स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते और पश्चिम बंगाल में भाजपा के उपाध्यक्ष रहे चंद्र कुमार बोस ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखे अपने त्याग-पत्र में कहा है कि उन्होंने भाजपा से कुछ ज़्यादा ही उम्मीद लगा ली थी. सोचा था कि हम नेताजी की समावेशी और धर्म-निरपेक्ष विचारधारा को आगे बढ़ाने में सक्षम होंगे.
नई दिल्ली: नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते और पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व उपाध्यक्ष चंद्र कुमार बोस ने ‘वैचारिक’ मतभेदों का हवाला देते हुए बीते 6 सितंबर को पार्टी से इस्तीफा दे दिया.
6 सितंबर को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखे अपने त्याग-पत्र में बोस ने कहा कि उन्होंने बोस परिवार के लिए एक महत्वपूर्ण तारीख पर यह महत्वपूर्ण कदम उठाने का फैसला किया है, जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई, गुरु एवं साथी और मेरे दादा शरत चंद्र बोस की 134वीं जयंती है.
द वायर को प्राप्त पत्र में उन्होंने कहा, ‘बोस बंधु, शरत चंद्र और सुभाष चंद्र बोस, स्वतंत्र भारत के लिए एक समावेशी और धर्म-निरपेक्ष विचारधारा के लिए खड़े रहे थे.’
उन्होंने अपने पत्र में यह भी कहा कि वह 2016 में पार्टी में शामिल हुए थे, क्योंकि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से प्रेरित थे.
‘नेताजी ने कभी भी धर्म और राजनीति को मिलाया नहीं’
द वायर से बात करते हुए चंद्र कुमार बोस ने कहा कि वह मोदी का सम्मान करते हैं, जो 2014 में विकास के मुद्दे और भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के मुद्दे पर सरकार में आए थे.
उन्होंने कहा, ‘लेकिन एक बार जब आप वहां पहुंच जाते हैं और देश को आगे ले जाते हैं तो आपको समावेशी और धर्म-निरपेक्ष तरीके से आगे बढ़ना होता है.’
2016 में पार्टी में शामिल होने के बाद बोस ने दो चुनाव लड़े और हारे.
2016 के पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में उन्हें भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कांग्रेस की दीपा दासमुंशी के खिलाफ भवानीपुर सीट पर मैदान में उतारा था.
2019 में उन्हें टीएमसी के एक अन्य गढ़ कोलकाता दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ाया गया था, जहां वर्तमान सांसद माला रॉय के खिलाफ उन्हें हार मिली थी.
2019 के चुनाव अभियान के दौरान घटी एक घटना का जिक्र करते हुए बोस ने कहा कि एक मुस्लिम इलाके का दौरा करने पर, जहां उनके सिर गोल टोपी पहनाई गई थी, उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा था.
उन्होंने कहा, ‘मैंने (पार्टी को) सुझाव दिया था कि रणनीति यह होनी चाहिए कि हम सभी समुदायों से संपर्क करें. अगर हम किसी झुग्गी बस्ती में जा रहे हैं तो हमें मुस्लिम इलाके में भी जाना चाहिए, हमें हिंदू इलाके में भी जाना चाहिए, लेकिन यह उस तरह से काम नहीं कर सका.’
उन्होंने आगे कहा, ‘मैं व्यक्तिगत रूप से 2019 में चुनाव प्रचार के दौरान एक मुस्लिम इलाके में गया था, लेकिन बहुत आलोचना हुई थी. किसी ने मेरे सिर पर गोल टोपी रख दी थी. उन्होंने कहा कि अगर मैं नेताजी के परिवार से नहीं होता तो वे मुझे यह सम्मान नहीं देते. मैं न नहीं कह सका. किसी ने फोटो ले ली और यह वायरल हो गई. यह रामनवमी उत्सव के करीब का समय था और मुद्दा यह बन गया कि मैंने टोपी कैसे पहन ली.’
उन्होंने कहा, ‘ये गलत मुद्दे हैं.’
चंद्र कुमार बोस ने कहा, ‘जब नेता जी सिंगापुर में थे तो उन्हें चेट्टियार समुदाय के हिंदू मंदिर में आमंत्रित किया गया था. वे लोग आजाद हिंद फौज को दान देना चाहते थे.’
बोस के अनुसार, ‘उन लोगों ने उनसे कहा कि आप केवल अपने हिंदू अधिकारियों के साथ आएं. इस पर नेताजी ने मुख्य पुजारी से स्पष्ट रूप से कह दिया, मेरे पास कोई हिंदू अधिकारी नहीं है, मेरे पास केवल भारतीय अधिकारी हैं. उनमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई शामिल हैं और अगर आप उन्हें आने की अनुमति देंगे तो मैं आऊंगा अन्यथा नहीं आऊंगा. और फिर पुजारी ने उन्हें आने की अनुमति दी.’
उन्होंने आगे कहा, ‘सुभाष एक कट्टर हिंदू थे, वह काली के उपासक थे, लेकिन उन्होंने कभी भी धर्म को राजनीति से नहीं जोड़ा. यही वह संदेश है जो मैं देने की कोशिश कर रहा था.’
‘बंगाल में ध्रुवीकरण की राजनीति नहीं चली’
चंद्र कुमार बोस ने कहा कि उन्होंने भाजपा छोड़ने का फैसला किया, क्योंकि देश को बोस बंधुओं के समावेशी और धर्म-निरपेक्ष विचारों की जरूरत है.
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि मैंने भाजपा से कुछ ज्यादा ही उम्मीद लगा ली. मैंने सोचा था कि हम बोस बंधुओं – मेरे दादा शरत और उनके छोटे भाई नेताजी – की समावेशी और धर्म-निरपेक्ष विचारधारा को आगे बढ़ाने में सक्षम होंगे, क्योंकि मुझे लगता है कि देश को अभी इसी चीज की जरूरत है.’
उन्होंने आगे कहा है, ‘भारत की संस्कृति विविधता के माध्यम से एकता की है, आप इसे नहीं बदल सकते. मैंने सोचा था कि मैं पूरे देश में नेताजी की विचारधारा को फैलाने में सक्षम होऊंगा और मुझे अनिश्चित शब्दों में बताया गया कि मुझे ऐसा करने की अनुमति दी जाएगी.’
बोस ने कहा कि पश्चिम बंगाल के लोग ध्रुवीकरण की राजनीति की अपेक्षा नहीं करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘लोग इस तरह की ध्रुवीकरण की राजनीति की आशा नहीं करते हैं. केवल बंगाल के सीमावर्ती जिलों के कुछ क्षेत्रों में ध्रुवीकरण से भाजपा को मदद मिली है, लेकिन कुल मिलाकर अगर आप देखें, खासकर कोलकाता और आसपास के इलाकों में हम सभी 9 लोकसभा सीटें हार गए. ऐसा इसलिए है, क्योंकि ध्रुवीकरण का दांव चला नहीं.’
भाजपा 2016 और 2021 के राज्य विधानसभा चुनावों और 2019 के आम चुनावों में बंगाल में अपनी जमीन तैयार करने का प्रयास कर चुकी है.
2016 के राज्य विधानसभा चुनावों में टीएमसी ने 294 विधानसभा सीटों में से 211 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा के खाते में केवल तीन सीटें ही आईं थीं.
2019 के आम चुनाव में भाजपा ने एक कड़े मुकाबले के बाद राज्य में अपनी स्थिति बेहतर की. 42 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 18 जीतीं, जबकि 2014 में उसे केवल 2 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं, 2021 के राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 77 सीटें जीतीं, जबकि टीएमसी ने 213 सीट जीतकर सरकार बनाई थी.
‘नेताजी का सम्मान केवल उनकी प्रतिमा का अनावरण करके नहीं किया जा सकता’
नेताजी के पोते चंद्र कुमार बोस ने कहा कि वह मोदी सरकार द्वारा नेताजी संबंधी गुप्त फाइलों को सार्वजनिक करने और नई दिल्ली में इंडिया गेट पर एक प्रतिमा का निर्माण करके नेताजी के योगदान को सामने लाने के लिए किए गए प्रयासों की सराहना करते हैं, लेकिन सिर्फ इतना पर्याप्त नहीं हो सकता है.
उन्होंने कहा, ‘भाजपा के प्रयास बहुत सराहनीय हैं, लेकिन अगला कदम जो मैं चाहता था, वह था नेताजी की समावेशी विचारधारा का पालन करना. मुझे लगता है कि आप केवल नेताजी का प्रतिमा का अनावरण करके या सिर्फ एक संग्रहालय का निर्माण करके या उनकी फाइलें जारी करके वास्तव में बोस बंधुओं या नेताजी का सम्मान नहीं कर सकते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘(उन्हें सम्मान देने का) एकमात्र तरीका सभी समुदायों को भारतीयों के रूप में एकजुट करने की उनकी धर्म-निरपेक्ष विचारधारा का पालन करना है, जिसका प्रचार उन्होंने आज़ाद हिंद फौज के माध्यम से किया था.’
बोस ने कहा कि नेताजी के विचार 2023 के भारत के लिए प्रासंगिक हैं और देश में विभाजनकारी राजनीति के लिए सिर्फ भाजपा ही दोषी नहीं है.
उन्होंने आगे कहा, ‘विभाजन का विरोध करने और देश को बचाने का एकमात्र तरीका बोस बंधुओं के समावेशी विचारों का पालन करना और सभी समुदायों को भारतीयों के रूप में एकजुट करना है. हम हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन नहीं हैं, हम भारतीय हैं. मैं यही चाहता था कि भाजपा इसे आगे बढ़ाए, लेकिन दुर्भाग्य से हम वहां पिछड़ गए.‘
बंगाल की रणनीति
अपने त्याग-पत्र में बोस ने कहा कि उन्होंने बंगाल के लिए एक रणनीति प्रस्तुत की थी, जिसमें रचनात्मक प्रस्ताव शामिल थे, जिन्हें नजरअंदाज कर दिया गया.
उन्होंने लिखा, ‘मैंने सुझाव दिया था कि बंगाल के जिलों और कोलकाता क्षेत्र में पैठ बनाने के लिए सबसे पहले हमें वास्तव में बंगाल के इतिहास, विरासत और संस्कृति को समझने की जरूरत है.’
हर चुनाव से पहले बंगाल में होने वाली राजनीतिक हिंसा का जिक्र करते हुए बोस ने कहा कि ‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि बंगाल का वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य हिंसा का है.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन इसके लिए आप बंगाल के लोगों को दोषी नहीं ठहरा सकते. वह राजनीतिक बिरादरी है, जिसने गुंडों को काम पर रखा है. वह बंगाल का एक पक्ष है. बंगाल का दूसरा पक्ष यह है कि लोग बौद्धिक और राजनीतिक रूप से बहुत जागरूक हैं. उन्हें फैंसी विचारों और सोच से प्रभावित नहीं किया जा सकता. वे लोगों के बुनियादी मुद्दों पर बात करते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘मैंने सुझाव दिया था कि अपने विरोधियों की आलोचना करने के बजाय आपके पास स्वास्थ्य, शिक्षा और उद्योग के मामले में बंगाल की रणनीति होनी चाहिए. अगर बंगाल के लोग भाजपा को मौका देते हैं, तो हम इन क्षेत्रों में क्या करने जा रहे हैं?’
‘विचारधारा के कारण छोड़ी बीजेपी’
चंद्र कुमार बोस ने कहा कि वह राजनीति में काम करना जारी रखना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने इस बारे में कोई विवरण नहीं दिया कि क्या वह भाजपा छोड़ने के बाद किसी अन्य पार्टी में शामिल होंगे.
उन्होंने कहा, ‘मैं लोगों, बंगाल और राष्ट्र के लिए काम करना चाहूंगा, लेकिन दुर्भाग्य से मुझे वह अवसर नहीं मिला, जबकि मैंने दो बार चुनाव लड़ा और हार गया. मैंने विचारधारा के कारण पार्टी छोड़ी. मेरा किसी से कोई व्यक्तिगत विरोध नहीं है. यह सांसद बनने को लेकर नहीं है.’
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