कथित एनकाउंटर में मारे गए रावा देवा और सोडी कोसा ताड़मेटला गांव के निवासी थे. परिवारों का कहना है कि दोनों किसान थे और उनके पास उनकी पहचान के वैध दस्तावेज़ भी हैं. वहीं, पुलिस ने दोनों के नक्सली होने का दावा किया है. सुकमा कलेक्टर ने बताया कि मामले के तथ्यों का पता लगाने के लिए मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दे दिए गए हैं.
नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में दो आदिवासी पुरुषों के परिवारों ने आरोप लगाया है कि उन्हें फर्जी एनकाउंटर में मार दिया गया. वहीं, राज्य पुलिस ने इस आरोप से इनकार करते हुए कहा है कि दोनों माओवादी थे.
कथित एनकाउंटर में मारे गए रावा देवा और सोडी कोसा ताड़मेटला गांव के निवासी थे. बीते मंगलवार (12 सितंबर) को देवा की पत्नी सोनी और कोसा की पत्नी नंदे सहित उनके रिश्तेदारों ने सुकमा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जहां उन्होंने फर्जी एनकाउंटर के आरोप लगाए.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सुकमा कलेक्टर हारिस एस. ने बताया, ‘मामले के तथ्यों का पता लगाने के लिए मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दे दिए गए हैं. एक उप-विभागीय अधिकारी पूरी घटना की जांच कर रहे हैं. उचित कार्रवाई की जाएगी.’
पुलिस ने दावा किया है कि ये लोग बीते 5 सितंबर को गोलीबारी में मारे गए थे, जबकि परिवारों का आरोप है कि दोनों को 4 सितंबर को दोपहर के आसपास उठाया गया था और उसी रात उनकी हत्या कर दी गई थी.
सोडी कोसा के चचेरे भाई सोडी जोगा ने आरोप लगाया, ‘दोनों 4 सितंबर की सुबह किसी से मिलने के लिए निकले थे. वे उस व्यक्ति की मोटरसाइकिल पर घर लौट रहे थे, जब पुलिस ने उन्हें उठा लिया. हम इस मामले की निष्पक्ष जांच चाहते हैं.’
रावा देवा के रिश्तेदार मुचकी देवा ने कहा, ‘उनकी एक छोटी सी दुकान थी, जबकि सोडी कोसा के पास एक ट्रैक्टर था. पुलिस को पता था कि वे कौन थे. अगर वे नक्सली थे तो उन्हें पहले गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?’
परिवारों ने यह भी दावा किया कि पुलिस ने दोनों व्यक्तियों के शवों को जलाने की कोशिश की.
हालांकि, सुकमा के पुलिस अधीक्षक एसपी किरण चव्हाण ने बताया, ‘यह झूठ है कि पुलिस ने दो लोगों के शवों को जला दिया. हमारे पास यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि शव परिवारों को सौंप दिए गए और उन्होंने अंतिम संस्कार पूरा किया है.’
इस बीच कोंटा से दो बार विधायक रहे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता मनीष कुंजाम ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को एक पत्र लिखकर पुलिस के खिलाफ उच्चस्तरीय जांच की मांग की है. ताड़मेटला गांव कोंटा क्षेत्र के तहत आता है.
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, परिवारों ने कहा कि दोनों बीते 4 सितंबर को एक मुचाकी माना से कुछ भुगतान लेने के लिए पैदल ही पास के गांव तिम्मापुरम के लिए घर से निकले थे. मुचाकी ने इस बात की पुष्टि की कि दो व्यक्ति उनसे मिलने आए थे और उनके दोपहिया वाहन पर उनके घर से चले गए. यह आखिरी बार था जब किसी ने उन्हें जीवित देखा था.
परिवारों ने दावा किया कि दोनों व्यक्ति धान किसान थे, जो किराने की दुकान चलाने और दूसरों के खेतों पर ट्रैक्टर चलाने सहित अन्य काम भी करते थे. परिवारों ने उनके आधार और पैन कार्ड के साथ-साथ बैंक या वाहन स्वामित्व के दस्तावेज यह बताने के लिए पेश किए कि वे आधिकारिक प्रणाली के दायरे में रहकर काम करते थे.
सोडी जोगा ने सवाल उठाया, ‘उनके काम में पुलिस और अन्य अधिकारियों के साथ नियमित बातचीत शामिल थी. साथ ही, अगर उनकी पिछली आपराधिक संलिप्तता थी, तो उन्हें पहले गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? किस अपराधी को इस तरह खुलेआम घूमने की इजाजत है?’
पुलिस ने अपने बयान में कहा कि दोनों व्यक्ति दक्षिण बस्तर के ताड़मेटला गांव के निवासी हैं, जो देश में माओवादी विद्रोह से सबसे ज्यादा प्रभावित है. दोनों क्रमशः 28 जून और 31 अगस्त को शिक्षादूत (शिक्षक) कवासी सुक्का और ताड़मेटला पंचायत के वर्तमान उप-सरपंच मदवी गंगा की हत्या में शामिल थे.