह चौहान सपा से लड़े तब उनके समाज के लोगों ने उनका साथ नहीं दिया. चौहान बहुल बूथों पर उनकी हार हुई थी. इसलिए भाजपा नेतााओं को उम्मीद है कि नाखुश होने के बावजूद आखिर में चौहान समुदाय का बहुलांश दारा के पक्ष में ही रहेगा.
मनिकापुर के पूर्व प्रधान और दारा के कट्टर समर्थक गोरखनाथ चौहान दावा करते हैं कि पूरा चौहान समाज उनके साथ है.
गोरखनाथ इस बात को स्वीकार करते हैं कि दारा अपनी बड़ी राजनीतिक भूमिकाओं के चलते क्षेत्र में कम रह पाए और उनके प्रतिनिधियों से लोगों की नाराजगी है, लेकिन अब सब ठीक हो गया है. वे कहते हैं कि चुनाव प्रचार के शुरू में बाहरी और दलबदलू का प्रभाव था, लेकिन जैसे-जैसे प्रचार आगे बढ़ा ये मुद्दे पीछे हो गए.
ओमप्रकाश राजभर से अलग हुए उनके पुराने साथी महेंद्र राजभर सपा का प्रचार कर रहे हैं. उन्होंने अरविंद राजभर को इस सीट से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उनका पर्चा खारिज हो गया. इसके बाद उन्होंने सपा का समर्थन कर दिया ओर जोर शोर से प्रचार में जुट गए.
महेंद्र एक वर्ष पहले ओमप्रकाश राजभर से अलग होकर सुहेलदेव स्वाभिमान पार्टी बना ली थी. वे उसके राष्टीय अध्यक्ष हैं. भाजपा पर पर्चा खारिज कराने का आरोप लगाते हुए वे राजभर समुदाय को सपा के पक्ष में सहेजने में लगे हैं. वे ओमप्रकाश राजभर पर परिवारवाद का आरोप लगा रहे हैं.
हाथी की करवट
बसपा ने उपचुनाव में प्रत्याशी नहीं उतारा है. कांग्रेस और वाम दलों ने सपा का समर्थन किया है. बसपा प्रत्याशी नहीं होने से दलित मतदाताओं में भाजपा ओर सपा सबसे अधिक फोकस कर रहे हैं.
इस चुनाव में गेस्ट हाउस कांड अचानक से गूंजने लगा है. हर भाजपा नेता इसकी याद दिलाकर दलितों को सपा से दूर करने की कोशिश में लगा है. इसके साथ ही डेढ़ दशक पहले हुए गोलीकांड की याद दिलाकर दलितों और ब्राह्मणों को सचेत किया जा रहा है.
घोसी उपचुनाव का परिणाम दलित वोटों पर निर्भर हो गया है, क्योंकि क्षेत्र में मुसलमान के बाद सबसे अधिक मतदाता दलित हैं. इसके बाद पिछड़ी जातियों में चौहान निषाद, यादव मतदाता आते हैं.
घोसी के रहने वाले राजनीतिक टिप्पणीकार यशवंत सिंह कहते हैं कि मुहावरे है कि देखना है कि ऊंट किस करवट बैठेगा. इस उपचुनाव में मुहावरा बदल गया है कि हाथी जिस करवट बैठेगा, परिणाम उसी के पक्ष में रहेगा.
सुबह का भूला बनाम पलायन करने वाला
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 29 अगस्त को कोपागंज में सभा की थी. सभा में अच्छी खासी भीड़ जुटी. उन्होंने अपने संबोधन में उपचुनाव को ऐतिहासिक चुनाव बताते हुए कहा कि यह चुनाव पूरे देश को संदेश देगा.
उन्होंने बुनकरों, 69 हजार शिक्षकों की भर्ती, ओल्ड पेंशन स्कीम का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने बिना नाम लिए दारा सिंह चौहान और ओमप्रकाश राजभर पर निशाना साधा और कहा कि पलायन करने वाले लोगों ने जनता के वोट का विश्वास तोड़ा है. ये लोग अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2 सितंबर को घोसी चीनी मिल परिसर में हुई सभा में दारा सिंह चौहान की तुलना पहलवान दारा सिंह से करते हुए उनकी भाजपा में वापसी पर कहा कि सुबह का भूला शाम को वापस लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते. उन्होंने सपा और भाजपा पर करारे प्रहार किए, लेकिन बसपा का नाम नहीं लिया.
मुख्तार अंसारी का नाम लिए बिना 2005 के मऊ दंगे का जिक्र किया और कहा कि घोसी के चुनाव का महत्व वही समझ सकता है, जिसने मऊ दंगे को ठीक से महसूस किया होगा. उस समय माफिया असलहा लहराते हुए यादवों, गरीबों की हत्या कर रहे थे. आज माफिया ह्वीलचेयर पर बैठकर जान की भीख मांग रहे हैं.
सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह के पक्ष में सहानुभूति को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कहा कि यह सहानुभूति का समय नहीं विकास के बारे सोचने का समय है.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)