बीते 1 सितंबर को मराठा समुदाय के लिए ओबीसी दर्जे की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर जालना में पुलिस द्वारा लाठीचार्ज कर दिया गया था. इसमें शामिल तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को महाराष्ट्र सरकार ने निलंबित कर दिया है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मराठा समुदाय को आरक्षण देने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए मुख्य आंदोलनकारी से अपनी भूख हड़ताल ख़त्म करने की अपील की है.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र सरकार ने बीते सोमवार (11 सितंबर) को मराठा आरक्षण को लेकर प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ दर्ज सभी मामले वापस लेने का फैसला किया और तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया. साथ ही मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने प्रभावशाली समुदाय को आरक्षण देने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई और मुख्य आंदोलनकारी से अपनी भूख हड़ताल खत्म करने की अपील की.
ये घोषणाएं एक सर्वदलीय बैठक के बाद आईं, जिसमें राज्य के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें मुख्य आंदोलनकारी मनोज जरांगे पाटिल से अपनी 14 दिनों की भूख हड़ताल वापस लेने की अपील की गई. साथ ही उन्हें समुदाय के लिए आरक्षण रणनीति का मसौदा तैयार करने के लिए गठित समिति का हिस्सा बनने के लिए कहा गया.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा, ‘हम पिछले सप्ताह प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज सभी मामले वापस लेने की मांग स्वीकार कर रहे हैं. संबंधित अधिकारियों को इस पर तुरंत कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘संबंधित अधिकारियों के निलंबन की मांग की गई थी. हम अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) राहुल खाड़े और डिप्टी एसपी मुकुंद अघव सहित तीन वरिष्ठ अधिकारियों को निलंबित कर रहे हैं.’
मराठा समुदाय द्वारा आरक्षण की मांग दशकों पुरानी है, लेकिन 2018 में व्यापक विरोध के कारण राज्य सरकार ने 16 प्रतिशत आरक्षण दे दिया था. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा इसे नौकरियों में 13 प्रतिशत और शिक्षा में 12 प्रतिशत तक घटा दिया गया था.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मई 2021 में कुल आरक्षण की सीमा 50 फीसदी होने सहित अन्य कारणों का हवाला देते हुए इसे रद्द कर दिया था.
वर्तमान संकट 1 सितंबर को शुरू हुआ, जब मराठा समुदाय के लिए ओबीसी दर्जे की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर जालना में पुलिस द्वारा लाठीचार्ज कर दिया गया था. यहीं पर मनोज जरांगे पाटिल भूख हड़ताल पर बैठे हुए थे. जिन अधिकारियों को निलंबित किया गया, वे इस कार्रवाई में शामिल थे.
समुदाय शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहा है. बीते 29 अगस्त को जालना के अंतरवली सारथी गांव में कार्यकर्ता मनोज जरांगे के नेतृत्व में भूख हड़ताल चल रही है. बीते 1 सितंबर को जब पुलिस ने जरांगे को अस्पताल ले जाने की कोशिश की तो हिंसा भड़क गई थी. इसमें 40 पुलिसकर्मी और कुछ नागरिक घायल हो गए थे.
इस घटना को लेकर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने सरकार की ओर माफी मांगी थी. फड़णवीस ने कहा था, ‘पुलिस द्वारा लाठीचार्ज करना सही नहीं था. मैं सरकार की ओर से माफी मांग रहा हूं. मुख्यमंत्री ने कहा है कि जो लोग भी इसके लिए जिम्मेदार हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.’
इस घटना के बाद दबाव में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने पिछले हफ्ते घोषणा की थी कि मध्य महाराष्ट्र क्षेत्र के मराठा ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं, अगर वे निजाम युग से उन्हें कुनबी (कृषि से जुड़ा समुदाय) के रूप में वर्गीकृत करने वाला प्रमाण-पत्र प्रस्तुत कर सकें.
मुख्यमंत्री ने संवाददाताओं से कहा था, ‘एक समिति गठित की गई है और मराठवाड़ा से मराठा समुदाय को कुनबी जाति प्रमाण-पत्र कैसे जारी किया जाए, इस पर एक महीने के भीतर एक रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है. राज्य सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है और हम एक सौहार्द्रपूर्ण समाधान खोजने के लिए काम कर रहे हैं.’
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, हालांकि वह आदेश – जिसने समुदाय के लिए कोटा की खिड़की खोल दी – सभी पक्षों को नाखुश कर दिया. मराठा संगठनों की ओर से कहा गया कि वे सिर्फ मध्य महाराष्ट्र के आठ जिलों के लिए नहीं, बल्कि बिना किसी शर्त के आरक्षण चाहते हैं. वहीं ओबीसी और कुनबी समूहों को डर है कि इस कदम से उन्हें दिया गया आरक्षण खतरे में पड़ जाएगा.
तब से आरक्षण पर विरोध तेज हो गया है, क्योंकि मराठा समुदाय के लिए आरक्षण का समर्थन करने वाले और विरोध करने वाले समूहों ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है और सरकार स्पष्ट रूप से बीच में फंस गई है.
मुख्यमंत्री ने बैठक के बाद कहा, ‘मैं मनोज जरांगे पाटिल से अपील करता हूं कि मध्य महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के सदस्यों को कुनबी जाति प्रमाण-पत्र कैसे जारी किया जाए, यह तय करने के लिए गठित जस्टिस शिंदे समिति को कुछ समय दिया जाए. हम उनसे अपील करते हैं कि या तो वह समिति का हिस्सा बनें या अपना प्रतिनिधि नियुक्त करें. हम उनके स्वास्थ्य और भलाई के साथ-साथ राज्य में कानून-व्यवस्था को लेकर चिंतित हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हमने पाटिल से अपनी भूख हड़ताल वापस लेने की अपील करने के लिए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव भी पारित किया है.’
वहीं, जरांगे पाटिल ने कहा कि वह मंगलवार को अपने सहयोगियों के साथ प्रस्तावों पर चर्चा करेंगे और निर्णय लेंगे, लेकिन उन्होंने कहा कि न तो वह और न ही कोई प्रतिनिधि शिंदे समिति में शामिल होगा.
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार मराठा आरक्षण बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध है.
उन्होंने कहा, ‘शीर्ष अदालत द्वारा बताई गईं कमियों को दूर करने के लिए एक समर्पित आयोग नियुक्त किया गया है. हम सुधारात्मक याचिका और अन्य कानूनी विकल्पों का उपयोग कर रहे हैं. हमने सुप्रीम कोर्ट में अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए वरिष्ठ वकीलों की एक टास्क फोर्स नियुक्त की है. हम समुदाय के सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दुरुस्त करने के लिए कदम उठा रहे हैं.’
मुख्यमंत्री ने ओबीसी समुदाय को यह आश्वासन दिया कि उनके आरक्षण को नहीं छुआ जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘किसी भी झूठे प्रचार में न आएं. मैं ओबीसी समुदाय के सदस्यों से अपील करता हूं कि वे विरोध का सहारा न लें और हमारे साथ सहयोग करें.’
दो घंटे से अधिक समय तक चली बैठक में कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के शरद पवार गुट, शिवसेना (यूबीटी), बहुजन विकास अघाड़ी, पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी, समाजवादी पार्टी और अन्य छोटे दलों के नेता शामिल हुए थे.
कांग्रेस नेता बालासाहेब थोराट ने कहा, ‘हमने अभी तक विपक्षी गठबंधन के भीतर इस मुद्दे पर चर्चा नहीं की है. हम इस पर कोई राजनीति नहीं करना चाहते हैं. कांग्रेस की राय मराठा समुदाय को आरक्षण देने की है.’