विपक्ष ने केंद्र के ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ कवायद की आलोचना की, संघवाद के लिए ख़तरा बताया

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की व्यवहार्यता की जांच के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया है. विपक्ष के नेताओं ने इसकी आलोचना करते हुए इसे एक ‘चाल’ क़रार दिया और आरोप लगाया कि सरकार धीरे-धीरे भारत में लोकतंत्र की जगह तानाशाही लाना चाहती है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की व्यवहार्यता की जांच के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया है. विपक्ष के नेताओं ने इसकी आलोचना करते हुए इसे एक ‘चाल’ क़रार दिया और आरोप लगाया कि सरकार धीरे-धीरे भारत में लोकतंत्र की जगह तानाशाही लाना चाहती है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: विपक्ष के नेताओं ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का अध्ययन करने के लिए एक समिति बनाने के केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए दावा किया कि इससे देश के संघीय ढांचे को खतरा है.

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की व्यवहार्यता की जांच के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक समिति बनाने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद ये प्रतिक्रियाएं आई हैं.

यह कदम संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी द्वारा 18 सितंबर से 22 सितंबर तक निर्धारित पांच दिवसीय विशेष संसदीय सत्र की घोषणा के ठीक एक दिन बाद आया. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद और अन्य को भी समिति का सदस्य नियुक्त किया गया है.

हालांकि अधीर रंजन चौधरी ने बीते शनिवार (2 सितंबर) को इस समिति का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया.

देश में एक साथ चुनाव कराने पर सरकार के जोर देने के बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने रविवार को कहा कि भारत के लोगों के पास 2024 के लिए ‘एक राष्ट्र, एक समाधान’ है और वह है भाजपा के ‘कुशासन’ से छुटकारा पाना.

उन्होंने सोशल साइट ‘एक्स’ (पूर्व नाम ट्विटर) पर एक पोस्ट में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की व्यवहार्यता को परखने के लिए केंद्र द्वारा गठित उच्चस्तरीय समिति को एक ‘चाल’ करार दिया और आरोप लगाया कि मोदी सरकार धीरे-धीरे भारत में लोकतंत्र की जगह तानाशाही लाना चाहती है.

उन्होंने कहा, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव पर समिति बनाने की यह चाल भारत के संघीय ढांचे को खत्म करने का एक हथकंडा है. ऐसी कठोर कार्रवाइयां हमारे लोकतंत्र, संविधान और प्रक्रियाओं को नष्ट कर देंगी. साधारण चुनाव सुधारों से जो हासिल किया जा सकता है, वह प्रधानमंत्री मोदी के अन्य विध्वंसक विचारों की तरह एक आपदा साबित होगा.’

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि वर्ष 1967 तक भारत में न तो इतने राज्य थे और न ही पंचायतों में 30.45 लाख निर्वाचित प्रतिनिधि थे.

खड़गे ने कहा, ‘हमारे पास लाखों निर्वाचित प्रतिनिधि हैं और उनका भविष्य एक साथ निर्धारित नहीं किया जा सकता. वर्ष 2024 के लिए भारत के लोगों के पास ‘एक राष्ट्र, एक समाधान’ है, और वह है भाजपा के कुशासन से छुटकारा पाना.’

खड़गे ने कहा, ‘अहम सवाल हैं – क्या प्रस्तावित समिति भारतीय चुनावी प्रक्रिया में शायद सबसे गंभीर बदलाव पर विचार-विमर्श करने और निर्णय लेने के लिए सबसे उपयुक्त है? क्या इतनी बड़ी कवायद राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर पर राजनीतिक दलों से परामर्श किए बिना एकतरफा की जानी चाहिए?’

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा को लोगों के जनादेश की अवहेलना करके चुनी हुई सरकारों को गिराने की आदत है, जिससे 2014 के बाद से संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों के लिए 436 उपचुनाव कराने पड़े.

इस कदम की आलोचना करते हुए सीपीआई नेता डी. राजा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा भारत के लोकतंत्र की जननी होने की बात करते हैं और फिर सरकार अन्य राजनीतिक दलों से चर्चा किए बिना एकतरफा फैसला कैसे ले सकती है.

उन्होंने कहा, ‘सरकार राजनीतिक दलों और संसद से परामर्श के बिना एकतरफा निर्णय कैसे ले सकती है?’

डीएमके अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार द्वारा ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लेकर ‘कुछ कठपुतलियों’ के साथ एक समिति बनाना अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ‘तानाशाही के साथ साजिश’ के अलावा कुछ नहीं है. उन्होंने कहा कि अन्नाद्रमुक इस विचार का समर्थन करने कर ‘बलि का बकरा’ बन रही है.

स्टालिन ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस समिति का अध्यक्ष बनाए जाने पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा, ‘भारत के राष्ट्रपति सभी के लिए समान हैं. यहां तक कि जब वह पद पर नहीं हैं, तब भी उन्हें राजनीति में नहीं आना चाहिए. यह उचित नहीं है कि वह राजनीति से संबंधित किसी भी मुद्दे में शामिल हों.’

उन्होंने समिति में डीएमके के प्रतिनिधियों को शामिल न किए जाने पर भी सवाल उठाया, जो 17वीं लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, ‘इंडिया यानी भारत, राज्यों का एक संघ है. ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार (भारतीय) संघ और उसके सभी राज्यों पर हमला है.’

माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा अलोकतांत्रिक और अव्यवहार्य है, जिससे और जटिलताएं पैदा होंगी.

येचुरी ने कहा कि केंद्र सरकार को सबसे पहले संविधान के अनुच्छेद 356 को रद्द करना होगा, जो उसे राज्य सरकार पर अपना अधिकार जताने की शक्ति देता है.

उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा को लागू करने की योजना बना रही है. भले ही अभी संसद के विशेष सत्र के कार्यक्रम की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन समिति का गठन या सत्ता पक्ष के बयान इसी ओर इशारा करते हैं. भारत जैसे देश में यह अवधारणा अव्यावहारिक है.’

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ कहा, ‘इसके लिए न सिर्फ संविधान में संशोधन बल्कि राज्यों की मंजूरी भी जरूरी है. हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे भाजपा शासित राज्यों में वे अपनी-अपनी विधानसभाओं को भंग करने के लिए कैबिनेट में निर्णय ले सकते हैं और प्रस्ताव पारित कर सकते हैं. आप राज्य विधानसभा की अवधि कम नहीं कर सकते, यह इस तरह से काम नहीं करता है.’

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, ‘हर बड़े काम को करने से पहले एक प्रयोग किया जाता है, इसी बात के आधार पर हम ये सलाह दे रहे हैं कि ‘एक देश-एक चुनाव’ करवाने से पहले भाजपा सरकार इस बार लोक सभा के साथ-साथ देश के सबसे अधिक लोकसभा व विधानसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश के लोकसभा-विधानसभा के चुनाव साथ कराके देख ले.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इससे एक तरफ चुनाव आयोग की क्षमता का भी परिणाम सामने आ जाएगा और जनमत का भी. साथ ही भाजपा को ये भी पता चल जाएगा कि जनता किस तरह भाजपा के खिलाफ आक्रोशित है और उसको सत्ता से हटाने के लिए कितनी उतावली है.’

वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने इस योजना को संविधान पर हमला बताया. उन्होंने कहा, ‘यह हमारे संविधान पर हमला है. तेजस्वी यादव (बिहार के उपमुख्यमंत्री) ने एक बहुत अच्छा बयान दिया है कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के बजाय ‘एक राष्ट्र, एक आय’ होना चाहिए. गरीब और अमीर के बीच अंतर कम करें.’

आम आदमी पार्टी की नेता प्रियंका कक्कड़ ने कहा, ‘पहले उन्होंने एलपीजी की कीमतें 200 रुपये कम की और अब घबराहट इतनी है कि वे संविधान में संशोधन करने की सोच रहे हैं. उन्हें एहसास हो गया है कि वे आगामी चुनाव नहीं जीत रहे हैं.’

कक्कड़ ने कहा, ‘इसके अलावा क्या यह कदम मुद्रास्फीति या पेट्रोल और डीजल की ऊंची कीमतों पर काबू पा सकता है? हमारा संविधान बहुत चर्चा के बाद तैयार किया गया था और वे जो करना चाहते हैं, उससे संघवाद के लिए खतरा है.’

आप नेता संजय सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का डर दिख रहा है. सिंह का मानना है कि यह डर सरकार के ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक को पेश करने के विचार के पीछे प्रेरक शक्ति हो सकता है.

शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने कहा कि देश पहले से ही एक है और कोई भी इस पर सवाल नहीं उठा रहा है. उन्होंने कहा, ‘हम निष्पक्ष चुनाव की मांग करते हैं, ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ की नहीं. यह कवायद निष्पक्ष चुनाव की हमारी मांग से ध्यान भटकाने के लिए की जा रही है.’

समाचार रिपोर्टों के अनुसार, शिवसेना (यूबीटी) की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने पूछा कि केंद्र सरकार चुनाव आयोग, सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों, सुरक्षा-बलों और विपक्षी दलों सहित प्रमुख हितधारकों के साथ चर्चा किए बिना ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक का प्रस्ताव कैसे दे सकती है.

चतुवेर्दी ने कहा, ‘आज देश किसानों के मुद्दों, बढ़ती बेरोजगारी, चीन की आक्रामकता का सामना कर रहा है. अगर विशेष सत्र इन सभी मुद्दों को संबोधित करेगा, तो इसका स्वागत है. अगर इसका इस्तेमाल इन मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए किया जाएगा तो इससे पता चलता है कि भाजपा घबरा गई है. मैं उनसे (केंद्र सरकार) पूछना चाहती हूं कि महंगाई, भ्रष्टाचार, बढ़ती बेरोजगारी, महिला आरक्षण पर समिति कब बनेगी.’

पार्टी के एक अन्य नेता अनिल देसाई ने कहा कि जो भी अवधारणा हो, उसे विचार-विमर्श के लिए सभी राजनीतिक दलों के सामने रखने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव ​की चाहे जो भी अवधारणा हो, उसे विभिन्न राजनीतिक दलों के सामने रखने की जरूरत है और फिर विचार-विमर्श और चर्चा होगी और फिर निर्णय आएगा.’