आरटीआई के तहत मांगी गई ‘आरोग्य सेतु’ ऐप से जुड़ी जानकारी पर केंद्र हलफनामा दायर करे: हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट आरटीआई कार्यकर्ता सौरव दास की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें केंद्रीय सूचना आयोग के नवंबर 2020 के आदेश को चुनौती दी गई थी. अदालत ने ऐप से संबंधित फाइल नोटिंग और इसके निर्माण तथा विकास में शामिल लोगों के बीच हुए संचार के अलावा अन्य जानकारियों को हलफ़नामे में शामिल करने का निर्देश दिया है.

(फोटो साभार: फेसबुक/AarogyaSetu)

दिल्ली हाईकोर्ट आरटीआई कार्यकर्ता सौरव दास की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें केंद्रीय सूचना आयोग के नवंबर 2020 के आदेश को चुनौती दी गई थी. अदालत ने ऐप से संबंधित फाइल नोटिंग और इसके निर्माण तथा विकास में शामिल लोगों के बीच हुए संचार के अलावा अन्य जानकारियों को हलफ़नामे में शामिल करने का निर्देश दिया है.

(फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बीते शुक्रवार (15 सितंबर) को केंद्र से सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत आरोग्य सेतु ऐप के संबंध में मांगी गई कुछ जानकारी से संबंधित एक ​‘विशिष्ट हलफनामा​’ दाखिल करने को कहा.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट आरटीआई कार्यकर्ता सौरव दास की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के नवंबर 2020 के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसने कहा था कि ऐप के संबंध में पर्याप्त जानकारी पहले से ही सार्वजनिक तौर पर मौजूद है.

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की एकल न्यायाधीश पीठ ने राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिवीजन (एनईजीडी) के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) समेत विभिन्न उत्तरदाताओं की ओर से उपस्थित वकील को निर्देश दिया कि वे ‘ऐप से संबंधित फाइल नोटिंग के संबंध में एक विशिष्ट हलफनामा दायर करें, क्या ऐप के निर्माण और विकास में शामिल लोगों के बीच कोई संचार हुआ था, क्या योगदानकर्ताओं/सलाहकारों से कोई लिखित संचार प्राप्त हुआ था, क्या कोई लिखित प्रतिक्रिया दी गई थी, क्या कोई नोट्स मेमो इत्यादि वाली कोई फाइल तैयार की गई थी या ये सभी चीजें केवल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा मौखिक रूप से हुई थीं.’

हाईकोर्ट ने कहा कि हलफनामा चार सप्ताह के भीतर दायर किया जाए और मामले को 2 नवंबर को सूचीबद्ध किया जाए.

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि ‘आरटीआई अधिनियम कहता है कि अगर कोई जानकारी है और वह आरटीआई अधिनियम की धारा 8 के किसी भी खंड द्वारा संरक्षित न हो तो उसे सार्वजनिक कर दिया जाना चाहिए. कानून का उद्देश्य पारदर्शिता है.’

अधिवक्ता वृंदा भंडारी याचिकाकर्ता दास की ओर से पेश हुईं और कहा, ‘आरोग्य सेतु के उपयोग की सीमा को देखते हुए याचिकाकर्ता ऐप कैसे बनाया गया, डेटा सुरक्षा प्रभाव आकलन, पालन किए गए प्रोटोकॉल, सुरक्षा उपायों के बारे में जानकारी चाहता था.’

केंद्र के वकील ने कहा कि उन्होंने याचिकाकर्ता को ‘जो भी जानकारी मांगी गई थी’ प्रदान की थी और उस समय महामारी के दौरान ‘लॉकडाउन’ था, इसलिए कोई लिखित नोट तैयार नहीं किया गया था और सब कुछ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से किया गया था.

हाईकोर्ट ने पिछली सुनवाई में पाया था कि दास ने राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी), इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) और राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिवीजन (एनईजीडी) सहित विभिन्न सरकारी अधिकारियों के समक्ष ‘आरोग्य सेतु’ ऐप के बारे में विभिन्न दस्तावेजों और जानकारी की मांग करते हुए आरटीआई आवेदन दायर किए थे.

आरटीआई आवेदन में परियोजना से संबंधित विवरण जानने की मांग की गई थी- जैसे कि प्रस्ताव की उत्पत्ति, अनुमोदन विवरण, शामिल कंपनियां, लोग, सरकारी विभाग, ऐप (एप्लिकेशन) से संबंधित फाइल नोटिंग्स, ऐप बनाने या विकसित करने में शामिल संचार की प्रतियां, आदि.

याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि विभिन्न अधिकारियों से संपर्क करने के बावजूद, प्रत्येक प्राधिकरण आवेदन का जवाब देने से बचता रहा और मांगी गई जानकारी प्रदान करने में विफल रहा.

इसके बाद दास ने सीआईसी से संपर्क किया, बाद में एनईजीडी ने उन्हें यह कहते हुए जवाब दिया कि उसके पास उनके द्वारा मांगे गए प्रश्नों/सूचना पर कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि उक्त जानकारी एनईजीडी से संबंधित नहीं है.

तब सीआईसी द्वारा एक अंतरिम सुनवाई की गई और 26 अक्टूबर 2020 को सीआईसी ने एक विस्तृत आदेश पारित किया और पाया कि किसी भी अधिकारी ने जानकारी प्रदान नहीं की थी और कोई भी सीपीआईओ इस प्रश्न पर कुछ भी समझाने में सक्षम नहीं था कि कैसे वेबसाइट ‘http://aarogyasetu.gov.in/”’ डोमेन नाम ‘gov.in’ के साथ या एप्लिकेशन बनाई गई थी.

इसके बाद सीआईसी ने सरकार के विभिन्न विभागों के चार अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जैसा कि हाईकोर्ट ने पहले नोट किया था. अंततः सीआईसी ने अपने 26 नवंबर 2020 के आदेश में यह कहते हुए कारण बताओ नोटिस को खारिज कर दिया कि ‘कारण बताओ नोटिस की कार्यवाही रद्द की जाती है और शिकायत का भी तदनुसार निपटान किया जाता है’.

मालूम हो कि जनवरी 2021 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में केंद्र और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र को आरोग्य सेतु के जरिये एकत्र किए गए डेटा को साझा करने से रोक दिया था. अदा​लत ने कहा था कि यूजर्स की सहमति के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता है.

अक्टूबर 2020 में द वायर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि कोविड-19 के प्रसार की रोकथाम के रूप में मोदी सरकार द्वारा बहुप्रचारित आरोग्य सेतु ऐप आलोचना के घेरे में है.

कोविड-19 के प्रसार की रोकथाम के लिए सरकार द्वारा आरोग्य सेतु ऐप के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा था, हालांकि उसे किसने बनाया इस बारे में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र को कोई जानकारी नहीं थी. केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने सरकार के इस जवाब को ‘अतर्कसंगत’ करार दिया था.

इस ऐप को बनाने वालों के बारे में कोई जानकारी नहीं देने पर केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने कड़ी फटकार लगाई थी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र को कारण बताओ नोटिस जारी किया था.

इस रिपोर्ट में बताया था कि आरोग्य सेतु ऐप से कितनों को कोरोना जांच की सलाह दी गई, सरकार के पास इसकी जानकारी नहीं थी.

सितंबर 2020 में द वायर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि कोरोना महामारी से लड़ने के लिए मोदी सरकार द्वारा लाए गए आरोग्य सेतु ऐप के प्रचार में केंद्र ने करीब 4.15 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. ये राशि सिर्फ साढ़े तीन महीने के भीतर में खर्च की गई थी.

दिसंबर 2020 में इस ऐप से संबंधित जानकारी की उपलब्धता के बारे में केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष केंद्र सरकार के विभागों और मंत्रालयों के सभी केंद्रीय सूचना अधिकारियों (सीपीआईओ) की ओर से गैर-जिम्मेदाराना प्रस्तुतियां देने के मामले में ‘बिना शर्त माफी’ मांगी गई थी.