मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने बताया कि कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद इस फैसले को मंज़ूरी दे दी है. वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने लिंचिंग और भीड़ द्वारा हिंसा से निपटने के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी करते हुए निर्देश दिया था कि राज्य सरकारें ‘लिंचिंग/भीड़ द्वारा हिंसा पीड़ित मुआवज़ा योजना’ तैयार करेंगी.
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश सरकार ने बीते शनिवार (9 सितंबर) को लिंचिंग और भीड़ की हिंसा के पीड़ितों को मुआवजा देने की एक योजना को मंजूरी दे दी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में भोपाल में हुई कैबिनेट बैठक में मॉब लिंचिंग पीड़ित मुआवजा योजना को मंजूरी देने का निर्णय लिया गया. अधिकारियों के मुताबिक, इस योजना का उद्देश्य राज्य में पीड़ितों और उनके आश्रितों को राहत और पुनर्वास प्रदान करना है.
अधिकारियों ने बताया कि मृत्यु के मामले में पीड़ित परिवार के लिए मुआवजा 10 लाख रुपये होगा और घायल पीड़ितों के लिए 4-6 लाख रुपये मुआवजे का प्रावधान होगा.
एक अधिकारी ने बताया कि पांच या अधिक व्यक्तियों की भीड़ द्वारा हिंसा के किसी भी कार्य या कृत्यों की शृंखला के शिकार व्यक्ति जो धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, भोजन की प्राथमिकताएं, यौन प्राथमिकताओं, राजनीतिक संबद्धता, जातीयता या ऐसे किसी अन्य आधार पर हिंसा के चलते नुकसान उठाते हैं या घायल हो जाते हैं, उन्हें इस योजना के तहत मुआवजा मिल सकता है.
चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने संवाददाताओं से कहा कि कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद इस फैसले को मंजूरी दे दी है. 17 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने लिंचिंग और भीड़ हिंसा से निपटने के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए थे. तहसीन एस. पूनावाला बनाम भारत संघ और अन्य मामले में अपने फैसले में अदालत ने निर्देश दिया था कि ‘राज्य सरकारें लिंचिंग/भीड़ द्वारा हिंसा पीड़ित मुआवजा योजना तैयार करेंगी.’
शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए कि ‘भीड़तंत्र नहीं चल सकता’ लिंचिंग से निपटने के लिए सरकारों को कानून बनाने के लिए कहा था. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ का कहना था कि डर और अराजकता के माहौल से निपटना सरकार की जिम्मेदारी है और नागरिक अपने आप में कानून नहीं बन सकते.
फैसले में राज्यों को जिलों में हेट स्पीच (नफरत भरे भाषणों), भीड़ द्वारा हिंसा और लिंचिंग की संभावित घटनाओं पर खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए विशेष कार्य बल (एसटीएफ) बनाने का निर्देश दिया गया था.
फैसले में यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि यह केंद्र और राज्य सरकारों का कर्तव्य था कि वे भड़काऊ संदेशों, वीडियो इत्यादि के प्रसार को रोकने के लिए कदम उठाएं, जो ‘किसी भी प्रकार की भीड़ हिंसा और लिंचिंग को उकसा सकते हैं.
अदालत ने निर्देश दिया था कि पुलिस भीड़ की हिंसा और लिंचिंग की शिकायतों पर एफआईआर दर्ज करने, आरोपियों को गिरफ्तार करने, प्रभावी जांच और आरोप पत्र दाखिल करने के लिए बाध्य है.
अदालत ने कहा था, ‘मुआवजे की गणना के लिए राज्य सरकारें शारीरिक चोट की प्रकृति, मनोवैज्ञानिक चोट और रोजगार व शिक्षा के अवसरों की हानि समेत आजीविका की हानि और कानूनी एवं चिकित्सा व्यय के कारण होने वाले खर्चों को ध्यान में रखेंगी.’
इसने यह भी निर्देश दिया था कि मुआवजा योजना में पीड़ित या पीड़ित के निकटतम रिश्तेदार को घटना के 30 दिनों के भीतर अंतरिम राहत का भुगतान करने का प्रावधान होना चाहिए.
इस साल जुलाई में नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन विमेन ने एक जनहित याचिका दायर की, उसमें भी पिछले दो महीनों में सामने आए छह मामलों में पीड़ितों के लिए मुआवजे की मांग की गई थी और शीर्ष अदालत द्वारा 2018 में दिशानिर्देश जारी करने के बाद भी होने वाली लिंचिंग की संख्याओं पर चिंता जताई थी.
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और छह राज्यों- हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, ओडिशा और महाराष्ट्र को नोटिस जारी किया था.