छत्तीसगढ़ में फ़र्ज़ी जाति प्रमाण-पत्र पर दी गई सरकारी नौकरियों के मामले में कोई कार्रवाई न होती देख 29 लोग विधानसभा के पास सड़क पर नग्न होकर विधायकों के वाहनों के सामने तख्तियां लेकर दौड़ पड़े थे. बीते 18 जुलाई से वह जेल में थे.
नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शुक्रवार (8 सितंबर) को उन 29 लोगों को जमानत दे दी, जिन्हें बीते 18 जुलाई को रायपुर में विधानसभा के पास नग्न प्रदर्शन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. ये लोग फर्जी जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी पाने वाले लोगों के खिलाफ कथित निष्क्रियता को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वे 55 दिन बाद सोमवार (11 सितंबर) को जेल से बाहर आएंगे.
मामला 2020 का है, जब साल 2000 से 2020 के बीच कथित रूप से फर्जी जाति प्रमाण-पत्रों के आधार पर दी गईं सरकारी नौकरियों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया था. उस समय समिति ने 758 सरकारी कर्मचारियों के जाति प्रमाण-पत्रों की जांच की और 267 प्रमाण-पत्रों को फर्जी पाया था. सामान्य प्रशासन विभाग ने नवंबर 2020 में अतिरिक्त मुख्य सचिव को समिति की रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के लिए लिखा था.
जब सरकार ने आगे कोई कार्रवाई नहीं की तो 29 लोग विधानसभा के पास सड़क पर नग्न होकर विधायकों के वाहनों के सामने तख्तियां लेकर दौड़ पड़े. विधायक तब चुनाव से पहले आयोजित आखिरी चार दिवसीय विधानसभा सत्र में शामिल होने के लिए जा रहे थे.
इन लोगों के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत अश्लीलता, दंगा करने और आपराधिक बल का उपयोग करके पुलिस को उसके कर्तव्यों का निर्वहन करने में बाधा डालने के तहत मामला दर्ज किया गया था.
हालांकि, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि उन्होंने फर्जी जाति प्रमाण-पत्र मामले में उचित कार्रवाई की है.
जस्टिस संजय कुमार जयसवाल ने जमानत देते हुए आदेश में कहा, ‘मामले के तथ्यों और परिस्थितियों, अपराध की प्रकृति, अभियोजन पक्ष द्वारा एकत्र की गई सामग्री को ध्यान में रखते हुए, विशेष रूप से, यह विरोध का विषय है. इसमें कई लोग आरोपी थे, लेकिन केवल 29 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया. दंड प्रक्रिया संहिता-1973 की धारा 41ए का अनुपालन नहीं किया गया. मुकदमे में कुछ समय लग सकता है, आरोप-पत्र भी दायर नहीं किया गया है और आवेदक 18/07/2023 से जेल में हैं. मैं आवेदकों को नियमित जमानत पर रिहा करने का इच्छुक हूं.’
प्रदर्शनकारियों को कानूनी सहायता प्रदान करने वाले पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के प्रदेश अध्यक्ष दलित कार्यकर्ता डिग्री प्रसाद चौहान ने कहा कि यह आदेश सत्तारूढ़ दल की दमनकारी शक्ति और कानून के शासन के दुरुपयोग पर एक जोरदार तमाचा है.
उन्होंने कहा, ‘माननीय न्यायालय का यह आदेश विरोध करने के अधिकार के संवैधानिक महत्व को भी रेखांकित करता है.’