बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में मनरेगा मज़दूर वेतन भुगतान में देरी के चलते भूख से बेहाल: रिपोर्ट

कुछ मामलों में श्रमिकों को लगातार पांच महीनों से भुगतान नहीं किया गया है. स्थानीय अधिकारी बिहार ग्रामीण विकास विभाग को फंड जारी करने में देरी के लिए केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है. एक स्थानीय ग़ैर सरकारी संगठन ‘मनरेगा वॉच’ का कहना है कि गायघाट, बोचहा और कुरहनी समेत ज़िले के कई ब्लॉकों में लगभग 25,000 श्रमिकों को महीनों से उनकी मज़दूरी नहीं मिल रही है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: UN Women Asia and Pacific/Flickr CC BY NC ND 2.0)

कुछ मामलों में श्रमिकों को लगातार पांच महीनों से भुगतान नहीं किया गया है. स्थानीय अधिकारी बिहार ग्रामीण विकास विभाग को फंड जारी करने में देरी के लिए केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है. एक स्थानीय ग़ैर सरकारी संगठन ‘मनरेगा वॉच’ का कहना है कि गायघाट, बोचहा और कुरहनी समेत ज़िले के कई ब्लॉकों में लगभग 25,000 श्रमिकों को महीनों से उनकी मज़दूरी नहीं मिल रही है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: UN Women Asia and Pacific/Flickr CC BY NC ND 2.0)

नई दिल्ली: बिहार के मुजफ्फरपुर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के तहत मजदूरी के भुगतान में अत्यधिक देरी के कारण गरीब श्रमिकों को जीविकोपार्जन के लिए अत्यधिक ब्याज दरों पर निजी ऋणदाताओं से पैसे उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

द हिंदू ने अपनी रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी है. इसमें कहा गया है कि कुछ मामलों में श्रमिकों को लगातार पांच महीनों से भुगतान नहीं किया गया है, जिससे उनके लिए अपने परिवारों और बच्चों के लिए कम से कम दो वक्त का भोजन भी उपलब्ध कराना मुश्किल हो गया है.

जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने अखबार को बताया कि देरी केंद्र सरकार द्वारा बिहार के ग्रामीण विकास विभाग को फंड जारी न करने के कारण हुई है.

हालांकि अधिकारियों का कहना है कि मुजफ्फरपुर में 93 फीसदी श्रमिकों को पहले ही मजदूरी मिल चुकी है, जबकि एक स्थानीय गैर सरकारी संगठन ‘मनरेगा वॉच’ का कहना है कि गायघाट, बोचहा और कुरहनी समेत जिले के कई ब्लॉकों में लगभग 25,000 श्रमिकों को महीनों से उनकी मजदूरी नहीं मिल रही है.

मोहम्मदपुर सुरा पंचायत के धबौली गांव की विधवा सुदामा देवी (37 वर्ष) की स्थिति बताती है कि मजदूरी का भुगतान नहीं होने के कारण मजदूर कितने बुरे हालातों में जी रहे हैं. वह कहती हैं कि उनके पास अपने पांच बच्चों को खाना खिलाने के लिए पैसे नहीं हैं. उन्होंने बताया कि उनका सबसे बड़े बच्चा (13 वर्ष) पानी और नमक के साथ खराब गुणवत्ता का चावल खा रहा है.

रोते हुए वह सवाल करती हैं, ‘मैंने एक स्थानीय साहूकार से उच्च ब्याज दर पर 5,000 रुपये उधार लिए हैं. पिछले चार महीने से मुझे मेरी मजदूरी नहीं मिली है. अगर मुझे पैसे नहीं मिलेंगे तो मैं कैसे जीवनयापन करूंगी?’

गायघाट ब्लॉक के बेरुवा पंचायत अंतर्गत चोरनिया गांव की सुनीता देवी (40 वर्ष) के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें इस साल मार्च से जुलाई के बीच किए गए 45 दिनों के काम की मजदूरी नहीं मिली है, जो लगभग 10,000 रुपये है.

श्रमिकों के अनुसार, वेतन में देरी और भुगतान न होने का कारण बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार है.

इस बीच, मुजफ्फरपुर के मनरेगा के जिला कार्यक्रम अधिकारी अमित कुमार उपाध्याय ने द हिंदू को बताया कि समस्या का अब समाधान हो गया है. जिले में समय पर भुगतान दर 93 फीसदी है.

उन्होंने कहा, ‘दरअसल, हमें केंद्र से फंड नहीं मिल रहा है, जो ग्रामीण विकास विभाग के खाते में जाता है. देरी के कारण वेतन भुगतान न होने की समस्या पैदा हो गई थी, लेकिन इसे अब सुलझा लिया गया है.’ उन्होंने साथ ही कहा कि आधार-आधारित वेतन भुगतान प्रणाली में कुछ गड़बड़ियां हैं, जिसे अब ठीक किया जा रहा है.

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 में पारित किया गया था, जो ग्रामीण परिवार के लिए प्रति वर्ष 100 दिनों के अकुशल श्रम की गारंटी देता है. 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता संभालने के बाद से इस योजना के लिए बजटीय आवंटन में भारी कमी की जाती रही है.

2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनरेगा को ‘कांग्रेस सरकार की विफलता का जीवित स्मारक’ बताया था. संसद में एक भाषण में उन्होंने कहा था, ‘इतने दिनों तक सत्ता में रहने के बाद आप एक गरीब को केवल महीने में कुछ दिन गड्ढे खोदने का काम दे पाए.’

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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